सरफरोशी की तमन्‍ना अब हमारे दिल में है

सरफरोशी की तमन्‍ना अब हमारे दिल में है
देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है।

रहबरे राहे मुहब्‍बत रह न जाना राह में
लज्‍जते सहरा नवर्दी, दूरो-ए-मंजिल में है।

वक्‍त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां
हम अभी से क्‍या बताएं, क्‍या हमारे दिल में है।

आज फिर मकतल में थे, कातिल कह रहा है बार-बार
क्‍या तमन्‍ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है।

ऐ शहीदों मुल्‍को मिल्‍ल्‍त, मैं तेरे जज्‍बों के निसार
अब तेरी कुर्बानी का चर्चा, गैर की महफिल में है।

अब न अहले बलबले हैं और न अरमानों की भीड़
एक मिट जाने की हसरत दिल-ए-बिस्म्ल्लि में है।

सरफरोशी की तमन्‍ना अब हमारे दिल में है
देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है।

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वीणा-वादिनी वर दे

सेठ गोविंद दास: हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने के बड़े पैरोकार

राही मासूम रजा की कविता 'वसीयत'