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मजबूरियों के शोर में

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राजीव रंजन चंद सिक्‍कों की खनक में सुनाई नहीं देती दूर बैठे अपनों की सदा मजबूरियों के शोर में दब जाती हैं सब आवाजें आत्‍मा की भी ईमान की भी