कहीं पहुंचती नहीं दिखती ये रेस

फिल्म रेस 3 की समीक्षा

राजीव रंजन

कलाकार: अनिल कपूर, सलमान खान, जैक्लीन फर्नांडीज, डेजी शाह, बॉबी देओल, साकिब सलीम

निर्देशक: रेमो डीसूजा

2 स्टार (दो स्टार)


रेस चाहे जिंदगी की हो या ट्रैक की, रोमांच की गारंटी होती है। बॉलीवुड की रेस सिरीज की पहली दो किस्तों के बारे में भी ये बात काफी हद तक कही जा सकती है। लेकिन रेस 3 के बारे में ये बात नहीं कही जा सकती। हां, हर मिनट दर्जनों गाड़ियों को हवा में उड़ते, आग के गोले में तब्दील होने को रोमांच मान लिया जाए तो रेस 3 में रोमांच है। किसी फिल्म में सलमान खान के होने को ही रोमांच माना जाए तो वह रेस 3 में है। इसके अलावा इस फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं है, जिसे रोमांच माना जा सके। कहानी के नाम पर भी इसमें नया कुछ नहीं है।


शमशेर सिंह (अनिल कपूर) हथियारों का बहुत बड़ा सौदागर है और अल शिफह द्वीप पर उसने अपना साम्राज्य फैलाया हुआ है। वहां वह अपने भतीजे सिकंदर (सलमान खान), बेटी संजना (डेजी शाह), बेटे सूरज (साकिब सलीम) और एक वफादार रघु सक्सेना (शरत सक्सेना) के साथ रहता है। सिकंदर बहुत काबिल और ताकतवर है, जिससे उसके दोनों कजिन जलते हैं। सिकंदर का भी एक वफादार दोस्त है यश (बॉबी देओल), जो बहुत शातिर है और ताकतवर है। संजना और सूरज उत्तराधिकार की रेस में सिकंदर को हराना चाहते हैं। इसके लिए वे यश का सहारा लेते हैं। जब सिकंदर बीजिंग में रहता था, तब उसकी जिंदगी में एक लड़की जेसिका (जैक्लीन फर्नांडीज) आती है और फिर कहीं चली जाती है। बाद में वह भी इस रेस में शामिल हो जाती है। इसके बाद शुरू होती है प्यार, धोखे और रिश्तों के घालमेल की कहानी...

रेस सिरीज की सबसे बड़ी खासियत उसका रोमांच था। पहली रेस में अपने निजी स्वार्थों के आगे रिश्तों की बलि चढ़ा देने की कहानी को निर्देशक जोड़ी अब्बास-मस्तान ने काफी रोमांचक अंदाज में, सस्पेंस के साथ पेश किया था। रेस 2 अपने पहले भाग जैसा तो कमाल नहीं कर सकी, लेकिन अब्बास-मस्तान ने उसे बेजान नहीं होने दिया। अब उसके पांच साल बाद नए निर्देशक रेमो डीसूजा के निर्देशन में रेस 3 आई है। इस फिल्म में सलमान खान तो हैं, लेकिन वो मजा नहीं है, जो इस सिरीज का ट्रेडमार्क था। पटकथा बेजान है और संवादों में दम नहीं है। गीत-संगीत बस फिट कर दिए गए हैं। उनका कहानी से कोई लेना-देना नहीं है। वे फिल्म की गति को रोक देते हैं। हां, सिनमेटोग्राफी जरूर अच्छी है। निर्देशक के रूप में रेमो डिसूजा पूरी तरह निराश करते हैं। उन्होंने फिल्म हर मसाला डाला है, लेकिन स्वाद नहीं आता। वैसे सलमान का फ्लाइंग सूट भी बढ़िया है।


अभिनय के बारे में क्या कहा जाए, सलमान का तो नाम ही काफी है! अनिल कपूर के अभिनय में अलग से कोई जिक्र करने लायक बात नहीं है। बॉबी देओल प्रभावित करने में नाकाम रहे हैं। जैक्लीन हमेशा एक जैसी लगती हैं। डेजी और साकिब भी कुछ असर नहीं छोड़ पाते। ये बात अलग है कि सलमान के करिश्मे की वजह से शायद ढेरों कमियों के बाद भी फिल्म के कारोबार पर बहुत असर न पड़े, लेकिन यह फिल्म बहुत निराश करती है।

(Livehindustan.com में 15 जून को प्रकाशित)

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