भावेश जोशी सुपरहीरो: दम नहीं है इस सुपरहीरो में

फिल्म भावेश जोशी सुपरहीरो की समीक्षा

राजीव रंजन

कलाकार: हर्षवर्द्धन कपूरप्रियांशु पैन्यूलीआशीष वर्मानिशिकांत कामतश्रिया सब्बरवाल

निर्देशक: विक्रमादित्य मोटवाणी

2 स्टार (दो स्टार)



आम आदमी की स्मृति में सुपरहीरो एक ऐसे मनुष्य के रूप दर्ज हैजिसके पास कुछ अद्भुत शक्तियां होती हैं और जो किसी भी बुराई को अपने दम पर खत्म करने का दम रखता है। विक्रमादित्य मोटवाणी का भावेश जोशी सुपरहीरो की इस प्रचलित धारणा से अलग है। उसके पास अद्भुत शक्तियां नहीं हैंलेकिन बुराई से लड़ने का उसका जज्बा जरूर अद्भुत है। उसका मानना है कि किसी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के असफल हो जानेउसके राजनीतिक स्वार्थों की बलि चढ़ जाने के बावजूद भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई चलती रहनी चाहिए। अकेले ही सहीउसके खिलाफ संघर्ष जारी रहना चाहिए।

भावेश जोशी (प्रियांशु पैन्यूली)सिकंदर खन्ना उर्फ सिक्कू (हर्षवद्र्धन कपूर) और रजत (आशीष वर्मा) सन 2011 के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में हिस्सा लेते हैं। यह आंदोलन अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हो पाता। लेकिन भावेश निराश नहीं होता और सिक्कू के साथ मिल कर एक यूट्यूब चैनल इन्साफ’ शुरू करता है। भावेश खाकी रंग का एक मास्क पहन कर कभी लोगों को पेड़ काटने से रोकता है तो कभी सार्वजनिक स्थानों पर लघुशंका करने से। सिक्कू तकनीकी रूप से बहुत सक्षम हैवह इन सब चीजों को बहुत बहुत अच्छे तरीके से चैनल पर अपलोड करता है। इसका प्रभाव यह होता कि लोग उनसे अपनी छोटी-छोटी समस्याएं हल करने के लिए मदद मांगते हैं। दोनों लोगों की कुछ मदद करने में सफल भी होते हैं।

एक दिन सिक्कू इन्साफ’ की मुहिम से अलग हो जाता है और इंजीनियरिंग करके एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी करने लगता है। उसे अमेरिका जाने का मौका मिलता है और वह तैयार भी हो जाता है। इधर भावेश अपनी मुहिम में अभी भी जुटा हुआ है। एक दिन एक बुजुर्ग व्यक्ति भावेश से मदद मांगते हैं। वह बताते हैं कि उनकी सोसाइटी में पानी आने का समय बंधा हैलेकिन उस निर्धारित समय पर भी पानी नहीं आता है। भावेश इसकी पड़ताल करता है और पाता है कि इसके तार पानी माफिया से जुड़े हैंजिसका सरगना राज्य का मंत्री राणा (निशिकांत कामत) है और पाटिल नाम का एक कारपोरेटर इस काम में उसका सहयोगी है। भावेश इनका पर्दाफाश करने में जुट जाता हैलेकिन उसे देशद्रोही बता दिया जाता है और उसकी काफी पिटाई की जाती है। फिर भी वह पीछे नहीं हटता और सबूत जुटाने की कोशिश करता है। इसी चक्कर वह एक दिन मारा जाता है। इस घटना से सिक्कू की जिंदगी बदल जाती है और वह भावेश जोशी’ बन जाता है...


फिल्म का विषय बहुत अच्छा है और एक आदमी में सुपरहीरो की अवधारणा भी रोचक हैलेकिन इसके बाद सारी चीजें पटरी से उतरी हुई हैं। अच्छी स्क्रिप्टअच्छा निर्देशक और अच्छे कलाकारों का संयोग होता हैतब कहीं जाकर एक अच्छी फिल्म बनती है। दुर्भाग्य से भावेश जोशी सुपरहीरो’ में पटकथा और निर्देशन बहुत लचर है। पटकथा में बहुत झोल है और ऐसा पहली बार हैजब विक्रमादित्य मोटवाणी निर्देशक के रूप में निराश करते हैं। जब इंटरवल होता है तो ऐसा लगता कि दूसरे हाफ में फिल्म रफ्तार पकड़ेगीलेकिन दूसरा हाफ तो पूरी तरह निराश करता है। हांक्लाईमैक्स जरूर फिल्म को थोड़ी-बहुत सांसे देता है। फिल्म में कई चीजें अनावश्यक रूप से विस्तार लिए हुए हैंउन्हें आसानी छोड़ा जा सकता था। फिल्म अक्सर बहुत बोझिल हो जाती है। 155 मिनट की इस फिल्म से कम से कम 30 मिनट हटा दिए जाते तो शायद यह थोड़ी कसी हुई लगती।

फिल्म का संपादन तो ठीक नहीं हैलेकिन सिनमेटोग्राफी अच्छी है। गीत-संगीत में भी दम नहीं है। ये फिल्म की नीरसता को और बढ़ा देते हैं। कलाकारों का अभिनय ठीक है। हषवद्र्धन ने पूरी कोशिश की है और वह पर्दे पर नजर भी आती हैहालांकि उनके पास प्रभावित करने का मौका खूब थापर वह उसे पूरी तरह भुना नहीं पाए। प्रियांशु पैन्यूली ने अच्छा काम किया है। पहले हाफ में जो कुछ भी थोड़ा-बहुत अच्छा लगता हैउसका ज्यादा श्रेय उन्हीं को जाता है। आशीष वर्मा ने भी अच्छा काम किया है। क्लाईमैक्स में वे असर पैदा करते हैं। पाटिल की भूमिका और पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका निभाने वाले कलाकारों ने भी अच्छा अभिनय किया है। निशिकांत कामत साधारण रहे हैं और श्रिया सब्बरवाल का रोल ठूंसा हुआ लगता हैजिसमें कोई स्कोप नहीं था।

जब उम्मीदें ज्यादा होती हैं तो निराशा भी गहरी होती है। यह बात भावेश जोशी सुपरहीरो’ पर अक्षरश: लागू होती है। अच्छे विषय और रोचक कॉन्सेप्ट के बावजूद यह फिल्म प्रभावित करने में नाकाम रही है।

(हिन्दुस्तान में 2 जून को संपादित अंश प्रकाशित)

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वीणा-वादिनी वर दे

सेठ गोविंद दास: हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने के बड़े पैरोकार

राही मासूम रजा की कविता 'वसीयत'