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फिल्म ‘नमस्ते इंग्लैंड’ की समीक्षा

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दूर से ही नमस्ते ठीक है राजीव रंजन कलाकार: अर्जुन कपूर ,  परिणीति चोपड़ा ,  अलंकृता सहाय ,  आदित्य सील ,  सतीश कौशिक निर्देशक: विपुल अमृतलाल शाह स्टार: 1.5 (डेढ़ स्टार) तालियां दो तरह की होती हैं। जब कोई प्रस्तुति दर्शकों-श्रोताओं को पसंद आती है,  तो आखिर में बजती हैं और जब कोई परफॉर्मेंस दर्शकों के झेलने की क्षमता से बाहर हो जाता है तो बीच में ही बजने लगती हैं- खत्म करो ,  अब बख्श दो।  ‘ नमस्ते इंग्लैंड ’  दूसरी श्रेणी वाली प्रस्तुति है ,  जिसे देखते वक्त बार-बार यही ख्याल आता है कि ये फिल्म खत्म कब होगी! सवा दो घंटे का समय भी पहाड़ जैसा लगने लगता है। एक सवाल मन में अक्सर उठता है कि कोई फिल्म क्यों देखी जाए ?  इस सवाल के कई जवाब हो सकते हैं ,  जो हर व्यक्ति के टेस्ट ,  मानसिक स्तर पर निर्भर करते हैं। लेकिन  ‘ नमस्ते इंग्लैंड ’  के संदर्भ में इस सवाल का एक भी जवाब जेहन में नहीं आता है ,  सिवाय इसके कि निर्माता का मन फिल्म बनाने का था और उसके पास पैसे थे ,  इसलिए उसे निर्देशक ,  हीरो-हीरोइन ,  दूसरे कलाकार और तकनीशियन आसानी से मिल गए। वैसे कहने को इस फिल्म में भी एक

फिल्म ‘लव सोनिया’ की समीक्षा

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एक ज्वलंत मुद्दा उठाने की कोशिश राजीव रंजन कलाकार: मृणाल ठाकुर ,  मनोज बाजपेयी ,  राजकुमार राव ,  फ्रीडा पिंटो ,  रिचा चड्ढा ,  आदिल हुसैन निर्देशक: तबरेज नूरानी स्टार: ढाई ( 2.5) हर दिन हमारे देश में सैकड़ों लड़कियां गायब हो जाती हैं और उनका कभी पता नहीं चल पाता। यूं भी कह सकते हैं कि उन्हें ढूंढ़ने की शिद्दत से कोशिश भी नहीं की जाती। अंत में घर वाले भी हार-थक कर संतोष कर लेते हैं और प्रशासन भी निश्चिंत होकर बैठ जाता है। और उन गुम कर दी गई लड़कियों में से ज्यादातर किसी शहर के रेडलाइट एरिया की अंधेरी सीलन भरी कोठरियों में अपनी जिंदगी के बाकी दिन गुजार देने को मजबूर होती हैं। उनमें से कुछ को विदेश भी भेज दिया जाता है ,  जिसके बदले कोठे के मालिकों को मोटा माल मिलता है। कोई-कोई वहां से निकलने की कोशिश करती हैं ,  तो उनके साथ ऐसा भयानक सलूक किया जाता है कि दूसरी लड़कियां उसे देख कर ही सिहर जाती हैं। वे वहां से बाहर निकलने की सोचने की जुर्रत भी नहीं कर पातीं। भारत में वेश्यावृत्ति के दलदल में फंसी करीब एक करोड़ महिलाओं में से करीब एक-चौथाई नाबालिग हैं। और यह हाल केवल भारत का नहीं है ,

फिल्म हेलीकॉप्टर इला की समीक्षा

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उड़ नहीं पाता ये हेलीकॉप्टर राजीव रंजन कलाकार: काजोल , रिद्धि सेन , नेहा धूपिया , तोता राय चौधरी निर्देशक: प्रदीप सरकार संगीत: अमित त्रिवेदी दो स्टार (दो स्टार) अकेली मां के अपने बच्चे की परवरिश के लिए अपने सपनों को कुर्बान कर देने की थीम पर कई फिल्में बनी हैं। ‘ हेलीकॉप्टर इला ’ भी ऐसी ही एक फिल्म है। इसमें संदेह नहीं कि ऐसी थीम में काफी संभावनाएं होती हैं , अगर उसे तार्किक और संजीदा तरीके से पेश किया जाए तो। लेकिन ऐसे विषय पर फिल्म बनाते समय पटकथा पर पर्याप्त परिश्रम  नहीं किया गया हो तो ‘ सावधानी हटी , दुर्घटना घटी ’ वाली स्थिति पैदा है जाती है। प्रदीप सरकार निर्देशित और काजोल की मुख्य भूमिका वाली यह फिल्म भी निर्देशक और लेखक की इसी ‘ कैजुअल ’ मनोवृत्ति का शिकार हो गई लगती है। इला रायतुरकर (काजोल) एक प्रतिभाशाली गायिका है , जो पार्श्वगायन में करियर बनाना चाहती है। हालांकि खर्च चलाने के लिए वह मॉडलिंग भी कर लेती है। इला गायन में कुछ हद तक मशहूर भी हो जाती है। उसे महेश भट्ट अपनी फिल्म में काम करने का मौका भी दे देते हैं , लेकिन फिल्म लटक जाती है। फिर भी