मख्मूर सईदी की शायरी

चल पड़े

सुन ली सदा-ए-कोहे-निदा और चल पड़े
हमने किसी से कुछ न कहा और चल पड़े

ठहरी हुई फिजा में उलझने लगा था दम
हमने हवा का गीत सुना और चल पड़े

तारीक रास्तों का सफर सहल था हमें
रोशन किया लहू का दिया और चल पड़े

घर में रहा था कौन कि रुखसत करे हमें
चौखट को अलविदा कहा और चल पड़े

'मख्मूर' वापसी का इरादा न था मगर
घर को खुला ही छोड़ दिया और चल पड़े

सदा-ए-कोहे-निदा- पर्वत के बुलाने की आवाज़
तारीक- अंधकारमय
सहल- आसान

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