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फिल्म ‘आर्टिकल 15’ की समीक्षा

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एक मौजूं मसले पर तीखी टिप्पणी राजीव रंजन लेखक व निर्देशक : अनुभव सिन्हा कलाकार: आयुष्मान खुराना ,  ईशा तलवार ,  मनोज पाहवा ,  सयानी गुप्ता ,  कुमुद मिश्रा तीन स्टार ( 3  स्टार) संविधान की ‘धारा 15’ यानी समानता का अधिकार। यह धारा राज्य द्वारा जाति, धर्म, नस्ल, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव से नागरिकों की रक्षा करती है। दुर्भाग्य से आजादी के कई दशक बाद भी इस धारा के लक्ष्य तक हमारी व्यवस्था, हमारा समाज नहीं पहुंच पाया है। समाज में जाति, धर्म, नस्ल, लिंग के आधार पर भेदभाव भले ही कुछ दशक पूर्व जैसा न हो, लेकिन अभी भी मौजूद है और ऐसी घटनाएं अकसर सुनने को मिल जाती हैं, जो समाज के सभ्य होने के दावे पर प्रश्नचिह्न खड़े करती रहती हैं। अनुभव सिन्हा निर्देशित ‘आर्टिकल 15’ ऐसी ही एक घटना के जरिये सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक व्यवस्था पर तीखी टिप्पणी करती है। आईपीस अधिकारी अयान रंजन (आयुष्मान खुराना) की पोस्टिंग उत्तर प्रदेश के एक भीतरी इलाके लालगांव में हो जाती है। वहां चीजें वैसी ही चलती हैं, जैसे दशकों से चलती आ रही हैं। उस इलाके के एक गांव की तीन लड़कियां गायब हो जाती हैं। परिवार वा

फिल्म ‘टॉय स्टोरी 4’ की समीक्षा

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खिलौनों की दुनिया उन्हीं की नजर से राजीव रंजन निर्देशक: जॉश कूले वॉयस ओवर: टॉम हैंक्स ,  टिम एलन ,  एनी पॉट्स ,  टोनी हेल ,  क्रिस्टीना हेंडरिक्स ,  मेडेलिन मैकग्रॉ ,  आदि बचपन और खिलौनों का अटूट रिश्ता है। समय के साथ खिलौने बदल गए ,  दिनोंदिन हाई-टेक होते गए। लेकिन एक बात अब भी नहीं बदली है ,  वह है बच्चों और खिलौनों का रिश्ता। हालांकि एक समय ऐसा आता है ,  जब बच्चे बड़े हो जाते हैं और अपने प्यारे खिलौनों से दूर हो जाते हैं। अगर खिलौने बोल सकते ,  तो शायद वे हमें बता पाते कि उन्हें भी अपने प्यारों से बिछड़ने पर तकलीफ होती है। इसके बावजूद वे फिर से दूसरे बच्चों को खुश करने में जुट जाते हैं ,  क्योंकि  ‘ खिलौनों की जिंदगी ’  ही बच्चों को खुश करने के लिए है।  ‘ टॉय स्टोरी  4’  यही बात कहने की कोशिश करती है। यह लोकप्रिय  ‘ टॉय स्टोरी ’  फ्रेंचाइजी की संभवत: आखिरी फिल्म है ,  जो पिछली किश्त के नौ साल बाद और पहली किश्त के  24  साल बाद रिलीज हुई है। फिल्म की कहानी वहीं से आगे बढ़ती है ,  जहां वह पिछली किश्त में खत्म हुई थी। काउबॉय वूडी अब एंडी के जीवन से निकल कर बॉनी के घर आ गया है

फिल्म ‘गेम ओवर’ की समीक्षा

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‘ डर के आगे जीत है ’  का संदेश देती फिल्म राजीव रंजन कलाकार: तापसी पन्नू ,  विनोदिनी वैद्यनाथन ,  अनीष कुरुविला ,  संचना नटराजन ,  रम्या सुब्रमण्यण ,  पार्वती टी. निर्देशक: अश्विन सरवनन स्टार-  3 ( तीन स्टार) मनुष्य अपने जीवन में घटने वाली घटनाओं पर अपनी समझ और सामर्थ्य के अनुसार प्रतिक्रिया देता है। और वह जिस प्रकार की प्रतिक्रिया देता है ,  देता है घटना का परिणाम उसी के अनुरूप होता है। आपका नजरिया आपके एक्शन को निर्धारित करता है और आपका एक्शन ,  परिणाम को। तापसी पन्नू अभिनीत  ‘ गेम ओवर ’  फिल्म का संदेश यही है। स्वप्ना (तापसी पन्नू) एक कामकाजी लड़की है ,  जो गुड़गांव के पॉश इलाके में रहती है। वह वीडियो गेम की दीवानी है। वह अपने ही बनाए स्कोर को पीछे छोड़ने की कोशिश में लगी रहती है। उसके साथ केवल उसकी घरेलू सहायिका कलम्मा (विनोदिनी वैद्यनाथन) रहती है। स्वप्ना को अंधेरे से डर लगता और और वह दो सेकंड से ज्यादा देर तक अंधेरे का सामना नहीं कर पाती। एक साल पहले वह एक हादसे का शिकार होती है ,  जो उसके मस्तिष्क में बैठ गया है। उसके साथ जिस दिन हादसा हुआ था ,  उसी समय के आसपास एक

फिल्म ‘एक्स-मेन: डार्क फीनिक्स’ की समीक्षा

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तकनीक ,  एक्शन और दर्शन की रोचक रेसिपी राजीव रंजन निर्देशक : सिमोन किंसबर्ग कलाकार: सोफी टर्नर ,  जेम्स मैकवॉय ,  जेसिका चैस्टेन ,  माइकल फैसबेंडर ,  टाय शेरिडेन ,  जेनिफर लॉरेंस ,  निकोलस हाउट ,  एलेक्जेंड्रा शिप ,  कोडी स्मिथ मैकफी तीन स्टार ( 3  स्टार) मार्वल कॉमिक्स की फिल्में भारतीय दर्शकों को लुभा रही हैं, उनके लिए भारत मुनाफे का बाजार साबित हो रहा है। शायद यही वजह है कि यहां इसकी फिल्में निरंतरता के साथ रिलीज हो रही हैं। और कई बार तो अमेरिका से पहले भी भारत में रिलीज हो रही हैं। ‘एक्स-मेन: डार्क फीनिक्स’ भी भारत में अमेरिका से दो दिन पहले रिलीज हुई है। सलमान खान की बहुचर्चित और बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘भारत’ के साथ इस फिल्म को रिलीज करना निश्चित रूप से साहस का काम है और आत्मविश्वास को दर्शाता है। ‘डार्क फीनिक्स’ एक्स-मेन सिरीज की आखिरी किश्त मानी जा रही है। मुख्य रूप से यह शानदार एक्शन, ग्राफिक्स से भरपूर एक सुपरहीरो वाली फिल्म है, जिसमें हर किरदार के पास अद्भुत और अनूठी शक्तियां हैं। लेकिन बीच-बीच में यह फिल्म दर्शन की भी थोड़ी खुराक देती चलती है। मसलन शक्ति न तो अच

फिल्म नक्काश की समीक्षा

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सद्भाव को नक्श करने की कोशिश राजीव रंजन निर्देशक: जैगम इमाम कलाकार: इनामुल हक ,  शारिब हाशमी ,  कुमुद मिश्रा ,  पवन तिवारी दो स्टार ( 2  स्टार) सवधर्म समभाव और सह-अस्तित्व की भावना भारतीय संस्कृति की मूल भावना रही है। हमारे यहां कहा भी गया है-  ‘ संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् ’ ( हम साथ मिल कर चलें ,  साथ मिलकर बोलें ,  हमारे मन एक हों)। जब-जब इन मूल्यों को चुनौती मिलती है ,  समाज के संवेदनशील लोग उसका डट कर मुकाबला करते हैं। भले ही इसके लिए उन्हें कोई भी कीमत चुकानी पड़े। जैगम इमाम की फिल्म  ‘ नक्काश ’  यही संदेश देती है। बनारस का अल्लारक्खा सिद्दीकी (इनामुल हक) एक नक्काश है। वह मंदिरों के अंदर नक्काशी का काम करता है। उसके बाप-दादा और पुरखे भी यही काम करते थे। उसका मानना है कि भगवान इनसान-इनसान में कोई फर्क नहीं करते ,  बल्कि फर्क इनसान करता है। अल्लारक्खा की पत्नी का देहांत हो चुका है। उसके परिवार में सिर्फ उसका  6-7  साल बेटा मोहम्मद (हरमिंदर सिंह) है ,  जिसे वह घर में छोड़ कर अपने काम पर जाता है और बाहर से ताला लगा देता है। भगवानदास वेदांती (कुमुद मिश्रा) ब