भूत: पार्ट वन- द हॉन्टेड शिप की समीक्षा

फिर वही पुरानी कहानी

राजीव रंजन

कलाकार: विक्की कौशलभूमि पेडणेकरआशुतोष राणाआकाश धरमेहर विजसंजय गुरबक्शानी

निर्देशक: भानू प्रताप सिंह

निर्माता: करण जौहर और हीरू जौहर

स्टार- 2.5

बॉलीवुड में हॉरर फिल्में बनती रहती हैंलेकिन उनमें याद रखने लायक इक्का-दुक्का ही हैं। दरअसल हॉरर जैसे रोमांचक विषय को बॉलीवुड में अब तक बहुत ढंग से पेश नहीं किया है। अभी भी इसमें काफी स्कोप है। रामसे ब्रदर्स के बाद विक्रम भट्टएकता कपूर ने इस तरह की कुछ फिल्में बनाई हैंया फिर कभी-कभी कुछ छोटे बैनरों ने हॉरर फिल्में बनाई हैं। लेकिन बॉलीवुड के जो टॉप बैनर हैंउन्होंने इस विधा को बहुत गंभीरता से लिया नहीं है। हांरामगोपाल वर्मा ने जरूर इस विधा में रात’ और भूत’ जैसी कुछ बेहतरीन फिल्में दी हैं। अब करण जौहर जैसे बड़े निर्माता-निर्देशक के धर्मा प्रोडक्शंस’ ने भी पहली बार इस तरह की फिल्म बनाई है- भूत: पार्ट वन- द हॉन्टेड शिप। यह कहानी है एक अभिशप्त जहाज की।
पृथ्वी (विक्की कौशल) एक शिपयार्ड कंपनी में अधिकारी है। उसकी पत्नी (भूमि पेडणेकर) और बेटी एक दुर्घटना में मारे गए थे। वह अपने दुखद अतीत से उबर नहीं पाता। उसे अभी भी अपनी बेटी और पत्नी दिखाई देते हैं। इसी बीच मुंबई के समुद्र तट पर एक बड़ा जहाज सी-बर्ड’ भटक कर आ जाता है और रेत में फंस जाता है। इस बड़े जहाज में कोई भी नहीं है। न चालक दलन कोई स्टाफ और न ही कोई अन्य इनसान। पृथ्वी का बॉस अग्निहोत्री (संजय गुरबक्शानी) रिटायर होने वाला है और वह चाहता है कि जल्दी से जल्दी यह जहाज समुद्र तट से रफा-दफा हो। इस काम का जिम्मा मिलता है पृथ्वी और उसके दोस्त रियाज (आकाश धर) को। पृथ्वी जब उस जहाज में चेकिंग के लिए जाता हैतो उसे अजीबोगरीब चीजें दिखाई देती हैं। उसे एक गुड़िया बार-बार दिखाई देती है। वह डर जाता हैफिर भी बार-बार जहाज के अंदर जाता है। वहां उसे एक वीडियो टेप और कुछ दस्तावेज मिलते हैं। उसे लगता है कि जहाज में एक जिंदा इनसान फंसा है। वह उसे बचाना चाहता है। इस काम में उसकी मदद करते हैं प्रोफेसर जोशी (आशुतोष राणा) और रियाज। वह जहाज से जुड़ी सभी पुरानी जानकारियां इकट्ठा करता है और पाता है कि उसके पूरे स्टाफ ने आत्महत्या कर ली थीलेकिन एक महिला वंदना (मेहर विज) का कोई सुराग नहीं है। वह वंदना का पता लगाने की कोशिश करता हैताकि जहाज में फंसे इनसान की मदद कर सके...
यह फिल्म शुरू में बॉलीवुड की ज्यादातर हॉरर फिल्मों से थोड़ी-सी अलग लगती है। कई दृश्य शरीर में सिहरन पैदा करते हैंहालांकि फिल्म रोंगटे खड़ा कर देने वाले डर का माहौल नहीं रच पाती। फिल्म की पटकथा दमदार नहीं है। इसमें कई झोल हैं। निर्देशक के रूप में भानू प्रताप सिंह ठीक हैंफिल्म को उन्होंने ठीक से पेश किया हैलेकिन लेखक के रूप में वह चूक गए है। यह फिल्म कई बार आमिर खान के तलाश’ की भी याद दिलाती है।
बॉलीवुड में हॉरर फिल्मों के साथ एक बड़ी दिक्कत है कि शुरुआत चाहे जैसी होअंत में वे ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै’ पर आकर फंस जाती हैं। इस फिल्म के साथ भी ऐसा ही हुआ है। पहले हाफ में यह फिल्म उम्मीदें जगाती हैलगता है कि कुछ अलग देखने को मिलेगालेकिन मध्यांतर के बाद यह बिखरने लगती है। फिल्म को कैसे आगे बढ़ाया जाए और एक रोमांचक कलाइमैक्स तक ले जाया जाएइसका सूत्र लेखक-निर्देशक के हाथों से फिसल जाता है। इसमें डर पैदा करने के लिए छिपकलीचमगादड़गुड़ियाबिखरे बालोंअजीब-सी आंखों और विकृत चेहरे वाले इनसानों के पुराने टोटकों का इस्तेमाल किया गया है। फिल्म की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है। हॉरर फिल्मों में बैकग्राउंड म्यूजिक की बहुत अहम भूमिका होती हैइस लिहाज से फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा है। सच कहेंतो यह बैकग्राउंड म्यूजिक ही हैजो फिल्म में डर का थोड़ा-बहुत माहौल रचता है।
विक्की कौशल का अभिनय अच्छा है। अपने किरदार को ठीक से पेश करने में वह सफल रहे हैं। दुखअवसाद और डर के भावों को उन्होंने सफलतापूर्वक अभिव्यक्त किया है। आशुतोष राणा तो ऐसी भूमिकाओं के लिए एक पसंदीदा नाम बन चुके हैं। अपने करियर के प्रारम्भिक दौर से उन्होंने ऐसी भूमिकाएं निभानी शुरू की थीं और ये सिलसिला आज तक जारी है। उनका काम ठीक हैलेकिन उनके किरदार को ठीक से नहीं गढ़ा गया है। रियाज के रूप में आकाश धर का अभिनय अच्छा है। मेहर विज भी ठीक हैं। भूमि पेडणेकर के हिस्से बस एक-दो दृश्य ही हैं। वह इस फिल्म में मेहमान कलाकार के तौर पर ही हैं। अन्य छोटे किरदार निभाने वाले कलाकारों ने भी अपना काम ठीक से किया है।
अगर हॉरर फिल्में पसंद करते हैंतो इसे एक बार देखने में कोई बुराई नहीं है। यह फिल्म थोड़ा-बहुत तो डराती ही है।

(में 21 फरवरी और हिन्दुस्तान’ में 22 फरवरी को प्रकाशित)

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