संदेश

जून, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मंटो की कहानियों जैसी तासीर नहीं पैदा कर पाती 'मंटोस्तान'

चित्र
राजीव रंजन बंटवारे की स्याह हकीकत को अगर किसी ने सबसे ज्यादा प्रामाणिकता के साथ अपनी कहानियों में बयां किया है तो वह हैं सआदत हसन मंटो। उनकी कहानियों में बंटवारे के समय के हालात, लोगों की बेचारगी, लोगों की दरिंदगी इस नंगे और तल्ख रूप में सामने आती है कि रूह बेचैन हो जाती है। उनकी कहानियां एक बार पढ़ने के बाद हमेशा के लिए जेहन में बस जाती है। मंटो की कहानियों की तासीर ही ऐसी है कि वे पढ़ने वाले को झकझोर कर रख देती है। कभी-कभी तो लगता है कि उनके लेखन में इतनी तल्खी क्यों भरी है। इस सवाल का मंटो इन शब्दों में जवाब देते हैं- ‘जमाने के जिस दौर से हम इस वक्त गुजर रहे हैं, अगर आप उससे नावाकिफ हैं तो मेरे अफसाने पढ़िए। अगर आप इन अफसानों को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो इसका मतलब है कि यह जमाना नाकाबिले-बर्दाश्त है। मुझमें जो बुराइयां है, वो इस अहद (समय) की बुराइयां हैं। मेरी तहरीर (रचना) में कोई नुक्स नहीं। जिस नुक्स (त्रुटि) को मेरे नाम से मंसूब (संबंधित) किया जाता है, दरअसल मौजूदा निजाम (व्यवस्था) का नुक्स है- मैं हंगामा पसंद नहीं। मैं लोगों के खयालातों-जज्बात में हैजान (अशांति) पैदा करना नहीं च

भय का माहौल रचने में नाकाम 'दोबारा'

चित्र
राजीव रंजन आप किसी फिल्म के बारे में यह सोच कर जाते हैं कि वह एक हॉरर फिल्म है, और पूरे समय यह इंतजार करते रह जाते हैं कि बदन में झुरझुरी अब होगी, अब होगी। अब रोंगटे खड़े होंगे, लेकिन अंत तक ऐसा होता नहीं और आखिर आप ठगा हुआ-सा महसूस करते हुए सिनेमाहॉल से बाहर आ जाते हैं। 'दोबारा: सी योर ईविल' दर्शकों के साथ ऐसा ही बर्ताव करती है। बस एकाध सीन अपवाद के रूप में मान सकते हैं। 'दोबारा' 2014 में आई हॉलीवुड फिल्म 'ऑक्यूलस' का हिंदी रीमेक है और इसके निर्देशक माइक फ्लैनेगन 'दोबारा' से कार्यकारी निर्माता के रूप में जुड़े हुए हैं। फिल्म का पूर्वाद्र्ध बहुत धीमा है। उत्तराद्र्ध कुछ उम्मीद जगाता है, लेकिन निर्देशक घटनाओं को असरकारक तरीके से पेश नहीं कर पाते, लिहाजा फिल्म गति नहीं पकड़ पाती। फिल्म की कहानी एक अभिशप्त आईने से जुड़ी हुई है, जिसके चलते नताशा (हुमा कुरेशी) व कबीर मर्चेंट (साकिब सलीम) का परिवार बर्बाद हो जाता है। इसलिए नताशा उस आईने को नष्ट करना चाहती है। इस काम में वह अपने भाई कबीर मदद मांगती है, लेकिन चीजें उसके अनुसार नहीं घटतीं। एक तरह से देखा जाए

हंसाते-हंसाते बखिया उधेड़ती है 'हिंदी मीडियम'

चित्र
राजीव रंजन ‘भारत में अंग्रेजी एक भाषा नहीं, क्लास है।’ और इस क्लास में पहुंचने के लिए हर क्लास, खासकर हिंदी मीडियम वाला मिडिल क्लास कुछ भी करने को तैयार रहता है। विडंबना है कि अंग्रेजी को गरियाने वाला क्लास दिन-रात इस क्लास में पहुंचने की जुगत में लगा रहता है। आप किसी भी भाषा में पारंगत है, लेकिन आपको अंग्रेजी नहीं आती तो आपका ज्ञान व्यर्थ है। आप अपनी योग्यता और कड़ी मेहनत की बदौलत अच्छा-खासा कमाते-खाते हैं, लेकिन आपको अंग्रेजी नहीं आती तो सब बेकार। इरफान खान और सबा कमर स्टारर ‘हिंदी मीडियम’ इसी गंभीर मुद्दे को बड़े मनोरंजक अंदाज में पेश करती है। राज बत्रा (इरफान खान) की चांदनी चौक में गारमेंट की बड़ी दुकान है, जहां वह प्रसिद्ध ड्रेस डिजाइनरों के डिजाइन किए किए हुए परिधानों की कॉपी बेचता है। वह अपने काम और माहौल से खुश है, लेकिन उसकी पत्नी मीता (सबा कमर) अपनी बेटी पिया (दीशिता सहगल) के भविष्य को लेकर काफी आशंकित रहती है। उसे लगता है कि उसकी बेटी का दाखिला अगर दिल्ली के टॉप इंग्लिश मीडियम स्कूल में नहीं हुआ तो वह अच्छी अंग्रेजी नहीं सीख पाएगी और अपने हमउम्र बच्चों से पिछड़ जाएगी। इससे उ

विश्वास की जीत की कहानी

चित्र
राजीव रंजन ‘कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता/ एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों।’ अगर बहुत संक्षेप में ‘ट्यूबलाइट’ के बारे में बताना हो तो हिंदी गजल के सम्राट दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां सटीक बैठती हैं। इस फिल्म का मूल संदेश है- यकीन से पत्थर को भी हिलाया जा सकता है। इसी भाव के ईर्द-गिर्द पूरी फिल्म का ताना-बाना बुना गया है। यह युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी अमेरिकी फिल्म ‘लिटिल बॉय’ से प्रेरित है। बस अंतर ये है कि जहां ‘लिटिल बॉय’ पिता-पुत्र के प्यार की कहानी है, वहीं ‘ट्यूबलाइट’ में निर्देशक कबीर खान ने दो भाइयों के प्यार की कहानी को आधार बनाया है। कुमायूं क्षेत्र (वर्तमान में उत्तराखंड) के जगतपुर गांव में दो भाई हैं लक्ष्मण सिंह बिष्ट (सलमान खान) और भरत सिंह बिष्ट (सोहेल खान)। उनके माता-पिता का बचपन में ही देहांत हो गया था। रामायण के विपरीत यहां लक्ष्मण बड़ा है और भरत छोटा। लक्ष्मण को सब ट्यूबलाइट कहते हैं, क्योंकि उसे कोई भी बात जल्दी समझ में नहीं आती। वह थोड़ा मंदबुद्धि है। लक्ष्मण उम्र में तो बड़ा है, लेकिन बड़े भाई का कर्तव्य छोटा भाई भरत उठाता है। जब दोनों बच्चे थे, तब

मनोरंजन की ठीक-ठाक खुराक देते है बैंक चोर

चित्र
कुछ फिल्में ऐसी होती हैं, जिनमें आप कुछ तलाशने की कोशिश न करें तो वो आपको मनोरंजन की ठीक-ठाक खुराक दे देती हैं। लेकिन जैसे ही आप उसमें तार्किकता, संदेश आदि ढूंढने की कोशिश करने लगते हैं, आपके हाथ से मनोरंजन भी फिसलने लगता है। यशराज की नई फिल्म ‘बैंक चोर’ भी एक ऐसी ही फिल्म है। इस फिल्म के बारे में एक बात और कही जा सकती है कि यह यशराज की ही ‘धूम’ सीरिज से बहुत प्रेरित है। हालांकि ‘धूम’ सीरिज का ट्रीटमेंट और फलक ‘बैंक चोर’ से बहुत बड़ा है। वैसे इतना तो कह ही सकते हैं कि यशराज ने अपना ही ईंट और रोड़ा उठा कर ‘बैंक चोर’ का कुनबा जोड़ा है। चंपक (रितेश देशमुख) एक बैंक चोर है, जो अपने दो साथियों गेंदा (विक्रम थापा) और गुलाब (भुवन अरोड़ा) के साथ मिल कर बैंक चोरी करने जाता है। वहां तीनों जिस तरह की हरकते करते हैं, उससे बैंक के अंदर बंधकों को लगता है कि तीनों पहली बार बैंक चोरी करने आए हैं। इस बैंक चोरी से निबटने का जिम्मा सीबीआई ऑफिसर अमजद खान (विवेक ओबेरॉय) को दिया जाता है। उसे लगता है कि यह कोई मामूली बैंक चोरी नहीं है, बल्कि इसमें कोई बड़ा खेल है। मौका-ए-वारदात पर मीडिया का भी जमावड़ा है, जो प

दर्शकों से नहीं जुड़ पाया कोई 'राब्ता'

चित्र
राजीव रंजन पुनर्जन्म को लेकर भारतीय समाज में बड़ा कौतुहल रहता है। पुनर्जन्म के कितने किस्से हमें अनायास ही सुनने को मिल जाते हैं। शायद यही वजह है कि पुनर्जन्म हमेशा से बॉलीवुड को लुभाता रहा है। ज्यादा पीछे न जाएं तो भी हाल के कुछ वर्षों में इस विषय पर कुछ फिल्में बनी हैं, मसलन- शाहिद कपूर व प्रियंका चोपड़ा स्टारर ‘तेरी मेरी कहानी’ और सनी लियोने स्टार ‘एक पहेली लीला’। यह ऐसा विषय है, जिसे सही तरह से प्रस्तुत किया जाए तो दर्शकों से राब्ता जुड़ जाता है और अगर ठीक से न संभाला जाए तो रायता फैल जाता है। सुशांत सिंह राजपूत और कृति सैनन स्टारर ‘राब्ता’ के साथ कुछ ऐसा ही हुआ लगता है। यह प्रसिद्ध निर्माता दिनेश विजन की बतौर निर्देशक पहली फिल्म है, जो रिलीज से पहले कई कारणों से चर्चा में रही। कभी दीपिका पादुकोण के आइटम नंबर करने की खबर की वजह से तो कभी तेलुगू फिल्म ‘मगधीरा’ से प्लॉट चोरी के आरोपों की वजहों से। हालांकि ‘मगधीरा’ के निर्माता ने प्लॉट चोरी करने के केस को ‘राब्ता’ के रिलीज से ठीक पहले वापस ले लिया, जिससे फिल्म को बहुत राहत मिली। गौरतलब है कि ‘मगधीरा’ भी पुनर्जन्म की कहानी है, लेकिन उस