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इमरजेंसी के उन्नीस महीनों की दास्तान 'इंदु सरकार'

राजीव रंजन कलाकार: कीर्ति कुल्हरी, नील नीतिन मुकेश, तोतारॉय चौधरी, अनपुम खेर, शीबा चड्ढा, जाकिर हुसैन, सुप्रिया विनोद, प्रवीण डबास, अंकुर विकल निर्देशक: मधुर भंडाकर लेखन व पटकथा: अनिल पांडेय और संजय छेल संगीत: बप्पी लाहिड़ी और अनु मलिक रेटिंग: ढाई स्टार हमारे यहां पोलिटिकल फिल्में न के बराबर बनती हैं। दरअसल ऐसी फिल्मों को लेकर इतने विवाद खड़े कर दिए जाते हैं कि निर्माता ऐसे विषयों को हाथ लगाने से कतराते हैं। मधुर भंडारकर निर्देशित 'इंदु सरकार' भी एक पोलिटिकल ड्रामा है, जिसे लेकर काफी विवाद खड़े हुए। हालांकि मधुर खुशकिस्मत हैं कि उनकी फिल्म कुछ कट के साथ शुक्रवार को रिलीज हो गई, वर्ना कई फिल्में तो थियेटरों का मुंह तक नहीं देख पाईं। बहरहाल, 'इंदु सरकार' फिल्म का नाम द्विअर्थी है। इस मायने में, कि जैसा नाम से जाहिर होता है, इंदु सरकार पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर आधारित नहीं है, बल्कि इसके मुख्य किरदार का नाम इंदु सरकार है और उस किरदार का इंदिरा गांधी से कोई लेना-देना नहीं। इस फिल्म में पूर्व प्रधानमंत्री को बस एक सीन में दिखाया गया है, वह भी बिना किसी संवाद

एक फ्रेंड रिक्वेस्ट जो एक्सेप्ट ना हो सकी

राजीव रंजन करीब करीब मेरे सभी करीबी दोस्त फेसबुक पर हैं। शशांक भी फेसबुक पर आ गया था, लेकिन मेरी आभासी मित्रता सूची में नहीं था। एक दिन मैंने उसकी आईडी सर्च की और फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दी। कुछ महीने पहले की बात थी। बार-बार देखता था कि उसने एक्सेप्ट की या नहीं। जब भी देखता तो जवाब ‘नहीं’ में मिलता। उसकी इस बेजारी पर बड़ा गुस्सा आ रहा था। साला जब अपने अकाउंट में झांकने की फुरसत या इच्छा ही नहीं थी, तो आईडी बनाई ही क्यों थी! लेकिन मुझे क्या पता था कि उसे तो काल ने फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज रखी थी, मेरी रिक्वेस्ट स्वीकार करता भी कैसे। नालायक भयानक एक्सीडेंट का शिकार होकर आईसीयू में भर्ती था। पिछले तीन महीने से जिंदगी और मौत के बीच में झूल रहा था। कभी उम्मीद बंधती थी, कभी टूटती थी। और फिर सारे बंंधन तोड़ कर उसने मेरी रिक्वेस्ट की बजाय काल की फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर ली। दिन भी कौन-सा चुना, मेरे जन्मदिन वाला। 17 जुलाई। आज सबसे छोटी बहन छोटकी बुची (आरती) से पता चला। एक आदत उसकी कभी नहीं सुधरी। जब भी हम किसी काम से जाते थे और रास्ते में उसे कोई परिचित मिल जाता था, तो उस तीसरे के कहने पर वह उसी

ये मुन्ना माइकल है और थोड़ा रैम्बो भी

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राजीव रंजन, नई दिल्ली स्टार- ढाई स्टार कलाकार: टाइगर श्रॉफ, नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, निधि अग्रवाल, रोनित रॉय निर्देशक : शब्बीर खान माइकल जैक्सन ने अपने डांस से पूरी दुनिया में अनगिनत युवाओं को प्रेरित किया है। एमजे से प्रेरित होकर कई युवाओं ने डांस को अपना करियर बनाया। भारत में भी एमजे के दीवानों की कमी नहीं। अपने समय में बॉलीवुड के सबसे बड़े डांसिंग स्टार रहे मिथुन चक्रवती भी उनसे बहुत प्रभावित रहे हैं और उनके स्टेप्स करने की प्रैक्टिस भी किया करते थे। टाइगर श्रॉफ की ‘मुन्ना माइकल’ की प्रेरणा भी एमजे ही हैं। बस इसमें थोड़ा ‘रैम्बो’ को भी मिला दिया गया है। माइकल (रोनित रॉय) एक डांसर है, जो फिल्मों में ग्रूप डांस करता है। वह माइकल जैक्सन का बहुत बड़ा फैन है। एक दिन उसे काम से निकाल दिया जाता है, क्योंकि उसकी उम्र ज्यादा हो चुकी है। उसी रात उसे एक लावारिस शिशु रास्ते में पड़ा मिलता है। माइकल बच्चे का नाम मुन्ना रखता है और उसे घर ले आता है। मुन्ना डांस से दीवानगी की हद तक प्यार करता है। वह अपने दोस्तों के साथ क्लब वगैरह में डांस की शर्त जीत कर पैसे कमाता है। मुन्ना के बाबा को एक गंभीर बीम

बहुत प्यारा सा है ये जग्गा जासूस

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राजीव रंजन 3 स्‍टार कलाकार: रणबीर कपूर, कैटरीना कैफ, शाश्वत चटर्जी निर्देशक: अनुराग बसु संगीत: प्रीतम चक्रवर्ती एक कहावत है ‘देर आए दुरुस्त आए'। अनुराग बसु निर्देशित फिल्म ‘जग्गा जासूस’ पर ये कहावत सौ फीसदी तो नहीं, लेकिन काफी हद ठीक बैठती है। अनुराग की ये रणबीर कपूर-कैटरीना कैफ स्टारर फिल्म काफी समय से लटकी हुई थी, कई बार इसकी रिलीज की तारीखें बदली। एक समय तो ऐसा भी लगने लगा था कि यह फिल्म थियेटरों का मुंह देख भी पाएगी कि नहीं। बहरहाल, यह साफ कर देना ठीक रहेगा कि भले ही इसके नाम में जासूस शब्द जुड़ा है, लेकिन यह पारम्परिक जासूसी फिल्मों जैसी नहीं है। ऐसा लगता है, अनुराग ने इस फिल्म को बच्चों को ध्यान में ज्यादा रख कर बानाया है। फिल्म की शुरुआत दिसंबर, 1995 के बहुचर्चित पुरुलिया हथियार कांड के संदर्भ से शुरू होती है और फिल्म का मूल विषय हथियारों की तस्करी से जुड़ा है लेकिन इसका प्रस्तुतीकरण एक आम जासूसी थ्रिलर जैसा नहीं है। जग्गा (रणबीर कपूर) जन्म से अनाथ है और उसका लालन-पालन अस्पताल में होता है। उसी अस्पताल में एक दिन बादल बागची उर्फ टूटी फूटी (शाश्वत चटर्जी) भी भर्ती होत

मैम से मॉम का सफर और प्रतिशोध

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राजीव रंजन नया क्या है? यह एक ऐसा सवाल है, जिससे हम बारहां रूबरू होते हैं। फिल्म ‘मॉम’ के मुताल्लिक ये सवाल किया जाए तो जवाब है- कुछ भी नया नहीं है। लेकिन... लेकिन... यहीं पर यह बात भी तो आती है... आप क्या कहते हैं, इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि आप किस तरह कहते हैं। और इस कसौटी पर मॉम काफी हद तक खरी उतरती है। रुटीन कहानी होने के बावजूद यह फिल्म अपने प्रस्तुतीकरण की वजह से ज्यादातर समय बांधे रखती है। फिल्म की शुरुआत स्कूल के दृश्य से होती है। देवकी (श्रीदेवी) बायोलॉजी की टीचर है। उसकी क्लास में उसकी सौतेली बेटी आर्या (सजल अली) भी है, जिसे उसका क्लासमेट मोहित भद्दे मैसेज करता है। देवकी उसका मोबाइल फेंक देती है। आर्या को देवकी अपनी बेटी मानती है, लेकिन देवकी को आर्या अपनी मां नहीं मानती। उसे मां की बजाय मैम कहती है। उसे लगता है कि उसके पिता आनंद सब्बरवाल (अदनान सिद्दीकी) उसकी मां को भूल गए हैं। उसे जाने-अनजाने लगता है कि ऐसा देवकी की वजह से हुआ है। लिहाजा वह देवकी की बेटी को तो स्वीकार कर लेती है, लेकिन देवकी को स्वीकार नहीं कर पाती। रिश्तों की इसी खींचतान के बीच एक दिन आर्या अपने