खोपड़ी से काम मत लो! फूट जाएगी



‘पोस्टर बॉयज’ की समीक्षा

राजीव रंजन

2.5 स्टार

कलाकार: सन्नी देओल, बॉबी देओल, श्रेयस तलपड़े, सोनाली कुलकर्णी, समीक्षा भटनागर, अश्विनी कलसेकर, भारती अचरेकर
निर्देशक: श्रेयस तलपड़े


पिछले शुक्रवार ‘मर्दानगी’ से जुड़ी भ्रांतियों पर एक फिल्म आई थी ‘शुभ मंगल सावधान’। इस हफ्ते भी ऐसे ही विषय से जुड़ी एक और फिल्म आई है ‘पोस्टर बॉयज’, जो नसबंदी के बारे में बात करती है। लेकिन गंभीरता से नहीं, चलताऊ हंसी-मजाक के साथ। इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारे समाज में नसबंदी कराने वालों को ‘अच्छी नजर’ से नहीं देखा जाता। नसबंदी को ‘मर्दानगी बंदी’ के रूप में देखा जाता है। इस फिल्म का ताना-बाना इसी कथ्य के इर्द-गिर्द बुना गया है।

एक गांव है जंगीठी, जो भाषा, भाव, माहौल के लिहाज से हरियाणा का कोई गांव लगता है। यहां रहते हैं रिटायर्ड फौजी जगावर सिंह (सन्नी देओल), स्कूल मास्टर विनय शर्मा (बॉबी देओल) और रिकवरी एजेंट अर्जुन सिंह (श्रेयस तलपड़े)। जगावर सेल्फी लेने के शौकीन है, मास्टर को कोई चीज बताते हुए बीच में ही भूल जाने की आदत है। अर्जुन को टशन झाड़ने की आदत है और वह रॉक स्टार के अंदाज़ में रहता है। उसके दो चेले हैं, जिनके किरदार मजेदार हैं। एक दिन कुछ ऐसा होता है कि तीनों की जिन्दगी में भूचाल आ जाता है। जगावर के बहन की शादी टूट जाती है। अर्जुन की प्रेमिका रिया का पिता अपनी बेटी की शादी अर्जुन से करने से इंकार कर देता है। मास्टर की बीवी सूरजमुखी (समीक्षा भटनागर) तलाक की धमकी देते हुए मास्टर को छोड़ कर मायके चली जाती है। फिर तीनों को पता चलता है कि उनकी दुर्दशा का कारण एक पोस्टर है। तीनों हैरान-परेशान रह जाते हैं कि ऐसे किसी पोस्टर के लिए उन्होंने कभी फोटो खिंचाई ही नहीं और पोस्टर में दिखाया गया काम भी नहीं किया। तीनों इसका पता लगाने और अपनी ‘बेगुनाही’ साबित करने के लिए निकल पड़ते हैं। इसमें उन्हें एक प्रेस रिपोर्टर का साथ भी मिलता है।

यह फिल्म नसबंदी के औचित्य और जनसंख्या विस्फोट जैसे बेहद अहम और संवेदनशील मुद्दे को उठाती है। लेकिन फिल्म देख कर ऐसा लगता है कि निर्देशक श्रेयस तलपड़े का इरादा एक महत्वपूर्ण विषय को सार्थक तरीके से पेश करने से ज्यादा एक कॉमेडी फिल्म बनाने का था। यही वजह है कि शायद उन्होंने स्क्रिप्ट पर मेहनत करने की बजाय जोक्स पर ज्यादा फोकस किया है। जोक्स कई जगह हंसाते हैं तो कई जगह असरहीन भी रहते हैं। कई जगह मासूमियत भरे हैं तो कई जगह कोफ्त भी पैदा करते हैं। खासकर बॉबी देओल के भूलने की आदत बेमतलब की लगती है। सन्नी देओल के बार-बार सेल्फी लेने के सीन भी बहुत गुदगुदी पैदा नहीं करते। फिल्म में परिस्थिति-जन्य (सिचुएशनल) कॉमेडी के कुछ सीन मजेदार हैं। खासकर ‘खोपड़ी इस्तेमाल करो’ वाला सीन।

निर्देशक फिल्म के किरदारों और विषय को स्थापित करने में काफी समय ले लेते हैं, जिससे फिल्म का प्रभाव कमजोर होता है। फिल्म धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ती है और लगता है कि यह एक अहम मसले पर पर संजीदगी से बात करेगी, लेकिन यह भ्रम ज्यादा देर नहीं टिकता। हालांकि क्लाईमैक्स में मुद्दों को बताने की कोशिश की गई है, लेकिन वह प्रभावित नहीं करता। लेकिन लेखक और निर्देशक को यह श्रेय तो दिया ही जाना चाहिए कि उन्होंने ‘नसबंदी’, ‘जनसंख्या विस्फोट’ और ‘बेटे-बेटी में समानता’ जैसे मुद्दों को उठाने की कोशिश की है। बतौर निर्देशक श्रेयस तलपड़े की यह पहली फिल्म है और निर्देशक के रूप में अपने पहले प्रोजेक्ट में वह निराश नहीं करते। हां, अगर लेखक के साथ मिल कर वह स्क्रिप्ट पर मेहनत करते तो ‘पोस्टर बॉयज’ शानदार फिल्म में तब्दील हो सकती थी। फिर भी वह संभावना तो जगाते ही हैं।

अभिनय के लिहाज से बात करें तो सन्नी देओल अपने चिर-परिचित अंदाज में हैं। कई बार वह ‘घायल’, ‘घातक’ और ‘दामिनी’ के तेवर को मजाकिया अंदाज में दुहराने की कोशिश करते हैं। बॉबी के किरदार में कॉमेडी की बहुत संभावनाएं थीं, लेकिन वह उसे पूरी तरह साकार नहीं कर पाए हैं। श्रेयस तलपड़े हमेशा टशन में रहते हैं और उनका अभिनय ठीक है, लेकिन कई जगह वह टशन ज्यादा हो जाता है। वह ‘ओवरएक्टिंग’ के शिकार हो जाते हैं। इस फिल्म में अगर सबसे ज्यादा मजेदार किरदार कोई हैं, तो वे हैं श्रेयस के दोनों चेलों के। उन्होंने बहुत मजेदार अभिनय किया है। जगावर सिंह की पत्नी के रूप सोनाली कुलकर्णी के पास ज्यादा स्कोप था नहीं। समीक्षा भटनागर और दूसरे कलाकार ठीकठाक रहे हैं। फिल्म ‘अर्जुन पंडित’ के गाने ‘कुड़ियां शहर दियां’ को भी इस फिल्म में री-क्रिएट किया गया, जिसे एली अवराम पर फिल्माया गया है।

कुल मिलाकर यह फिल्म कई कमियों के बावजूद ठीकठाक मनोरंजन करती है। अगर आपको कॉमेडी फिल्मों का चस्का है और देओल परिवार के प्रशंसक हैं तो यह फिल्म देख सकते हैं।

livehindustan.com में 8 सितंबर 2017 और हिन्दुस्तान में 9 सितंबर 2017 को प्रकाशित

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