(1) मैंने प्यार किया है तुमको और बहुत संभव है अब भी मेरे दिल में इसी प्यार की सुलग रही हो चिंगारी किंतु प्यार मेरा तुमको और न अब बेचैन करेगा नहीं चाहता इस कारण ही अब तुम पर गुजरे भारी मैंने प्यार किया है तुमको मुक-मौन रह आस बिना हिचक-झिझक तो कभी जलन भी मेरे मन को दहकाए जैसे प्यार किया है मैंने सच्चे मन से डूब तुम्हे हे भगवान, दूसरा कोई प्यार तुम्हें यों कर पाए। (2) मुझे याद है अद्भुत क्षण जब तुम मेरे सम्मुख आई निर्मल, निश्छल रूप छटा सी जैसे उड़ती सी परछाईं घोर उदासी, गहन निराशा जब जीवन में कुहरा छाया मंद, मृदुल तेरा स्वर गूंजा मधुर रूप सपनों में आया बीते वर्ष बवंडर टूटे हुए तिरोहित स्वप्न सुहाने किसी परी सा रूप तुम्हारा भूला वाणी, स्वर पहचाने सूनेपन एकान्त तिमिर में बीते बोझिल दिन निस्सार बिना आस्था, बिना प्रेरणा रहे न आंसू, जीवन, प्यार पलक आत्मा ने फिर खोली फिर तुम मेरे सम्मुख आई निर्मल, निश्छल रूप छटा सी मानो उड़ती सी परछाई हृदय हर्ष से स्पंदित फिर से झंकृत अंतर-तार उसे आस्था, मिली प्रेरणा फिर से आंसू, जीवन, प्यार। (‘‘कादम्बिनी’’ के एक पुराने अंक से साभार)