मोमिन का शेर, ग़ालिब और इवान लेंडल
राजीव रंजन
तुम मिरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता।
कुछ खोजते हुए बेसाख्ता इस शेर पर नजर पड़ गई। ये शेर मिज़र ग़ालिब के समकालीन अज़ीम शायर मोमिन खां ‘मोमिन’ का है। मोमिन महान शायर तो थे ही, कहते हैं कि शतरंज के अच्छे खिलाड़ी और ज्योतिषी भी थे। यूं तो मोमिन ने कई अविस्मरणीय ग़ज़लें लिखी हैं। जैसेकि-
ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम
पर क्या करें कि हो गए नाचार जी से हम
हंसते जो देखते हैं किसी को किसी से हम
मुंह देख देख रोते हैं किस बेकसी से हम
और एक ये भी-
वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो
वही या’नी वा’दा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो
वो नए गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो कि न याद हो
कभी हम में तुम में भी चाह थी कभी हम से तुम से भी राह थी
कभी हम भी तुम भी थे आश्ना तुम्हें याद हो कि न याद हो
जिसे आप गिनते थे आश्ना जिसे आप कहते थे बा-वफ़ा
मैं वही हूं 'मोमिन'-ए-मुब्तला तुम्हें याद हो कि न याद हो
लेकिन मोमिन का लिखा सबसे ज्यादा मशहूर और मज़्कूर शेर वही, सबसे ऊपर वाला है। दसअसल इसके पीछे एक दिलचस्प वाकया है, जिससे ग़ालिब का नाम जुड़ा हुआ है। कहते हैं कि मोमिन ने जब ग़ालिब को ये शेर सुनाया तो वह इससे इतने अभिभूत हो गए कि मोमिन से गुजारिश कर बैठे- तुम मेरा पूरा दीवान ले लो, ये शेर मुझे दे दो। उर्दू के सबसे बड़े शायर की ऐसी प्रशंसा इस शेर की गहराई को बयां कर देती है।
इस प्रसंग का सिरा बहुत बाद में और इस जमीन से बहुत दूर चेकोस्लोवाकिया में पैदा हुए महान टेनिस खिलाड़ी इवान लेंडल से भी जुड़ता है। उन्हें ‘टेनिस का ग़ालिब’ कहा जाता है। लेंडल की गिनती टेनिस के सार्वकालिक महान खिलाड़ियों में होती है। वे 1980 के दशक में 270 सप्ताह तक दुनिया के नंबर एक टेनिस खिलाड़ी रहे हैं। उन्होंने अपने जीवन में 8 एकल ग्रैंड स्लैम खिताब जीते, जिसमें 2 ऑस्ट्रेलियाई ओपन, 3 फ्रेंच ओपन और 3 अमेरिकी ओपन शामिल हैं। दुर्भाग्य से वे सबसे प्रतिष्ठित ग्रैंड स्लैम माने जाने वाले विम्बलडन का खिताब एक बार भी नहीं जीत सके। वे विम्बलडन में ऐसे-ऐसे खिलाड़ियों से हारे, जो उनके सामने कुछ नहीं थे। वे बिम्बलडन के लिए इतने बेकरार थे कि उन्होंने यहां तक कह दिया कि ‘मेरे सारे ग्रैंड स्लैम ले लो, एक विम्बलडन दे दो’। और तभी से वे ‘टेनिस के गालिब’ हो गए। मायूसी के आलम में बिम्बलडन से वे इतने खफा हुए कि उन्होंने ये तक कह दिया- ‘घास ढोरों के खाने की चीज है।’ गौरतलब है कि विम्बलडन घास के कोर्ट पर खेला जाता है।
इन्हीं लेंडल का एक सिरा भारत से भी जुड़ता है। पूर्व मिस इंडिया पामेला सिंह (1982) के मार्फत, जो बाद में पामेला बोर्डेस के नाम से विश्वविख्यात (?) हुईं। पामेला ने एक बार विश्व राजनीति में हड़कंप मचा दिया था। उस स्कैंडल में कई प्रभावशाली राजनीतिज्ञों के करियर को हिला दिया था। बहरहाल, लेंडल अपने करियर के अच्छे दिनों में पामेला के इश्क में पड़ गए थे। लेंडल अपने को बदसूरत मानते थे और उन्हें लगता था कि कोई भी सुंदर महिला उन्हें पसंद नहीं करेगी। पामेला ने लेंडल को यकीन दिलाया कि वे बहुत अच्छे और प्यारे इनसान हैं। लेंडल, पामेला के प्यार में पागल हो गए और पामेला को लेंडल के पैसे से प्यार हो गया। बाद में लेंडल को एहसास हुआ कि प्यार के जाल में बांध कर पामेला उनको ठग रही हैं। एक पल ऐसा भी आया कि लेंडल आत्महत्या की सोचने लगे। यह बात लेंडल ने खुद स्वीकार की थी। खैर, लेंडल ने पामेला से अपना पिंड छुड़ा लिया और सितंबर 1989 में सामंथा फ्रैंकेल से शादी कर ली।
अब देखिए, बात कहां से निकली थी, कहां पहुंच गई। खैर बात मोमिन के शेर हुई थी, तो समापन ग़ालिब की ग़ज़ल के दो शेर से करते हैं। ये शेर कई परिस्थितियों पर बिल्कुल फिट बैठते हैं-
आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक
हमने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएंगे हम तुमको ख़बर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक
हमने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएंगे हम तुमको ख़बर होने तक
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