जयंती पर विशेषः प्रेमचंद की कहानी "जुर्माना"

आज 31 जुलाई, 2021 को कथा सम्राट प्रेमचंद की 141वीं जयंती है। इस अवसर पर प्रस्तुत है, उनकी एक कहानी "जुर्माना" ः जुर्माना मुंशी प्रेमचंद ऐसा शायद ही कोई महीना जाता कि अलारक्खी के वेतन से कुछ जुर्माना न कट जाता। कभी-कभी तो उसे 6 रुपये के 5 रुपये ही मिलते, लेकिन वह सब कुछ सहकर भी सफाई के दारोगा मु० खैरात अली खां के चंगुल में कभी न आती। खां साहब की मातहती में सैकड़ों मेहतरानियां थीं। किसी की भी तलब न कटती, किसी पर जुर्माना न होता, न डांट ही पड़ती। खां साहब नेकनाम थे, दयालु थे। मगर अलारक्खी उनके हाथों बराबर ताडऩा पाती रहती थी। वह कामचोर नहीं थी, बेअदब नहीं थी, फूहड़ नहीं थी, बदसूरत भी नहीं थी; पहर रात को इस ठण्ड के दिनों में वह झाड़ू लेकर निकल जाती और नौ बजे तक एक-चित्त होकर सडक़ पर झाड़ू लगाती रहती। फिर भी उस पर जुर्माना हो जाता। उसका पति हुसेनी भी अवसर पाकर उसका काम कर देता, लेकिन अलारक्खी की क़िस्मत में जुर्माना देना था। तलब का दिन औरों के लिए हंसने का दिन था अलारक्खी के लिए रोने का। उस दिन उसका मन जैसे सूली पर टंगा रहता। न जाने कितने पैसे कट जाएंगे? वह परीक्षा वाले छात्रों की ...