मैनें भी देखे हैं भूत-प्रेत और जिन्न

राजीव रंजन

एक पत्रकार मित्र हैं पूजा और उनका ब्लौग है तीन बिंदु. उन्होंने अपने ब्लौग पर एक पोस्ट डाली है, जिसमें एक खबर के हवाले से बताया गया है कि बिहार और झारखण्ड के कुछ इलाकों में ऐसे मेले लगते हैं जिनमें लोगों के भूत उतारे जाते हैं, खासकर औरतों के. पूजा ने इस पर सवाल उठाए हैं जो वाजिब भी हैं. उनका कहना है कि यह एक प्रकार का अत्याचार है, अंधविश्वासों की आड़ में औरतों का शोषण है.

भूत भगाने की इस निर्मम और गर्हित प्रक्रिया का मैं बहुत नजदीक से गवाह रहा हूँ. इस तरह का एक बडा मेला ( नवरात्रों में ) मेरे गाँव भुतहा खैरा से आधा किलोमीटर की दूरी पर लगता है. जगह का नाम है घिनऊ ब्रह्म. यह बिहार के रोहतास जिले के बिक्रमगंज अनुमंडल में स्थित है. यहाँ आसपास के इलाके की महिलायें और पुरुष आते हैं, जो "प्रेत बाधा से पीड़ित" होते हैं. वैसे ज्यादातर संख्या महिलाओं की ही होती है.
बडा वीभत्स दृश्य होता है. में जब भी गाँव जाता था, मेरी आजी ( दादी ) उन रास्तों पर चलने से मना करती थी, जिन पर "प्रेत बाधा से पीड़ित" लोगो के सामान फेकें हुए रहते थे. उन सामानों में रिबन, टिकुली ( बिंदी ), चूडियों के टुकडे और साज-सिंगार के अन्य सामान होते थे. मेरी आजी का मानना था कि उन सामानों को लांघने से उनमें के भूत- प्रेत मुझमें आ जायेंगे.
लिहाजा जब आजी मेरे साथ होती थी तो मुझे पगडण्डी छोड़ कर खेतों के बीच से आना पड़ता था, काफी ध्यानपूर्वक. लेकिन जब दादी साथ नही होती थी तो मैं उसके आदेश पर अमल नही करता था. कई बार जिज्ञासा के वशीभूत में उन चीजों को जान बूझकर लाँघ जाता था. मुझे आजतक किसी भूत ने नही पकडा.

लेकिन मैंने लोगो पर भूत चढ़ते देखा है. ऐसी तीन घटनाओं के बारे में मैं नजदीक से जानता हूँ. दो मेरे दोस्तों के बारे में हैं और एक पड़ोस की दीदी के बारे में. उनकी निजता का सम्मान करते हुए मैं काल्पनिक नामों के माध्यम से अपनी बात कह रहा हूँ. लेकिन, घटनाएं वास्तविक हैं.

मेरे पड़ोस में एक संगीता दीदी रहती थीं. जब उन्हें हिस्टीरिया के दौरे आते थे तो वे जोर-जोर से चिल्लाने लगती थीं, इधर-उधर भागने लगती थीं. उन्हें पकड़ने के लिए चार-चार लोगों को लगना पड़ता था. उनके घर के लोग यही समझते थे कि प्रेत का साया है. कई बार झाड़-फूँक भी कराई गई, कोई फायदा नही हुआ. आसपास के कुछ लोग दबी जुबान से कहते थे कि हिस्टीरिया है, लेकिन संगीता दीदी के घर वाले इसे उन्हें बदनाम करने की साजिश बता बात को सिरे से खारिज कर देते थे.
बाद में उनके एक रिश्तेदार दबाव देकर संगीता दीदी को डॉक्टर के पास ले गए, उनका इलाज हुआ और वे ठीक हो गयी. कुछ समय बाद उनकी शादी हो गई और वे अपने पति तथा बच्चों के साथ हैं. फिर उन्हें "प्रेत" ने नही पकडा. हालांकि पिछले पांच-सात सालों से मेरी उनसे मुलाकात नही हो पाई है, लेकिन इतना ज़रूर पता चला है कि वे पूरी तरह ठीक हैं.

दूसरी घटना मेरे एक मित्र अर्जुन से जुडी है. उसने खुद यह पूरी घटना विस्तार से मुझे बताई थी. उसका परिवार एक ठाकुर साहब के मकान में किराए पर रहता था. और भी किरायेदार थे. बडा तीन मंजिला घर था. ठाकुर साहब के पास एक लाइसेंसी बंदूक थी. उनकी तीन लड़किया थीं- हेमा, जया और कृष्णा . तीनों किशोरावस्था में प्रवेश कर चुकी थीं. बड़ी वाली (हेमा) मेरी क्लासमेट थी और उससे छोटी दोनों जुड़वा थीं. उस मकान में रहने वाले लोग गर्मी की रात में अमूमन छत पर ही सोते थे. मेरा मित्र भी गर्मी की एक रात में छत पर सोया था और हेमा, जया और कृष्णा भी. आधी रात के बाद अचानक मेरे मित्र को एक "खास किस्म की बेचैनी" हुई और वह जया की बगल में जाकर सो गया और बेचैनी को शांत करने की प्रक्रिया शुरू कर दी, मित्र के अनुसार लड़की ने कोई प्रतिरोध नही किया.

तभी अचानक पता नही कहाँ से ठाकुर साहब छत पर चले आये. वैसे वो नीचे आँगन में ही सोते थे, पर शायद गर्मी से कुछ देर तक निजात पाने के लिए छत पर चले आये हों. खैर उन्होने देख लिया. मित्र की हालत खराब हो गई, उसे लगा अब तो ठाकुर साहब अपनी लाइसेंसी बंदूक से उसका काम तमाम कर देंगे.

एकाएक उसने अजीब सी हरकतें करनी शुरू कर दीं. अजीब सी आवाजें उसके गले से निकलने लगीं. सारे लोग जग गए, पता चला मित्र को भूत ने पकड़ लिया है. सब लोग हैरान- परेशान. ठाकुर साहब को लगा कि सचमुच लड़के को भूत ने पकड़ लिया है. भूत को भगाने के उपाय शुरू हो गए, लेकिन भूत नही भागा. बाद में मित्र के घर वाले वह मकान छोड़ कर दूसरी जगह चले गए और तीन-चार महीने बाद मित्र का भूत भाग गया. उस घटना के बाद भूत कभी उसके पास नही आया. अब मित्र की शादी हो गयी है और आजकल वह तथा उसकी पत्नी साथ मिलकर भूत-भूत खेलते हैं.


तीसरी घटना है मेरे मित्र कामेश की. ससुरे ने (सोलह साल की अवस्था में ) गांजे का भरपूर दम लगा लिया. उसको होने लगा नशा और साथ में यह डर भी कि आज तो घर वाले बड़ी कुटाई करेंगे. गांजे की महक दूर से ही पता चल जाती है. नशा तो था ही, लेकिन इतना होश बाकी था कि गांजा पीने के परिणामों के बारे में वह सोच सकता था और उस से बचने के उपायों के बारे में भी.

हमारे मोहल्ले में शंकर जी का एक मंदिर है, जिसके एक तरफ बडा चबूतरा बना है. वह आया और उस चबूतरे पर गिर गया और अनाप-शनाप बकने लगा. लोग इकट्ठे हो गए, मजमा लग गया. लोगों को लगा जिन्न ने पकड़ लिया है. घर वाले भी आ गए, ओझा-पंडित को बुलाकर झाड़-फूंक शुरू कर दी गई. तीन-चार दिन के बाद मित्र का नशा उतर गया और स्वाभाविक रूप से भूत भी. उसकी भी शादी हो गई है, बच्चे भी हैं. जीवन में बहुत कुछ बदल गया है. हाँ, गांजा पीने की आदत आज भी है, मगर अब जिन्न उसे नहीं पकड़ता है.

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वीणा-वादिनी वर दे

सेठ गोविंद दास: हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने के बड़े पैरोकार

राही मासूम रजा की कविता 'वसीयत'