फिल्म ‘गली गुलियां’ की समीक्षा

अंधेरे से बाहर निकलने की जद्दोजहद राजीव रंजन कलाकार: मनोज बाजपेयी, रणवीर शौरी, नीरज कबी, शहाना गोस्वामी, ओम सिंह निर्देशक: दीपेश जैन 3.5 स्टार (साढ़े तीन स्टार) मशहूर शायर, अफसानानिगार और फिल्मकार गुलजार के शब्दों को थोड़े-से हेरफेर के साथ कहें, तो पुरानी दिल्ली की पेचीदा दलीलों-सी गलियां मायानगरी मुम्बई को हमेशा से आकर्षित करती रही हैं। इसलिए बॉलीवुड समय-समय पर दिल्ली-6 को केंद्र में रख कर कहानियां बुनता रहता है। उन कहानियों में इस इलाके के प्रति एक स्पष्ट लगाव मौजूद रहता है। निर्देशक दीपेश जैन की ‘गली गुलियां’ भी दिल्ली-6 यानी पुरानी दिल्ली को केंद्र में रख कर बुनी गई है। लेकिन यह इस इलाके को उस तरह से नहीं पेश करती, जिस तरह ‘मिर्जा गालिब’ में गुलजार और अपनी फिल्मों में ज्यादातर फिल्मकार पेश करते हैं। यह उस इलाके के एक अलग पहलू को चित्रित करती है। ‘गली गुलियां’ में पुरानी दिल्ली की संकरी, अस्त-व्यस्त गलियां और उनमें सीलन भरी कोठरियां माहौल को बोझिल बनाती हैं, दिमाग में तनाव पैदा करती हैं और उसे एक ऐसी जगह के रूप में पेश करती हैं, जो नॉस्टेल्जिया में नहीं ले जाता, बल्कि व...