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कहीं पहुंचती नहीं दिखती ये रेस

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फिल्म रेस 3 की समीक्षा राजीव रंजन कलाकार : अनिल कपूर , सलमान खान , जैक्लीन फर्नांडीज , डेजी शाह , बॉबी देओल , साकिब सलीम निर्देशक : रेमो डीसूजा 2 स्टार ( दो   स्टार ) रेस चाहे जिंदगी की हो या ट्रैक की , रोमांच की गारंटी होती है। बॉलीवुड की ‘ रेस ’ सिरीज की पहली दो किस्तों के बारे में भी ये बात काफी हद तक कही जा सकती है। लेकिन ‘ रेस 3 ’ के बारे में ये बात नहीं कही जा सकती। हां , हर मिनट दर्जनों गाड़ियों को हवा में उड़ते , आग के गोले में तब्दील होने को रोमांच मान लिया जाए तो ‘ रेस 3 ’ में रोमांच है। किसी फिल्म में सलमान खान के होने को ही रोमांच माना जाए तो वह ‘ रेस 3 ’ में है। इसके अलावा इस फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं है , जिसे रोमांच माना जा सके। कहानी के नाम पर भी इसमें नया कुछ नहीं है। शमशेर सिंह ( अनिल कपूर ) हथियारों का बहुत बड़ा सौदागर है और अल शिफह द्वीप पर उसने अपना साम्राज्य फैलाया हुआ है। वहां वह अपने भतीजे सिकंदर ( सलमान खान ), बेटी संजना ( डेजी शाह ), बेटे सूरज ( साकिब सलीम ) और एक वफादार रघु सक्सेना ( शरत सक्सेना ) के साथ रहता है। सिकंदर बहुत का

पहले जैसा जादू नहीं इस क़िस्त में

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जुरासिक वर्ल्ड: फालेन किंगडम की समीक्षा राजीव रंजन कलाकार: ब्राइस डॉल्स हॉवर्ड, क्रिस प्रैट, जस्टिस स्मिथ, जेम्स क्रॉमवेल, राफे स्पैल, डेनियला पिनेडा, इसाबेला समान निर्देशक: जे. ए. बेयोना। 3 स्टार जुरासिक पार्क सीरीज के रजत जयंती वर्ष में इसकी पांचवी क़िस्त जुरासिक वर्ल्ड: फालेन किंगडम आई है। 1993 में जब इस साइंस फिक्शन की पहली क़िस्त जुरासिक पार्क आई थी तो उसे अपने बिलकुल नए विषय और अद्भुत प्रस्तुतीकरण से पूरी दुनिया को चौंका दिया था। उस फिल्म ने डायनासोरों को लेकर लोगों के मन में ऐसी उत्सुकता पैदा कर दी थी कि हर कोई उनके बारे में जानने को व्यग्र हो उठा। लिहाजा इस सीरीज की फिल्मों को लेकर लोगों में उत्साह और उत्सुकता लगातार बनी रही। क्या लोगों की उत्सुकता और उम्मीदों के साथ यह फिल्म पूरी तरह न्याय कर पाई है? इसका जवाब है फिल्म पटकथा और प्रस्तुतिकरण के स्तर पर उस मुकाम पर नहीं पहुंच पाई है।  इस फिल्म की कहानी इसके प्रीक्वल जुरासिक वर्ल्ड की कहानी के 3 साल बाद शुरू होती है। आइसला नुब्लर में स्थित जुरासिक पार्क तहस नहस हो चुका है। वहां का ज्वालामुखी सक्रिय हो गया है। इसके क

मोमिन का शेर, ग़ालिब और इवान लेंडल

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राजीव रंजन तुम मिरे पास होते हो गोया जब कोई दूसरा नहीं होता। कुछ खोजते हुए बेसाख्ता इस शेर पर नजर पड़ गई। ये शेर मिज़र ग़ालिब के समकालीन अज़ीम शायर मोमिन खां  ‘ मोमिन ’   का है। मोमिन महान शायर तो थे ही ,  कहते हैं कि शतरंज के अच्छे खिलाड़ी और ज्योतिषी भी थे। यूं तो मोमिन ने कई अविस्मरणीय ग़ज़लें लिखी हैं। जैसेकि - ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम पर क्या करें कि हो गए नाचार जी से हम हंसते जो देखते हैं किसी को किसी से हम मुंह देख देख रोते हैं किस बेकसी से हम   और एक ये भी - वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो वही या ’ नी वा ’ दा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो वो नए गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो कि न याद हो कभी हम में तुम में भी चाह थी कभी हम से तुम से भी राह थी कभी हम भी तुम भी थे आश्ना तुम्हें याद हो कि न याद हो जिसे आप गिनते थे आश्ना जिसे आप कहते थे बा - वफ़ा मैं वही हूं  ' मोमिन '- ए - मुब्तला तुम्हें याद हो कि न याद हो लेकिन मोमिन का लिखा सब

भावेश जोशी सुपरहीरो: दम नहीं है इस सुपरहीरो में

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फिल्म  ‘ भावेश जोशी सुपरहीरो ’   की समीक्षा राजीव रंजन कलाकार: हर्षवर्द्धन कपूर ,  प्रियांशु पैन्यूली ,  आशीष वर्मा ,  निशिकांत कामत ,  श्रिया सब्बरवाल निर्देशक: विक्रमादित्य मोटवाणी 2  स्टार (दो स्टार) आम आदमी की स्मृति में सुपरहीरो एक ऐसे मनुष्य के रूप दर्ज है ,  जिसके पास कुछ अद्भुत शक्तियां होती हैं और जो किसी भी बुराई को अपने दम पर खत्म करने का दम रखता है। विक्रमादित्य मोटवाणी का भावेश जोशी सुपरहीरो की इस प्रचलित धारणा से अलग है। उसके पास अद्भुत शक्तियां नहीं हैं ,  लेकिन बुराई से लड़ने का उसका जज्बा जरूर अद्भुत है। उसका मानना है कि किसी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के असफल हो जाने ,  उसके राजनीतिक स्वार्थों की बलि चढ़ जाने के बावजूद भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई चलती रहनी चाहिए। अकेले ही सही ,  उसके खिलाफ संघर्ष जारी रहना चाहिए। भावेश जोशी (प्रियांशु पैन्यूली) ,  सिकंदर खन्ना उर्फ सिक्कू (हर्षवद्र्धन कपूर) और रजत (आशीष वर्मा) सन  2011  के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में हिस्सा लेते हैं। यह आंदोलन अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हो पाता। लेकिन भावेश निराश नहीं होता और सिक्कू