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जनवरी, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

इस ‘वोदका’ में मजा नहीं

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राजीव रंजन फिल्म समीक्षा- वोदका डायरीज कलाकार: केके मेनन, मंदिरा बेदी, शारिब हाशमी, राइमा सेन निर्देशक: कुशल श्रीवास्तव दो स्टार (2 स्टार) क्रिकेट में एक बात कमेंटेटरों से अक्सर सुनने को मिलती है- अच्छी शुरुआत का फायदा टीम नहीं उठा पाई और मैच हाथ से निकल गया। ‘वोदका डायरीज’ के बारे में भी ये बात कही जा सकती है। इस ‘वोदका’ को ठीक से बनाया नहीं गया है, इसलिए इसका मजा बिगड़ गया। एसीपी अश्विनी दीक्षित (केके मेनन) अपनी पत्नी शिखा (मंदिरा बेदी) के साथ छुट्टियां बिता कर वापस मनाली लौटता है। घर पहुंचते ही उसे एक हत्या की तफ्तीश का जिम्मा मिल जाता है। वह इस केस को हल करने में जुट जाता है, जिसमें उसकी मदद उसका जूनियर ऑफिसर अंकित (शारिब हाशमी) कर रहा है। इसी केस की जांच के दौरान एक रात में कई हत्याएं हो जाती हैं और सारी हत्याओं का सम्बंध मनाली के एक होटल व क्लब वोदका डायरीज से है। अश्विनी इस जांच में बुरी तरह उलझता जाता है। इसी बीच उसकी पत्नी गायब हो जाती है। वह विक्षिप्त-सा हो जाता है। जांच के दौरान रोशनी बनर्जी (राइमा सेन) नाम की एक रहस्यमय महिला उससे टकराती रहती है। वह उसे बताती है

नॉकआउट करने में नाकाम है ‘मुक्काबाज’

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राजीव रंजन फिल्म समीक्षा- मुक्केबाज कलाकार: विनीत कुमार सिंह, जोया हुसैन, जिमी शेरगिल, रवि किशन, साधाना सिह निर्देशक: अनुराग कश्यप ढाई स्टार (2.5 स्टार) अनुराग कश्यप एक अंतराल के बाद बतौर निर्देशक ‘मुक्काबाज’ के साथ लौटे हैं। उनकी फिल्मों से सलमान खान और आमिर खान की फिल्मों की तरह ‘दो सौ करोड़ी’ और ‘तीन सौ करोड़ी’ क्लब में शामिल होने की उम्मीद तो नहीं रहती, लेकिन इतनी उम्मीद जरूर रहती है कि वे लीक पर नहीं चलेंगी। बतौर निर्देशक अनुराग ने बने-बनाए प्रतिमानों को ध्वस्त किया है। वह अपनी तरह के एक अलग फिल्मकार हैं, जिन्होंने कई युवाओं को अलग तरह फिल्में बनाने की प्रेरणा दी है और कुछ को मौका भी दिया है। जाहिर है, अनुराग की छवि और साख के मद्देनजर ‘मुक्काबाज’ को लेकर भी कुछ ऐसी ही उत्सुकता मन में जगती है। क्या यह फिल्म उन मानकों पर खरी उतरती है, जिसके लिए अनुराग जाने जाते हैं? इसका जवाब नकारात्मक है। पहले बात कहानी की। बरेली का रहने वाला श्रवण कुमार सिंह (विनीत कुमार सिंह) मुक्केबाज बनना चाहता है। इसके लिए वह बरेली के दबंग मुक्केबाजी कोच भगवान दास मिश्रा (जिमी शेरगिल) से प्रशिक्षण लेत

ये प्रकृति पुत्र हैं आधुनिक तपस्वी

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राजीव रंजन एक तरफ हम जल संरक्षण के पारम्परिक तरीके भूलते जा रहे हैं तो दूसरी प्रकृति को नष्ट करके अपने ही हाथों अपने विनाश का रास्ता तैयार कर रहे हैं। प्रकृति को लेकर ज्यादातर लोग चिंतित हैं, लेकिन यह चिंता सिर्फ शब्दों तक सीमित है। लेकिन इसी देश में कुछ लोग ऐसे हैं, जिन्होंने परिणाम की परवाह न करते हुए अकेले संघर्ष जारी रखा और अपने अनवरत प्रयास से समाज के सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया है। कहावत है- ‘अकेला चना भांड नहीं फोड़ सकता’, लेकिन बिहार के गया जिले के दशरथ मांझी ने अकेले पहाड़ काट कर इस इस कहावत को गलत साबित कर दिया था। उन्होंने 22 वर्ष तक बिना थके सिर्फ छेनी और हथौड़ी से पहाड़ काट कर रास्ता बना दिया। मांझी अपने जीवनकाल में ही किंवदंती बन गए थे। झारखंड के सिमोन उरांव, छत्तीसगढ़ के श्याम लाल और असम के जादव पायेंग कहानी भी दशरथ मांझी जितनी ही प्रेरक और हैरान कर देने वाली है। सिमोन उरांव ने जहां सूखे जूझते झारखंड के कई गांवों को इस समस्या से मुक्ति दिलाई तो जादव ने अकेले ही सैकड़ों एकड़ का जंगल तैयार कर दिया। वहीं श्याम ने अकेले 27 साल दिन-रात एक करके तालाब खोद दिया। झारखंड के वाटरमै