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थोड़ा देवदास और थोड़ा हैमलेट

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राजीव रंजन  फिल्म दास देव की समीक्षा कलाकार: सौरभ शुक्ला, राहुल भट्ट, रिचा चड्ढा, अदिति राव हैदरी, अनुराग कश्यप, दिलीप ताहिल, विनीत कुमार सिंह निर्देशक: सुधीर मिश्रा 2.5 स्टार (ढाई स्टार) शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के ‘देवदास’ ने भारतीय फिल्मकारों को अपनी ओर बहुत आकर्षित किया है। वह मूक सिनेमा से लेकर अब के अत्याधुनिक दौर तक भारतीय फिल्मकारों का पसंदीदा किरदार बना हुआ है। यही वजह है कि नरेश चंद्र मित्र,  प्रथमेश चंद्र बरुआ, बिमल राय से लेकर संजय लीला भंसाली, अनुराग कयश्प और अब सुधीर मिश्रा जैसे फिल्मकारों ने उसे अपने दृष्टिकोण के अनुसार पेश किया है। परेश बरुआ ने तो उसे दो वर्षों के अंतराल (1935-37) में तीन भाषाओं- बांग्ला, हिन्दी और असमिया- में निर्देशित किया था। यहां तक कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी ‘देवदास’ पर फिल्म बन चुकी है। बहरहाल, पहले के फिल्मकारों ने उसे मूल उपन्यास के आसपास ही रखने का प्रयास किया था, लेकिन संजय लीला भंसाली ने उसमें कुछ परिवर्तन कर पेश किया। वहीं अनुराग कश्यप ने उसे एक बिल्कुल नए संदर्भ में पेश किया। अब सुधीर मिश्रा ने देवदास को बिल्कुल अलग तरह

जान नहीं है नानू की जानू में

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राजीव रंजन कलाकार: अभय देओल, पत्रलेखा, मनु ऋषि, राजेश शर्मा, बृजेंद्र काला, मनोज पाहवा, रेशमा खान निर्देशक: फराज हैदर निर्माता: साजिद कुरेशी लेखक: मनु ऋषि 1.5 स्टार (डेढ़ स्टार) ‘हॉरर कॉमेडी’ सुनने में बड़ा अच्छा लगता है। डर के साथ हंसी। देखने में भी अच्छा लगता, अगर दोनों को सही तरीके से मिलाया गया होता तो। लेकिन उसके लिए अच्छी स्क्रिप्ट, अच्छे निर्देशन और बढ़िया प्रस्तुतीकरण की जरूरत थी। दुर्भाग्य से फराज हैदर निर्देशित अभय देओल की ‘नानू की जानू’ में ऐसा हो नहीं पाया। लिहाजा फिल्म ‘भानुमति का कुनबा’ कुनबा बन कर रह गई, जिसमें ‘कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा’ लगा है। आनंद यानी नानू (अभय देओल) प्रॉपर्टी माफिया का एजेंट है। वह नोएडा में डब्बू (मनु ऋषि) और अपने कुछ सहयोगियों के साथ पहले मकान किराये पर लेता है, फिर उस पर कब्जा कर लेता है और मकान मालिक से औने-पौने दाम में जबर्दस्ती खरीद कर प्रॉपर्टी माफिया को दे देता है। एक दिन वह अपने काम के सिलसिले में अपनी गाड़ी से कहीं जा रहा होता है। रास्ते में उसे एक घायल लड़की सड़क पर पड़ी दिखती है। वह उसे अस्पताल ले जाता है, लेकिन लड़की बच नहीं

देखने नहीं, महसूस करने वाली फिल्म है 'ऑक्टोबर'

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राजीव रंजन 3.5 स्टार (साढ़े तीन स्टार) कलाकार: वरुण धवन, बनिता संधू, गीतांजलि राव, साहिल वेडोलिया निर्देशक: शूजित सरकार निर्माता: रोनी लाहिरी, शील कुमार कहानी, पटकथा व संवाद: जूही चतुर्वेदी सिनमेटोग्राफी: अविक मुखोपाध्याय संगीत: शांतनु मोइत्रा, अभिषेक अरोड़ा और अनुपम रॉय संपादन: चंद्रशेखर प्रजापति कुछ फिल्में ऐसी होती हैं, जो मनोरंजन नहीं करतीं, मन को छू जाती हैं, मन में गहरे बैठ जाती हैं। शूजित सरकार निर्देशित ‘ऑक्टोबर’ भी ऐसी ही फिल्म है। प्रख्यात साहित्यकार अज्ञेय की प्रसिद्ध पंक्ति है- ‘दुख आदमी को मांजता है’। और जाहिर है, मंजने के बाद कोई भी चीज साफ हो जाती है, निर्मल हो जाती है। कई त्रासदियां हमें एक ज्यादा संवेदनशील मनुष्य बनाती हैं। फिल्म के नायक दानिश को भी त्रासदी ऐसे ही मांजती है और एक दर्शक के रूप में हम भी उस प्रक्रिया से अछूते नहीं रहते। और इस दौरान एक उम्मीद के टूट जाने के डर और फिर से जिंदा हो जाने की खुशी के बीच बार-बार आंखों में नमी महसूस करते हैं और कभी-कभी होठों पर निश्छल मुस्कराहट के कतरे भी। दानिश वालिया उर्फ डैन (वरुण धवन) दिल्ली के एक

कुछ मिसिंग है इस ‘मिसिंग’ में

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राजीव रंजन फिल्म समीक्षा: मिसिंग दो स्टार (2 स्टार) कलाकार: मनोज बाजपेयी, तब्बू, अन्नू कपूर निर्देशक: मुकुल अभ्यंकर निर्माता: मनोज बाजपेयी, शीतल भाटिया, नीरज पांडेय संगीत: एम.एम. क्रीम अगर किसी साइको-थ्रिलर मूवी में साइको थोड़ा कम हो, तो भी थ्रिल नाव पार लगा देता है। लेकिन अगर किसी साइको-थ्रिलर फिल्म में थ्रिल को गायब कर दिया जाए तो सारा मजा गायब हो जाता है। मनोज बाजपेयी और तब्बू की ‘मिसिंग’ से थ्रिल मिसिंग है, इसलिए यह फिल्म अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाती। यह कहानी है सुशांत दूबे (मनोज बाजपेयी) और अपर्णा (तब्बू) की। सुशांत रीयूनियन (हिन्द महासागर में एक द्वीप, जो फ्रांस का क्षेत्र है) का निवासी है और एक रात वह अपर्णा तथा तीन साल की बेटी तितली को लेकर क्रूज से मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुइस आता है। सुशांत वहां के एक खूबसूरत रिसॉर्ट में दो कमरों का स्वीट बुक कराता है। सुबह जब अपर्णा जगती है तो पाती है कि तितली कमरे से गायब है। वह सुशांत को बताती है। दोनों तितली को आसपास ढूंढ़ते हैं, लेकिन वह नहीं मिलती। वे रिसॉर्ट के स्टाफ को यह बात बताते हैं। रिसेप्शनिस्ट समझाती ह