फिल्म ‘शकुंतला देवी: ह्यूमन कम्प्यूटर’ की समीक्षा
मानव कम्प्यूटर की मानवीय कहानी
राजीव रंजन
निर्देशक : अनु मेनन
कलाकार: विद्या बालन, सान्या मल्होत्रा, अमित साध, जिश्शु सेनगुप्ता, शीबा चड्ढा, प्रकाश बेलावाडी, बरनबी जागो, स्टीफन सैमसन, निशा आलिया
स्टार- 3.5
कुछ लोग अपने समय से काफी आगे होते हैं। मानव कम्प्यूटर के नाम से मशहूर गणितज्ञ और लेखिका शकुंतला देवी भी ऐसी ही गिनी-चुनी शख्सीयतों में से एक हैं। हमारे समाज में आमतौर पर यह माना जाता था कि गणित लड़कियों के लिए नहीं है, उनके लिए हिंदी, अंग्रेजी जैसे आट्र्स के विषय ही ठीक हैं। अगर किसी लड़की को साइंस पढ़ना हुआ भी, तो उसके लिए बायोलॉजी ही विकल्प होता था। वैसे समय में शकुंतला देवी (1929-2013) ने न सिर्फ इस धारणा को ध्वस्त किया, बल्कि मनुष्यों के लिए असंभव से दिखने वाली अंकगणित की गणनाओं को चुटकियों में हल करके पूरी दुनिया को हैरान कर दिया। कम्प्यूटर से भी कम समय में। वह भी बिना किसी औपचारिक शिक्षा के। उन्होंने स्कूल का मुंह भी नहीं देखा था। इसी असाधारण योग्यता की वजह से उन्हें ‘मानव कम्प्यूटर’ की उपाधि मिली और उनका नाम ‘गिनीज बुक ऑफ वल्ड्र्स रिकॉर्ड’ में शामिल किया गया।
लेकिन शकुंतला देवी महज एक अद्भुत गणितज्ञ भर नहीं थी। वह स्त्री सशक्तीकरण का जबर्दस्त उदाहरण भी थीं। जब ‘फेमिनिज्म’ जैसे शब्द चलन में भी नहीं थे, तब उन्होंने स्त्री स्वतंत्रता की मिसाल पेश की। 1950 के दशक में, जब भारतीय महिलाओं का घर से बाहर कदम रखना भी एक ‘घटना’ मानी जाती थी, तब उन्होंने विदेशों में जाकर अपनी गणितीय प्रतिभा की धाक मचाई। अपनी शर्तों पर जिंदगी जी। जिंदादिली के साथ जिंदगी का लुत्फ उठाया। कोई क्या कहगा, इसकी कभी कोई परवाह नहीं की। जब ‘एलजीबीटी’ जैसे शब्द का आविष्कार भी नहीं हुआ था, तब उन्होंने ‘द वल्र्ड ऑफ होमोसेक्सुअल’ जैसी किताब लिख दी थी। भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ लोकसभा का चुनाव भी लड़ा। वह एस्ट्रोलॉजर भी थीं और कुकिंग पर भी किताबें लिखीं।
बहुमुखी व्यक्तित्व की धनी इन्हीं शकुंतला देवी की जिंदगी का जश्न मनाती है फिल्म ‘शकुंतला देवी: ह्यूमन कम्प्यूटर’, जो ओटीटी प्लैटफॉर्म अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई है। सुखद संयोग है कि फिल्म की रिलीज से कुछ दिन पहले ही उन्हें इस रिकॉर्ड का प्रमाण पत्र दिया गया, जिसे उनकी बेटी अनुपमा बनर्जी ने ग्रहण किया। यह फिल्म महज एक असाधारण गणितज्ञ की जीवनगाथा भर नहीं है, बल्कि एक साधारण मनुष्य की भी कहानी है, जिसमें खूबियों के साथ खामियां भी होती हैं। यह एक प्रतिक्रियावादी बेटी के साथ-साथ एक प्रभुत्ववादी महिला की भी कहानी है, जो अपनी बेटी पर मजबूत पकड़ बना कर रखना चाहती है। यह एक मां-बेटी के उतार-चढ़ाव, प्रेम-कटुता से भरे रिश्ते की भी कहानी है, जिसे उनकी बेटी के नजरिये से पर्दे पर पेश किया गया है।
आम लोगों के लिए गणित एक नीरस विषय रहा है, लेकिन फिल्म में इसे बहुत दिलचस्प तरीके से पेश किया गया है। पटकथा को काफी शोध करके लिखा गया है। संवाद भी बहुत दिलचस्प हैं और आनंद देते हैं। चूंकि कहानी शकुंतला देवी की बेटी अनुपमा से विचार-विमर्श के बाद लिखी गई है, तो इसकी प्रामाणिकता में संदेह की गुंजाइश नहीं दिखती। हां, फिल्म को रोचकता प्रदान करने के लिए कुछ सिनेमाई छूट जरूर ली गई है।
पहले दृश्य से ही यह फिल्म रफ्तार पकड़ लेती है। इसमें सुस्ती नहीं है। घटनाएं पूरी रफ्तार के साथ आगे बढ़ती हैं और फिल्म दर्शकों पर अपनी गिरफ्त को कभी ढीली नहीं होने देती। हालांकि फिल्म के बड़े हिस्से में शकुंतला का व्यक्तित्व नकारात्मक दिखाई पड़ता है, लेकिन क्लाइमैक्स इस नकारात्मक धारणा को दूर करने का काम करता है। बतौर निर्देशक अनु मेनन काफी प्रभावित करती हैं। उन्होंने इसे पूरी तरह एक मनोरंजक फिल्म के रूप में प्रस्तुत किया है और इस तरीके से चित्रित किया है कि शकुंतला देवी के व्यक्तित्व का हर पहलू खुल कर सामने आता है।
विद्या बालन को शकुंतला देवी की भूमिका में देख कर ऐसा लगता है कि यह किरदार मानो उन्हीं के लिए बना था। उन्होंने किरदार को ऐसे पेश किया है कि लगता ही नहीं कि वे अभिनय कर रही हैं। उनका अभिनय बेहद स्वाभाविक और अभिभूूत करने वाला है। शकुंतला देवी की बेटी अनुपमा के रोल में सान्या मल्होत्रा अपनी छाप छोड़ती हैं। शकुंतला के पति परितोष बनर्जी के किरदार में जिश्शु सेनगुप्ता जंचे हैं। उनका अभिनय किरदार की जरूरतों पर पूरी तरह खरा उतरता है। अनुपमा के पति अजय अभय कुमार के किरदार में अमित साध का अभिनय सधा हुआ है। वह काफी दिनों के बाद एक टफ आदमी की भूमिका से अलग अवतार में दिखाई दिए हैं और इसमें भी फिट बैठते हैं। शकुंतला के पिता की भूमिका में प्रकाश बेलावाडी और ताराबाई की संक्षिप्त भूमिका में शीबा चड्ढा बढ़िया लगे हैं। कलाकारों का अभिनय इस फिल्म का एक और सशक्त पक्ष है। सभी कलाकारों ने अपनी जिम्मेदारी बढ़िया से निभाई है।
यह फिल्म जिंदगी से भरपूर एक असाधारण महिला की रोचक कहानी है। इसे बढ़िया तरीके से बनाया गया है, जिसे देख कर प्रेरणा भी मिलती है और लुत्फ भी आता है। निश्चित रूप से यह एक देखने लायक फिल्म है।
(31 जुलाई को livehindustan.com और 1 अगस्त, 2020 को हिंदुस्तान में प्रकाशित)
टिप्पणियाँ