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होलिस्टिक खानपान: तन के साथ मन की भी सेहत

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व्यस्तता, हड़बड़ी और सुविधा वाली जीवनशैली की बड़ी कीमत हमें चुकानी पड़ रही है। इसकी वजह से पिछले कुछ सालों में डायबिटीज, हृदय रोग, मोटापा और अवसाद जैसी बीमारियों में कई गुणा वृद्धि हुई है। यही वजह है कि इन दिनों काफी लोग होलिस्टिक खानपान की ओर देखने लगे हैं। राजीव रंजन का आलेख: महाभारत से जुड़ा एक प्रसिद्ध आख्यान है। जब भीष्म पितामह शरशैय्या पर पड़े हुए थे। श्रीकृष्ण और पांडव उनसे मिलने गए। सब उनसे अपनी अपनी जिज्ञासाएं प्रकट कर रहे थे और भीष्म पितामह उनके प्रश्नों का उत्तर दे रहे थे। तभी द्रौपदी ने उनसे एक चुभता हुआ प्रश्न किया- पितामह! आप तो महाज्ञानी और महावीर थे। कौरव-पांडव और अन्य सभी आपका बहुत सम्मान करते थे। लेकिन भरी सभा में जब दु:शासन मेरा चीरहरण कर रहा था, तब आप मौन रहे! मुझे उस अपमान से बचाने के लिए आपने हस्तक्षेप क्यों नहीं किया? भीष्म पितामह ने उत्तर दिया- बेटी! उस समय मैं दुर्योधन का अन्न खा रहा था, इसलिए मेरी बुद्धि नष्ट हो गई और मैं मौन भरी सभा में अपनी आंखों के सामने वह सब होता देखता रहा। भारत में बहुत पहले से यह धारणा प्रचलित रही है कि हम जो खाते हैं, उसका अच्छा या

मैं ‘माइंडलेस सिनेमा’ नहीं बनाता: नीला माधब पांडा

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नीला माधब पांडा एक ऐसे फिलमकार हैं, जो सिनेमा का उपयोग मुद्दे की बात उठाने के लिए करते हैं। चाहे पढ़ाई-लिखाई के महत्व को बताती ‘आई एम कलाम’ हो या फिर कन्या भ्रूण हत्या पर ‘जलपरी’ हो, अपनी हर फिल्म का उपयोग उन्होंने समाज के लिए जरूरी बात कहने में किया है। अब वह जलवायु परिवर्तन पर ‘कड़वी हवा’ लेकर आए हैं, जो इस विषय पर भारत की पहली हिंदी फिल्म है। उनसे राजीव रंजन की बातचीत: ‘कड़वी हवा’ क्या है? क्या यह केवल भारत में क्लाइमेट के बदलाव पर बात करती है या इसकी चिंता पूरी दुनिया को लेकर है? चीजें बदल चुकी हैं। पूरी दुनिया का क्लाइमेट बदल चुका है और हमारा जीवन इससे प्रभावित हो रहा है। नवंबर खत्म होने को है और दिल्ली में अभी ठंड पूरी तरह शुरू नहीं हुई। इस फिल्म के जरिये हम किसी एक जगह की पृष्ठभूमि में पूरी दुनिया के बारे में बात कर रहे हैं। हमारी फिल्म की चिंता का विषय केवल भारत नहीं है, बल्कि हमारी चिंता पूरी दुनिया के संदर्भ में है। आप 12 वर्ष पहले इस मुद्दे से जुड़ी एक डॉक्यूमेंटरी ‘क्लाइमेट्स फस्र्ट ऑरफान’ भी बना चुके हैं। क्या ‘कड़वी हवा’, ‘क्लाइमेट्स फस्र्ट ऑरफान’ का विस्तार है? ‘क्ल

कड़वी हकीकत की मार्मिक कहानी

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राजीव रंजन साढ़े तीन स्टार फिल्म: कड़वी हवा निर्देशक: नीला माधब पांडा कलाकार: संजय मिश्रा, रणवीर शोरी, तिलोत्तमा शोम, भूपेश सिंह, एकता सावंत कला की सार्थकता तभी है, जब वह यथास्थिति को चुनौती दे। जब आप बेचैन हों तो आपको शांति से भर दे और जब आप निश्चेष्ट हों तो आपको बेचैन कर दे। नीला माधब पांडा की ‘कड़वी हवा’ बेचैन करती है। यह मनोरंजन नहीं करती है, लेकिन मन को झकझोरती है। और ऐसा झकझोरती है कि जब आप सिनेमाहॉल से निकलेंगे तो थोड़े हिले हुए तो जरूर होंगे। यह फिल्म दो भिन्न भौगोलिक क्षेत्रों- चंबल इलाके के एक नेत्रहीन वृद्ध यानी बाबा (संजय मिश्रा) और ओडिशा के तटीय क्षेत्र के एक गांव के गन्नू (रनवीर शौरी) की कहानी है। दोनों प्रकृति की मार से सहमे अपने घर-परिवार को बचाने के लिए जी-जान से लगे हैं। एक की बेचैनी उसकी दयनीयता में प्रकट होती है और दूसरे की हृदयहीनता में। संजय मिश्रा सूखा प्रभावित बुंदेलखंड के एक गांव महुआ के निवासी हैं। उनके बेटे मुकुंद (भूपेश सिंह) पर बैंक का कर्ज चढ़ गया है। वह हमेशा कर्ज की चिंता से घिरा रहता है और बाबा इस चिंता से घिरे रहते हैं कि कहीं उनका बेटा दूसरे

निराश नहीं करती है सुलु

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राजीव रंजन कलाकार: विद्या बालन, मानव कौल, नेहा धूपिया, विजय मौर्य, अभिषेक शर्मा निर्देशक व लेखक: सुरेश त्रिवेणी ढाई स्टार (2.5 स्टार) एक अच्छी फिल्म वह होती है, जो अपने विषय, प्रस्तुतीकरण, सिनेमाई प्रभाव और कलाकारों के अभिनय की बदौलत शुरू से लेकर आखिर तक पटरी पर रहती है। एक सामान्य फिल्म वह होती है, जो काफी देर तक पटरी पर रहती है, लेकिन फिर पटरी से उतर जाती है। हालांकि वह दुबारा पटरी पर आती है, लेकिन तब तक अपना वह प्रभाव खो चुकी होती है, जो उसने शुरुआती क्षणों में पैदा किया था। विद्या बालन की ‘तुम्हारी सुलु’ दूसरी वाली श्रेणी में आती है। फिल्म के पहले हाफ में इसने जो ऊंचाई हासिल की थी, दूसरे हाफ में उसको बरकरार नहीं रख पाती और वहां से फिसल जाती है। यह कहानी है सुलोचना उर्फ सुलु (विद्या बालन) की, जो मुंबई के उपनगर विरार में रहती है। उसका एक छोटा-सा परिवार है, जिसमें पति अशोक (मानव कौल) और बेटा प्रणव (अभिषेक शर्मा) हैं। सुलु भी एक सामान्य गृहिणी है और अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा करने में जुटी रहती है, लेकिन उसके साथ ही उसमें ‘कुछ करने’ की तमन्ना भी जोर मारती रहती है। उ