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जनवरी, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विजेंद्र अनिल की कविता 'हमरो सलाम लीहीं जी'

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विजेंद्र अनिल संउसे देसवा मजूर, रवा काम लीहीं जी रउवा नेता हईं, हमरा सलाम लीहीं जी रउवा गद्दावाली कुरुसी प बइठल रहीं जनता भेंड़-बकरी ह, ओकर चाम लीहीं जी रउवा पटना भा दिल्ली बिरजले रहीं केहु मरे, रउवा रामजी के नाम लीहीं जी चाहे महंगी बढ़े, चाहे लड़े रेलिया रउवा होटल में छोकरियन से जाम लीहीं जी केहू कछुओ कहे त महटिउवले रहीं रउवा पिछली दुअरिया से दाम लीहीं जी ई ह गांधी के देस, रउवा होई ना कलेस केहू कांपऽता त कांपे, रउआ घाम लीहीं जी।

शलभ श्रीराम सिंह की कविता 'जीवन बचा है अभी'

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शलभ श्रीराम सिंह जीवन बचा है अभी जमीन के भीतर नमी बरकरार है बरकरार है पत्‍थर के भीतर आग हरापन जड़ों के अन्‍दर सांस ले रहा है। जीवन बचा है अभी रोशनी खोकर भी हरकत में हैं पुतलियां दिमाग सोच रहा है जीवन के बारे में खून दिल तक पहुंचने की कोशिश में है। जीवन बचा है अभी सूख गए फूल के आस-पास है खुशबू आदमी को छोड़कर भागे नहीं हैं सपने भाषा शिशुओं के मुंह में आकार ले रही है। जीवन बचा है अभी।