तालों के शहर नैनीताल की कुल देवी का मंदिर

राजीव रंजन


@फोटोग्राफरः राजीव रंजन

पौराणकि मान्यता है कि प्राचीन काल में नैनीताल में एक स्थान पर महर्षि अत्रि, महर्षि पुलस्त्य और महर्षि पुलह ने तपस्या की और मानसरोवर से जल लाकर एक सरोवर का निर्माण किया, जिसे त्रिऋषि सरोवरकहा जाता था। आज उस सरोवर को नैनी झील के नाम से जानते हैं। मानसरोवर के जल से निर्मित होने के कारण नैनी झील को स्थानीय लोग छोटा मानसरोवरभी कहते हैं। आम की आकृति वाले इस झील के जल को बहुत पवित्र माना जाता है। इस झील के एक छोर पर स्थित है मां नैना देवी का मंदिर।

इसके बारे में एक कथा बहुत प्रचलित है- दक्ष प्रजापति की पुत्री उमा का विवाह भगवान शिव से हुआ था। शिव को दक्ष प्रजापति पसन्द नहीं करते थे, लेकिन देवताओं के आग्रह पर उन्होंने बेमन से अपनी पुत्री का विवाह शिवजी के साथ कर दिया। एक बार दक्ष ने यज्ञ कराया, उसमें सभी देवताओं को निमंत्रित किया, लेकिन दामाद शिव और बेटी उमा को नहीं बुलाया। शिवजी के मना करने के बावजूद उमा जी उस यज्ञ में पहुंची। बिन बुलाए पहुंचे शिव जी का दक्ष ने अपमान किया, जिससे आहत होकर हवन कुंड में कूद पड़ीं और कहा- मैं अगले जन्म में भी शिव को ही अपना पति बनाऊंगी। उमा के सती होने पर शिव जी ने विकराल रूप धारण कर लिया। उन्होंने दक्ष के यज्ञ को नष्ट-भ्रष्ट कर डाला। सभी देवी-देवता शिव के इस विकराल रूप से डर गए कि शिव कहीं सृष्टि का संहार ही न कर डालें। सभी ने उनसे क्रोध के त्याग देने की प्रार्थना की। दक्ष प्रजापति ने भी क्षमा-याचना की। शिव जी शांत हो गए, दक्ष को क्षमा कर दिया, लेकिन जली हुई मृत सती को देख कर शिव के मन में वैराग पैदा हो गया। वे सती के शरीर को कंधे पर डाल कर आकाश मार्ग से चल पड़े। इस यात्रा के दौरान जहां-जहां सती के शरीर के अंग गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए, जिनकी संख्या 51 है।


@फोटोग्राफरः राजीव रंजन

जिस स्थान पर सती की बायीं आंख गिरी थी, वही स्थान नैना देवी के नाम से संसार में प्रसिद्ध हुआ। एक मान्यता यह भी है कि सती की आंख गिरने से ही नैनी झील बनी थी। बहुत लोगों का यह भी मानना है कि हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थित नैना देवी का जो मंदिर है, वहां सती की आंख गिरी थी। लेकिन स्थानीय लोगों का विश्वास है कि नैनीताल का नैना देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है और नैना देवी इस शहर की कुल देवी हैं। इन्हीं से इस शहर को अपना नाम मिला है।

मंदिर परिसर में जैसे ही प्रवेश करेंगे, बायीं ओर आपको पीपल का एक विशाल वृक्ष मिलेगा और दायीं और बजरंगबली नजर आएंगे। माता का वाहन सिंह है और संभवत: इसी कारण से मुख्य परिसर में मां के दर्शन से पहले श्रद्धालुओं का सामना दो सिंहों से होता है। मुख्य परिसर में तीन प्रतिमाएं हैं- मां नैना देवी (बीच में), उनकी बायीं ओर मां काली और दायीं ओर गणेशजी। नैना देवी को दो नयनों के माध्यम से दर्शाया गया है। मुख्य मंदिर के सामने तीन विशाल घंटे लगे हुए हैं। मुख्य मंदिर भवन के ठीक सामने काले पत्थर से निर्मित एक सुंदर शिवलिंग भी स्थापित है। मंदिर परिसर बहुत बड़ा और भव्य नहीं है, लेकिन इसकी धार्मिक मान्यता बहुत है। नैनीताल आने वाले अधिकांश सैलानी मां के यहां दर्शन करने आते हैं। यह शहर की हृदयस्थली में स्थित है। इसके ठीक पास माल रोड और भूटिया बाजार स्थित हैं।

@फोटोग्राफरः राजीव रंजन

कहते हैं कि यह मंदिर 15वीं शताब्दी में बना था, लेकिन 1880 में एक भूस्खलन के कारण गिर गया। 1883 में फिर इसका पुनर्निमाण कराया गया। यहां सालोंभर श्रद्धालु आते हैं, लेकिन वासंतिक और शारदीय नवरात्र के दौरान श्रद्धालुओं की संख्या काफी बढ़ जाती है। सावन में भी भारी संख्या में यहां भक्त आते हैं। मंदिर परिसर से सटे प्रसाद की कई दुकानें हैं। मंदिर सुबह छह बजे से 10 बजे रात तक खुला रहता है।

कैसे पहुंचे: नैनीताल का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है, जहां से नैनीताल करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर है। देश के विभिन्न हिस्सों से काठगोदाम के लिए कई ट्रेनें हैं। यहां से आप बस या टैक्सी द्वारा नैनीताल पहुंच सकते हैं। दिल्ली से नैनीताल की दूरी करीब 315 किलोमाटर है। यहां से भी आप बस, टैक्सी से नैनीताल पहुंच सकते हैं।

(हिन्दुस्तान में 9 फरवरी, 2021 को संपादित अंश प्रकाशित)

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