खत्म हो रहा है सब!
राजीव रंजन

खेत, खेत नहीं रहे
नदी, नदी नहीं रही
पहाड़ अब पहाड़ नहीं रहे
हवा भी हवा नहीं रही, और
जंगल तो शायद रहे ही नहीं।
खेत अब भूख बन गए हैं
नदी अब बाढ़ हो गई
पहाड़ बौने और विधवा की मांग जैसे
हवा जहरीली हो गई है इन दिनों
सांस फूलने लगती है
जंगल अब अपार्टमेंट हो गए हैं।
क्योंकि
आदमी अब आदमी नहीं रहा
जबकि
सबके होने के लिए
आदमी का होना जरूरी था
बहुत जरूरी।

खेत, खेत नहीं रहे
नदी, नदी नहीं रही
पहाड़ अब पहाड़ नहीं रहे
हवा भी हवा नहीं रही, और
जंगल तो शायद रहे ही नहीं।
खेत अब भूख बन गए हैं
नदी अब बाढ़ हो गई
पहाड़ बौने और विधवा की मांग जैसे
हवा जहरीली हो गई है इन दिनों
सांस फूलने लगती है
जंगल अब अपार्टमेंट हो गए हैं।
क्योंकि
आदमी अब आदमी नहीं रहा
जबकि
सबके होने के लिए
आदमी का होना जरूरी था
बहुत जरूरी।
टिप्पणियाँ
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो NO करें ..सेव करें ..बस हो गया
आदमी अब आदमी नहीं रहा
जबकि
सबके होने के लिए
आदमी का होना जरूरी था
बहुत जरूरी।
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bilkul satya