‘साहेब बीवी और गैंगस्टर 3’ की समीक्षा
कहीं गुम हो गए हैं साहेब बीवी और गैंगस्टर
राजीव रंजन
कलाकार: जिमि शेरगिल, संजय दत्त, माही गिल, चित्रांगदा सिंह, कबीर बेदी, दीपक तिजोरी, जाकिर हुसैन, सोहा अली खान
निर्देशक: तिग्मांशु धुलिया
लेखक: तिग्मांशु धुलिया और संजय चौहान
2 स्टार (दो स्टार)
निर्देशक तिग्मांशु धुलिया जिस तरह की फिल्में बनाते हैं और जिस तरह से बनाते हैं, उसके कारण उनकी अगली फिल्म देखने की उत्सुकता बनी रहती है। एकाध अपवादों को छोड़ दें, उन्होंने निराश भी नहीं किया है और अपने काम से लोगों को प्रभावित किया है। तिग्मांशु को एक अच्छे फिल्मकार के रूप में स्थापित करने में ‘साहेब बीवी और गैंगस्टर’ सिरीज की पहली दोनों फिल्मों ने अहम भूमिका निभाई है। लिहाजा इसके तीसरे भाग को लेकर लोगों में उत्सुकता स्वाभाविक है। ‘साहेब बीवी और गैंगस्टर 3’ की कहानी दूसरे भाग से आगे बढ़ती है। साहेब और बीवी तो वही हैं, लेकिन गैंगस्टर पिछली बार की तरह इस बार भी बदल गया है।
राजा आदित्य प्रताप सिंह यानी साहेब (जिमि शेरगिल) पिछले गैंगस्टर के कत्ल के इल्जाम में जेल में हैं। वे जेल से निकलने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन पैसों की तंगी की वजह से निकल नहीं पा रहे हैं। रानी माधवी सिंह यानी बीवी (माही गिल) महल में हैं और वहीं से सियासत करती हैं। अपनी पार्टी की भी और निजी जिंदगी की भी। साहेब और बीवी के बीच खेल जारी है। उदय सिंह यानी गैंगस्टर (संजय दत्त) लंदन में रहता है और वहीं एक होटल चलाता है। वह रशियन रुलेट का माहिर खिलाड़ी है। रशियन रुलेट दो लोगों के बीच एक ऐसा खेल होता है, जिसमें हार-जीत का फैसला एक खिलाड़ी की मौत से होता है। उदय के पिता (कबीर बेदी) और छोटा भाई विजय (दीपक तिजोरी) भारत में रहते हैं। उदय की रखैल सुहानी (चित्रांगदा सिंह) भी भारत में ही रहती है। अपने पुराने वफादार कन्हैया (दीपराज राणा) और उसकी बेटी की मदद से साहेब बाहर आ जाते हैं। साहेब के बाहर आने के बाद बीवी एक निजी टूर पर यूरोप जाती हैं, जहां उनकी मुलाकात गैंगस्टर से होती है और दोनों में दोस्ती हो जाती है। इसी बीच एक घटना होती है, जिसके कारण गैंगस्टर को अपनी पत्नी और बेटी को वहीं छोड़ भारत लौटना पड़ता है। हालांकि गैंगस्टर इससे दुखी होने की बजाय खुश ही है। गैंगस्टर जब भारत लौटता है तो राजनीति, महत्वाकांक्षा, धोखा, हिंसा और प्रेम का एक वीभत्स खेल शुरू होता है, जिसके केंद्र में साहेब, बीवी और गैंगस्टर हैं।
इस सिरीज की पहली दोनों फिल्मों में भी कहानी का ताना-बाना इसी पृष्ठभूमि में बुना गया था, लेकिन उन दोनों फिल्मों में जो रोचकता थी, वह इस बार नदारद है। संजय दत्त के कास्ट में शामिल होने के बावजूद। संजय दत्त के आने से इस फिल्म का कैनवास तो बड़ा हुआ, लेकिन असर नहीं। ‘साहेब, बीवी और गैंगस्टर 3’ इस सिरीज की सबसे कमजोर फिल्म है। इसकी सबसे कमजोर कड़ी है पटकथा। संजय चौहान और तिग्मांशु धुलिया की लेखक जोड़ी बहुत निराश करती है। ऐसा लगता है कि कहानी के कई सिरों को बिना मेहनत किए हुए जोड़ने की कोशिश की गई है। कई सारी चीजें अटपटी लगती हैं, उनके पीछे का तर्क बहुत आश्वस्त नहीं करता।
बतौर निर्देशक भी तिग्मांशु प्रभाव नहीं छोड़ पाते। ऐसा लगता है फिल्म और उसके किरदार उनके नियंत्रण में नहीं हैं। पहले वाली दोनों फिल्मों की तरह इसमें कोई भी किरदार बहुत उभर कर नहीं आ पाया है। साहेब के किरदार में जो कसाव था, वह इस फिल्म में नहीं है। बीवी भी एक चोट खाई पत्नी और धूर्त राजनीतिज्ञ के मुकाबले मनोविकार ग्रस्त महिला ज्यादा लगती है। गैंगस्टर का रुतबा इस बार ड्राईवर और एक छोटे-मोटे जमींदार से बढ़ा कर रियासत के युवराज का कर दिया गया है, लेकिन किरदार के असर के लिहाज से देखें तो वह रुतबा कम ही हुआ है। कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि निर्देशक ने किरदारों को गढ़ने में ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं समझी। सब कुछ दर्शकों की समझ के भरोसे छोड़ दिया गया लगता है। संवाद इस सिरीज की पिछली दोनों फिल्मों की जान थे, इस बार उनमें भी कोई खास दम नहीं है। संवादों में इस बार वो पंच नहीं है। गीत-संगीत भी साधारण ही है। सिनमेटोग्राफी अच्छी है।
जिमी शेरगिल बढ़िया अभिनेता हैं और जब भी उन्हें मौका मिला है, उन्होंने असर डाला है। लेकिन पटकथा का साथ न मिले तो अच्छा अभिनेता भी बहुत अच्छा नहीं कर सकता। संजय दत्त अपनी ‘कम्फर्ट जोन’ वाले किरदार में हैं। एक बुरा आदमी, जो दिल का बुरा नहीं है। बस अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रखा पाता है और हालात का शिकार होकर बुरा बन जाता है, बदनाम हो जाता है। लेकिन उनके अभिनय में कुछ नया नहीं है। उम्र का थोड़ा असर दिखने लगा है। माही गिल भी ठीक हैं, जैसी उनकी भूमिका थी, उससे उन्होंने न्याय किया है। चित्रांगदा के करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं था, अंत में एक मुजरा था, जो उन्होंने अच्छा किया है। दीपक तिजोरी और कबीर बेदी के किरदार जरूरत से ज्यादा ‘लाउड’ हैं। जाकिर हुसैन की भूमिका छोटी है, लेकिन उन्होंने अच्छा अभिनय किया है। सोहा अली को केवल संदर्भ के लिए इस फिल्म में रखा गया है। बाकी सहयोगी कलाकार भी ठीक हैं।
अगर इस सिरीज की पहली दोनों फिल्मों से तुलना न करते हुए भी ‘साहेब बीवी और गैंगस्टर 3’ को देखें तो यह फिल्म प्रभावित नहीं करती है। फिल्म में कई नई चीजें जुड़ी हैं, लेकिन उनके जुड़ने से फिल्म के प्रभाव में कुछ नया नहीं जुड़ा है, बल्कि घटा ही है। यह तिग्मांशु धुलिया जैसे निर्देशक के रुतबे से मेल नहीं खाती।
(27 जुलाई को livehindustan.com में और 28 जुलाई को "हिन्दुस्तान" में सम्पादित अंश प्रकाशित)
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