पत्रकारिता हमारी ढाल है और साहित्य आड़
राजीव रंजन
हमें गुमान है कि हम
लोकतंत्र के चौथे खंभे की
ईंट और गारे हैं.
हमें यह भी गुमान है कि
हम लोगों की आवाज हैं
ये बात और है कि
हमारी ही आवाज
बेमौत मर जाती है
या यूं कहें, हम ही खुद
घोट देते हैं उसका गला.
हम सिर्फ नौकरी करते हैं
हमारी एकमात्र चिंता है
नौकरी बची रहे
चाहे कुछ और बचे न बचे.
जब हम पर कोई सवाल उठाता है
हम उछाल देते हैं
उस पर ही कई सवाल.
हम पापी पेट की दुहाई देकर
न जाने कितने पाप
चुपचाप देखते रहते हैं.
हम पापी पेट के नाम पर
हर रोज न जाने कितने
पाप करते रहते हैं
और इन सारे ‘पापबोधों’ से
मुक्त होने के लिए
कविता लिख देते हैं.
पत्रकारिता हमारी ढाल है
साहित्य हमारी आड़।
(28/12/2006)
हमें गुमान है कि हम
लोकतंत्र के चौथे खंभे की
ईंट और गारे हैं.
हमें यह भी गुमान है कि
हम लोगों की आवाज हैं
ये बात और है कि
हमारी ही आवाज
बेमौत मर जाती है
या यूं कहें, हम ही खुद
घोट देते हैं उसका गला.
हम सिर्फ नौकरी करते हैं
हमारी एकमात्र चिंता है
नौकरी बची रहे
चाहे कुछ और बचे न बचे.
जब हम पर कोई सवाल उठाता है
हम उछाल देते हैं
उस पर ही कई सवाल.
हम पापी पेट की दुहाई देकर
न जाने कितने पाप
चुपचाप देखते रहते हैं.
हम पापी पेट के नाम पर
हर रोज न जाने कितने
पाप करते रहते हैं
और इन सारे ‘पापबोधों’ से
मुक्त होने के लिए
कविता लिख देते हैं.
पत्रकारिता हमारी ढाल है
साहित्य हमारी आड़।
(28/12/2006)