अच्छी कविता कभी खत्म नहीं होती
एक दिन ऑफिस में एक फोन आया. उधर से कुमार विनोद नाम के सज्जन बोल रहे थे. उन्होने याद दिलाया कि "मैंने अपना एक कविता संकलन जुलाई महीने में समीक्षार्थ भेजा था." मैंने कहा कि मुझे जानकारी नही नहीं है, मैं देख कर आपको सूचित करूँगा. अगले दिन उनका फोन फिर आया, तब तक मैंने किताब देखि नही थी, लेकिन दुबारा फोन आने के बाद मैंने शिष्टाचार के नाते सोचा कि देख ही लेना चाहिए. अगर कवितायें ठीकठाक हुईं तो छाप देंगे समीक्षा. वैसे भी कई बार हम ऐसी किताबों की समीक्षाये छापने को मजबूर होते है जो उस लायक नही होती, मगर उसके रचनाकारों के संबंध "ऊपर" के लोगो से होते हैं. मैंने यूं ही "कविता खत्म नही होती" (संकलन का यही नाम है) पर एक नज़र डाली और जो एक बार नज़र डाली तो फिर बिना रुके पढ़ता चला गया, साथ ही एक अपराधबोध से भी ग्रस्त होता चला गया. मुझे लगा कई बार इसी तरह कई अच्छी रचनाएं उपेक्षित रह जाती होंगी क्योंकि उनके साथ किसी बडे रचनाकार का नाम नहीं जुडा होता है, वे किसी बडे प्रकाशन से नही छपती, उनके रचनाकारों के संबंध "बडे" या "ऊपर" के लोगों से नहीं होते या फिर वे किसी ऐसे समूह से जुडे रचनाकार की नही होती, जिस समूह के लोग ढिंढोरा पीट कर एक-दूसरे की शान में कसीदे पढ़ते हैं.
कुमार विनोद पेशे से गणित के अध्यापक हैं (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में गणित विभाग में रीडर) और प्रकृति से कवि. अध्यापक के रूप में वे कितने सफल हैं मैं नहीं कह सकता क्योंकि मैं कभी उनका छात्र नहीं रहा. लेकिन, एक पाठक के नाते मैं यह ज़रूर कह सकता हूँ कि वे एक संवेदनशील कवि हैं. उनकी कवितायें पाठको के मानस पर प्रभाव छोड़ने का माद्दा रखती हैं. सरल-सहज भाषा में पाठकों से संवाद करती हैं. इनमें आतंकित कर देने वाली बौद्धिकता नहीं है, बल्कि बिना किसी लाग-लपेट के ऐसी अभिव्यक्ति है जो सीधे जेहन-ओ-दिल में मुकाम बना लेती है. ये हमारी चेतना और विचार प्रक्रिया को झकझोरती हैं. यही कविताओं और कवि की सफलता है. इन कविताओं को पढ़ते हुए हम अनुभव के विभिन्न स्तरों से गुज़रते हैं. इनमें क्षोभ है, निराशा है, तो उत्साह भी है, संकल्प भी है, भविष्य के प्रति पूरी तरह सकारात्मक नजरिया भी है. समाज की चिंता है तो पत्नी के प्रति पूर्ण अनुराग भी झलकता है-
मेरे लिए
तुम
खुशी में
गाया जाने वाला गीत
दुख में
की जाने वाली
प्रभू की प्रार्थना.
संग्रह की अन्तिम कविता, जिसका शीर्षक "कविता खत्म नही होती" में वे लिखते हैं-
इसी शेष से
फिर विशेष तक
यात्राओं का
क्रम चलता है
कविता खत्म नहीं होती.
सचमुच इस संग्रह की कवितायें पढ़ने के बाद यह महसूस होता है की अच्छी कविता कभी खत्म नही होती है. वह हमेशा हमारी और हमारी आने वाली पीढियों की चेतना में विद्यमान रहती है.
राजीव रंजन
कुमार विनोद पेशे से गणित के अध्यापक हैं (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में गणित विभाग में रीडर) और प्रकृति से कवि. अध्यापक के रूप में वे कितने सफल हैं मैं नहीं कह सकता क्योंकि मैं कभी उनका छात्र नहीं रहा. लेकिन, एक पाठक के नाते मैं यह ज़रूर कह सकता हूँ कि वे एक संवेदनशील कवि हैं. उनकी कवितायें पाठको के मानस पर प्रभाव छोड़ने का माद्दा रखती हैं. सरल-सहज भाषा में पाठकों से संवाद करती हैं. इनमें आतंकित कर देने वाली बौद्धिकता नहीं है, बल्कि बिना किसी लाग-लपेट के ऐसी अभिव्यक्ति है जो सीधे जेहन-ओ-दिल में मुकाम बना लेती है. ये हमारी चेतना और विचार प्रक्रिया को झकझोरती हैं. यही कविताओं और कवि की सफलता है. इन कविताओं को पढ़ते हुए हम अनुभव के विभिन्न स्तरों से गुज़रते हैं. इनमें क्षोभ है, निराशा है, तो उत्साह भी है, संकल्प भी है, भविष्य के प्रति पूरी तरह सकारात्मक नजरिया भी है. समाज की चिंता है तो पत्नी के प्रति पूर्ण अनुराग भी झलकता है-
मेरे लिए
तुम
खुशी में
गाया जाने वाला गीत
दुख में
की जाने वाली
प्रभू की प्रार्थना.
संग्रह की अन्तिम कविता, जिसका शीर्षक "कविता खत्म नही होती" में वे लिखते हैं-
इसी शेष से
फिर विशेष तक
यात्राओं का
क्रम चलता है
कविता खत्म नहीं होती.
सचमुच इस संग्रह की कवितायें पढ़ने के बाद यह महसूस होता है की अच्छी कविता कभी खत्म नही होती है. वह हमेशा हमारी और हमारी आने वाली पीढियों की चेतना में विद्यमान रहती है.
राजीव रंजन
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