बहुत कठिन है डगर रहाणे की

राजीव रंजन

भारत के पास 13 साल बाद इंग्लैंड में सीरीज जीतने का सुनहरा मौका था। ओवल में भारत की जबर्दस्त जीत के बाद 10 सितंबर से मैनचेस्टर ओल्ड ट्रेफर्ड मैदान में होने वाले टेस्ट से पहले मेजबान इंग्लैंड भारी मनोवैज्ञानिक दबाव में था। लेकिन पहले भारतीय कोच रवि शास्त्री, गेंदबाजी कोच भरत अरुण तथा फील्डिंग कोच आर. श्रीधर और उसके बाद असिस्टेंट फिजियो योगेश परमार के कोरोना पॉजिटिव हो जाने की वजह से ये टेस्ट मैच रद्द हो गया। भारत के 2-1 से आगे होने का बावजूद सीरीज का परिणाम इसके पक्ष में नहीं है, क्योंकि भारतीय खिलाड़ियों ने ही कोरोना के डर से पांचवां टेस्ट खेलने से मना कर दिया था। सीरीज का पांचवां टेस्ट आगे कभी होगा या नहीं, सीरीज को ड्रॉ माना जाएगा या भारत के पक्ष में, इसको लेकर अभी कुछ भी साफ नहीं है। भारत और इंग्लैंड के क्रिकेट बोर्ड इस मसले को सुलझाने में लगे हैं। इस बात की संभावना जताई जा रही है कि टीम इंडिया अगले साल जुलाई में तीन वनडे और तीन टी-20 मैचों की सीरीज खेलने इंग्लैंड जाएगी, तो उस दौरे में एक टेस्ट मैच भी आयोजित किया जा सकता है। हालांकि बीसीसीआई के अध्यक्ष सौरव गांगुली ने अपनी ओर से तो यह साफ कर दिया है कि मैनचेस्टर टेस्ट स्थगित नहीं हुआ है, बल्कि रद्द कर दिया गया है। अगर कभी भारत और इंग्लैंड के बीच एकमात्र टेस्ट खेला जाएगा, तो वह इस टेस्ट सीरीज में नहीं जोड़ा जाएगा।

अश्विन या जडेजा?

ओवल (सीरीज के चौथे टेस्ट) में 50 साल बाद भारत की ऐतिहासिक जीत और पांचवें टेस्ट के रद्द होने के घटनाक्रम ने टीम के संयोजन को लेकर बहसों को कुछ समय के लिए विराम दे दिया है। लेकिन भारतीय टीम इस साल दिसंबर में जब अगली टेस्ट सीरीज खेलने दक्षिण अफ्रीका जाएगी, तो ये मुद्दे फिर से बहस के केंद्र में होंगे। इन बहसों में दो मुद्दे सबसे प्रमुख है। अगर भारत दक्षिण अफ्रीका की तेज पिचों पर एक स्पिनर के साथ उतरेगा, तो टीम में रवींद्र जडेजा होने चाहिए या भारत के सर्वश्रेष्ठ स्पिनर रविचंद्रन अश्विन? इंग्लैंड में तो अश्विन के चारों टेस्टों में बेंच पर ही बैठना पड़ा था। क्या दक्षिण अफ्रीका में कुछ बदलाव देखने को मिलेगा, या टीम इंडिया इसी संयोजन के साथ खेलेगी? यह बता पाना अभी संभव नहीं है, क्योंकि पिच और मौसम के मिजाज को देख कर ही अंतिम एकादश का फैसला होगा। लेकिन अगर ऐसा एक बार फिर होता है, तो क्या यह सही रणनीति होगी?  

रहाणे की खराब फॉर्म बड़ा मुद्दा

और उससे भी ज्यादा गरम मुद्दा यह होगा कि क्या अजिंक्य रहाणे की जगह मध्यक्रम में बनती है? क्या उनकी जगह दूसरे को मौका मिलना चाहिए? वह भी उस स्थिति में, जब सूर्यकुमार यादव जैसे “इन-फॉर्म” बल्लेबाज टेस्ट टीम में लगातार दस्तक दे रहे हैं। पृथ्वी शॉ, मयंक अग्रवाल, शुभमन गिल और हनुमा विहारी जैसे बल्लेबाज भी इंतजार कर रहे हैं। यानी टीम इंडिया के पास विकल्पों की भरमार है। हालांकि सवाल विराट कोहली की खराब फॉर्म और चेतेश्वर पुजारा की नाकामी पर भी उठ रहे थे। ऋषभ पंत की बल्लेबाजी भी सवालों के घेरे में थी। लेकिन एक तो विराट कोहली बहुत बड़े बल्लेबाज हैं और उनकी उपलब्धियां बहुत बड़ी है। दूसरी बात यह भी है कि उन्होंने अपनी खराब फॉर्म में भी इंग्लैंड सीरीज में दो अर्द्धशतक लगाए और एक पारी में अर्द्धशतक के करीब (44 रन) पहुंचे। वैसे भी टीम में उनकी जगह पर सवाल उठने का सवाल फिलहाल कुछ सालों तक तो नहीं है। साथ ही, वे कप्तान के रूप में लगातार सफलताएं अर्जित कर रहे हैं।


पुजारा ने कुछ कम कीं अपनी मुसीबतें

अब बात चेतेश्वर पुजारा की। पुजारा ने इस सीरीज में कम से कम दो पारियां (91 और 61 रन) ऐसी खेली हैं और दो शतकीय साझेदारियां ऐसी की हैं- दूसरे टेस्ट की दूसरी पारी में अजिंक्य रहाणे के साथ 100 रन की और चौथे टेस्ट की दूसरी पारी में रोहित शर्मा के साथ 153 रन की- जिसने भारत की जीत में बेहद अहम भूमिका निभाई। वह इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज में भारत की ओर से तीसरे सबसे ज्यादा रन बनाने वाले (रोहित शर्मा और के. एल. राहुल के बाद) बल्लेबाज रहे। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि पुजारा ने खुद के लिए थोड़ा और समय हासिल कर लिया है। वहीं ऋषभ पंत के साथ समस्या फॉर्म से ज्यादा टेम्परामेंट की है। वे ज्यादातर खराब शॉट खेलकर आउट होते हैं। चौथे टेस्ट की दूसरी पारी में उन्होंने इस आदत पर लगाम लगाते हुए अहम अर्द्धशतक लगाया। उन्होंने कितना संयम बरता, उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह उनके करियर का सबसे धीमा अर्द्धशतक था। उन्होंने अपनी विकेटकीपिंग में भी काफी सुधार किया है और उनके साथ उम्र भी है, इसलिए उन्हें अभी कुछ और मौके मिलेंगे। अगर वह बाहर हो भी गए, तो वापसी के कई मौके मिलंगे।


बेहद खराब दौर से गुजर रहे हैं रहाणे

अब बात अजिंक्य रहाणे की। उन्होंने पिछले पांच टेस्ट मैचों की 9 पारियों में महज 173 रन बनाए हैं, यानी 20 से भी कम औसत के साथ। इंग्लैंड के साथ सीरीज में चार टेस्ट मैचों की सात पारियों में उनके बल्ले से सिर्फ 109 रन आए। औसत रहा मात्र 15.57 का। भारत के उच्च और मध्य क्रम के बल्लेबाजों का औसत तो उनसे ज्यादा था ही, शार्दुल ठाकुर जैसे निचले क्रम के बल्लेबाज ने भी उनसे ज्यादा रन बनाए। वह भी केवल दो टेस्ट मैचों और तीन पारियों में। इस सीरीज के चार टेस्ट मैचों में, रहाणे दोनों टीमों को मिलाकर रन बनाने के मामले में 12वें नंबर पर रहे। यानी वह बल्लेबाजों में सबसे निचले पायदान पर रहे। यह भी ध्यान देने लायक तथ्य है कि इंग्लैंड के डेविड मलान ने दो, मोईन अली ने तीन और ओली पोप तथा क्रिस वोक्स ने सिर्फ एक टेस्ट खेला। अगर ये खिलाड़ी चारों मैच खेले होते, तो शायद रहाणे का नंबर और नीचे होता। रहाणे का आत्मविश्वास अभी इतना कमजोर हो गया है कि उनके पैर चल ही नहीं रहे हैं। उनका फुटवर्क उनकी बल्लेबाजी को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है।

चार साल से प्रदर्शन में निरंतरता नहीं

दरअसल अजिंक्य रहाणे की फॉर्म में 2017 से ही उतार-चढ़ाव जारी है। इसके पहले उनकी बल्लेबाजी का वार्षिक औसत हमेशा 43 से ऊपर रहा, लेकिन 2017 में वह 34.62 और 2018 में 30.66 पर आ गया। हां, 2019 में उन्होंने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया। उनकी बल्लेबाजी का वार्षिक औसत करियर के उच्चतम स्तर पर रहा, जो 71.33 था। उस साल उन्होंने आठ टेस्ट मैचों की 11 पारियों में दो बार नॉट आउट रहते हुए 642 रन बनाए, जिसमें दो शतक और पांच अर्द्धशतक शामिल थे। लेकिन 2020 में फिर उनका सालाना औसत 40 के नीचे पहुंच गया। वैसे कोरोना की वजह से इस साल कई महीने क्रिकेट खेली भी नहीं गई। रहाणे ने 4 टेस्ट मैचों की 8 पारियों में एक बार नॉट आउट रहते 272 रन बनाए 38.86 की औसत से। इस दौरान वे सिर्फ एक शतक लगा पाए। 2021 में तो वह अपने करियर के सबसे खराब दौर में हैं। इस साल वह 11 टेस्ट की 19 पारियों में 19.58 की औसत से महज 372 रन बना पाए हैं और सिर्फ दो बार 50 का आंकड़ा पार कर पाए हैं। यह भी गौरतलब है कि रहाणे ने अपने आठ-नौ वर्षों के टेस्ट करियर में किसी भी वर्ष (कैलेंडर ईयर) में 1,000 हजार रन नहीं बनाए हैं। फिलहाल टेस्ट में उनका औसत 40 से भी नीचे आ गया है।


बल्लेबाजी क्रम में धकेले गए नीचे

रहाणे की खराब फॉर्म का ही नतीजा था कि ओवल टेस्ट में पांचवें नंबर पर उनकी जगह पर रवींद्र जडेजा को भेजा गया। रहाणे छठे नंबर पर आए। पहली पारी में इस कदम से लगा कि लेफ्ट-राइट कॉम्बिनेशन को दिमाग में रख कर जडेजा को ऊपर भेजा गया था। लेकिन जब दूसरी पारी में भी ऐसा ही हुआ, तो उसके निहितार्थ कुछ और ही लग रहे थे। मेरे हिसाब से टीम प्रबंधन की रणनीति यह रही होगी कि शायद क्रम बदलने से रहाणे को कुछ फायदा मिले। दूसरी बात शायद यह हो सकती है कि अगर जडेजा पांच नंबर पर ठीक प्रदर्शन करते हैं, तो रहाणे की जगह अश्विन को रखा जा सकता है। शार्दुल अच्छी बल्लेबाजी कर रहे हैं और अश्विन के नाम भी चार टेस्ट शतक हैं। यह एक अच्छा कॉम्बिनेशन साबित हो सकता है। हालांकि जडेजा इस नंबर पर कुछ खास नहीं कर पाए और दोनों पारियों में केवल 27 रन ही बना सके, लेकिन रहाणे की हालत तो इससे भी खराब रही। दोनों पारियों में वह 14 और 0 का स्कोर ही बना पाए। इस टेस्ट ने उनकी मुश्किलों में और इजाफा कर दिया है। उनके लिए आगे की डगर की बहुत कठिन लगती है।

मैनचेस्टर हो सकता था एक मौका!

इस सीरीज में तो स्थिति यह रही कि रहाणे से बेहतर बल्लेबाजी औसत मोहम्मद शमी (18.75) और जसप्रीत बुमराह (17.40) का था। हालांकि इस तुलना का अभिप्राय यह नहीं है कि दोनों रहाणे से बेहतर बल्लेबाज हैं। रहाणे ने अपनी बेहतरीन बल्लेबाजी से टीम इंडिया को मैच जिताए हैं और कई बार संकट से बाहर निकाला है। उन्होंने विदेशी पिचों पर शानदार प्रदर्शन किया है और अपने पहले चार शतक विदेशों में ही लगाए हैं। उसमें से भी तीन शतक न्यूजीलैंड, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में तेज गेंदबाजों की मददगार पिचों पर बनाए। उन्होंने विदेशी मैदानों (41.71 की औसत से 3087 रन) पर घरेलू मैदानों (36.47 की औसत से 1605 रन) के मुकाबले लगभग दुगने रन बनाए हैं। ये आंकड़े साबित करते हैं कि वे अच्छी तकनीक से लैस बल्लेबाज हैं। लेकिन उनका पिछले दो सालों का प्रदर्शन बता रहा है कि उनकी तकनीक कहीं खो गई है। उसे दुरुस्त करने की जरूरत है। दिक्कत यह है कि कमजोर आत्मविश्वास इसमें सबसे बड़ी बाधा बन रहा है। और उनके पास समय भी ज्यादा नहीं है। अगर वह एक बार टीम से बाहर हुए, तो वापसी बहुत मुश्किल होगी, क्योंकि उम्र उनके साथ नहीं है, वे 33 साल से ज्यादा के हो चुके हैं। हरभजन सिंह, प्रज्ञान ओझा, गौतम गंभीर जैसे खिलाड़ी इसका उदाहरण हैं। कई युवा खिलाड़ी मौका लपकने के लिए तैयार बैठे हैं। दक्षिण अफ्रीका के दौरे में रहाणे टीम में होंगे या नहीं, अगर होंगे तो अंतिम एकादश में मौका मिलेगा या नहीं, इस पर बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न है। कुल मिलाकर, रहाणे के पास अवसर बहुत कम हैं। हम तो चाहेंगे कि रहाणे टीम में बने रहे। उनको शुभकामनाएं।

नोटः यह लेख ओवल, लंदन टेस्ट (2-6 सितंबर, 2021) के समाप्त होने के बाद और ओल्ड ट्रेफर्ड, मैनचेस्टर टेस्ट (जो 10 सितंबर से शुरू होने वाला था, लेकिन रद्द हो गया) के शुरू होने के पहले लिखा गया और पोस्ट किया गया था। लेकिन परिस्थितियों के बदल जाने के बाद इसे बाद में संपादित किया गया है।

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