निराश नहीं करती है सुलु



राजीव रंजन

कलाकार: विद्या बालन, मानव कौल, नेहा धूपिया, विजय मौर्य, अभिषेक शर्मा
निर्देशक व लेखक: सुरेश त्रिवेणी
ढाई स्टार (2.5 स्टार)


एक अच्छी फिल्म वह होती है, जो अपने विषय, प्रस्तुतीकरण, सिनेमाई प्रभाव और कलाकारों के अभिनय की बदौलत शुरू से लेकर आखिर तक पटरी पर रहती है। एक सामान्य फिल्म वह होती है, जो काफी देर तक पटरी पर रहती है, लेकिन फिर पटरी से उतर जाती है। हालांकि वह दुबारा पटरी पर आती है, लेकिन तब तक अपना वह प्रभाव खो चुकी होती है, जो उसने शुरुआती क्षणों में पैदा किया था। विद्या बालन की ‘तुम्हारी सुलु’ दूसरी वाली श्रेणी में आती है। फिल्म के पहले हाफ में इसने जो ऊंचाई हासिल की थी, दूसरे हाफ में उसको बरकरार नहीं रख पाती और वहां से फिसल जाती है।

यह कहानी है सुलोचना उर्फ सुलु (विद्या बालन) की, जो मुंबई के उपनगर विरार में रहती है। उसका एक छोटा-सा परिवार है, जिसमें पति अशोक (मानव कौल) और बेटा प्रणव (अभिषेक शर्मा) हैं। सुलु भी एक सामान्य गृहिणी है और अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा करने में जुटी रहती है, लेकिन उसके साथ ही उसमें ‘कुछ करने’ की तमन्ना भी जोर मारती रहती है। उसके मन में नए-नए आइडिया जोर मारते रहते हैं। वह एक हमेशा खुश रहने वाली महिला है। उसके खुद के शब्दों में कहें तो ‘खा-पीकर मस्त रहती है’। वह महिलाओं के लिए होने वाली तरह-तरह की प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहती है और जीतती भी है। एक दिन वह एक रेडियो प्रतियोगिता में प्रेशर कुकर जीतती है और उसे लेने रेडियो स्टेशन के ऑफिस में पहुंचती है। सुलु वहां आरजे कॉन्टेस्ट का विज्ञापन देखती है और उसके मन में आरजे बनने की तमन्ना जोर मारने लगती है। आखिरकार वह एक देर रात के शो ‘तुम्हारी सुलु’ की आरजे बन जाती है। उसके शांत जीवन में यहीं से जटिलताएं आनी शुरू हो जाती है। उसका पति अशोक, जिसे वह ‘गाय’ कहती है, उसके नए काम को बहुत सहजता से नहीं ले पाता। उसके बेटे को भी गलत हरकत की वजह से स्कूल से निकाल दिया जाता है। उसका पारिवारिक जीवन बिखरने लगता है। सुलु की समस्या को बढ़ाने में उसकी दो जुड़वां बड़ी बहनें और पिता भी अहम भूमिका निभाते हैं।

फिल्म पहले हाफ में पहले दृश्य से ही दर्शकों के मन में असर पैदा करना शुरू कर देती है और सीन-दर-सीन उसके प्रभाव में वृद्धि होती जाती है। सुलु के ‘स्पून रेस’ में हिस्सेदारी से लेकर रेडियो जॉकी बनने तक का सफर काफी दिलचस्प है। लेखक और निर्देशक कई जगहों पर सहज हास्य पैदा करने में सफल रहते हैं। लेकिन दूसरे हाफ में फिल्म अपनी सहजता खो देती है। एक तो इसकी गति धीमी हो जाती है और यह कुछ बोझिल भी हो जाती है। शुरू में जो ताजगी इसमें नजर आती है, वह दूसरे हाफ में बहुत कुछ अनावश्यक तनाव में तब्दील हो जाती है। ऐसा लगता है कि फिल्म को रोचक और स्वाभाविक तरीके से आगे कैसे बढ़ाया जाए, यह निर्देशक और लेखक सुरेश त्रिवेणी सफलतापूर्वक पटकथा में गढ़ नहीं पाएं हैं। लिहाजा फिल्म ‘बॉलीवुडिया ढर्रे’ पर उतर जाती है। दूसरे हाफ में घटनाएं जिस प्रकार आकार ग्रहण करती हैं, उनका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। उसमें नयापन नहीं है, वैसा आप ढेरों फिल्मों में देख चुके होंगे। हालांकि क्लाइमैक्स में निर्देशक ने चीजों को संभालने की कोशिश की है और उसमें कुछ सफल भी रहे हैं।

बेशक इस फिल्म की पटकथा और निर्देशन में कुछ खामियां हैं, लेकिन सुरेश त्रिवेणी बतौर निर्देशक व लेखक प्रभाव छोड़ते हैं। वे एक गृहिणों की आकांक्षाओं और उसके रास्ते में आने वाले बाधाओं के इर्द-गिर्द बुनी गई कहानी को ठीकठाक तरीके से पेश करने और सुलु तथा दूसरे किरदारों को अच्छे-से गढ़ने में सफल रहे हैं।

विद्या बालन इस फिल्म की धुरी हैं। उन्होंने अपने बेहतरीन अभिनय से इसकी कमियों को ढक दिया है। सुलु के किरदार में कई परते हैं, जिन्हें उन्होंने शानदार तरीके से चित्रित किया है। चाहे वह ‘खा-पीकर मस्त’ रहने वाली घरेलू महिला हो, देर रात के शो की आरजे हो, अपने करियर को लेकर सबके सामने अड़ जाने वाली विद्रोही महिला हो या फिर अपने परिवार के लिए करियर को छोड़ देने वाली एक आम स्त्री, किरदार के हर रंग को उन्होंने बाखूबी जिया है। कह सकते हैं कि बहुत दिनों के बाद विद्या अपने पूरे रंग में नजर आई हैं। निस्संदेह मानव कौल फिल्म-दर-फिल्म खुद को साबित कर रहे हैं। इस फिल्म में भी सुलु के पति अशोक की भूमिका में वह शानदार रहे हैं। वे कमर मटका कर नाचते हुए मजेदार तो लगते ही हैं, अपने किरदार के द्वंद्व को नियंत्रित तरीके से उभार पाने में भी पूरी तरह सफल रहे हैं। रेडियो स्टेशन की बॉस मारिया के किरदार में नेहा धूपिया भी अच्छी लगती हैं। रेडियो प्रोड्यूसर और लेखक पंकज बागी का किरदार बहुत अच्छा है। इस किरदार में विजय मौर्य मौर्य बहुत प्रभावित करते हैं। उन्हें देख कर अच्छा लगता है। बाकी कलाकार भी ठीक हैं।

फिल्‍म का गीत-संगीत साधारण है। ‘तू बन जा मेरी रानी’ गाना जबान पर चढ़ने लायक है। ‘मिस्‍टर इंडिया’ के सदाबहार गाने ‘हवा हवाई’ को भी ठीकठाक तरीके से री-क्रिएट किया गया है। कुछ खामियों के बावजूद ये सुलु प्यारी लगती है और आप इसको ‘हेलो’ कह सकते हैं, इसकी ‘हेलो’ सुन सकते हैं। और हां, अगर आप यह सोच कर सिनेमाहॉल में जाएंगे कि यह एक ‘नारीवादी’ फिल्म है तो आपको निराशा होगी।

(‘‘हिन्‍दुस्‍तान’’ में 18 नवंबर 2017 को प्रकाशित)

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