फिल्म ‘मुल्क’ की समीक्षा

पूर्वग्रह को तोड़ने की कोशिश करती फिल्म

राजीव रंजन

कलाकार: ऋषि कपूर, तापसी पन्नू, रजत कपूर, आशुतोष राणा, प्रतीक बब्बर, मनोज पाहवा, नीना गुप्ता, प्राची शाह

निर्देशक: अनुभव सिन्हा

संगीत: प्रसाद शास्ते, अनुराग सैकिया

गीत: शकील आजमी

तीन स्टार (3 स्टार)

भारत में ज्वलंत सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर फिल्में बहुत कम बनती हैं। ऐसी फिल्में उंगलियों पर गिनी जा सकती हैं। ‘मुल्क’ उन्हीं गिनी-चुनी फिल्मों में से एक है। यह एक ऐसे संवेदनशील मुद्दे के बारे में बात करती है, जो पिछले कुछ सालों से पूरी दुनिया में चर्चा के केंद्र में है। वह मुद्दा है इस्लाम को आतंकवाद के साथ जोड़ कर देखने का चलन। यूं तो फिल्म में कहानी बनारस की पृष्ठभूमि में है, लेकिन उस कहानी में उठाए गए सवाल वैश्विक हैं।


एडवोकेट मुराद अली (ऋषि कपूर) का परिवार नौ दशकों से बनारस का बाशिंदा है। मोहल्ले के सभी लोगों से उनके परिवार का भाईचारा है। उनके 65वें जन्मदिन पर पूरा मुहल्ला उनके यहां जुटता है और सबका खाना-पीना होता है। सब कुछ सौहाद्र्रपूर्ण चल रहा है। तभी मुराद अली के जन्मदिन के अगले ही दिन बाद इलाहाबाद में एक बम विस्फोट होता है, जिसमें 16 लोग मारे जाते हैं। इस धमाके को अंजाम देने वाला शाहिद (प्रतीक बब्बर) है, जो मुराद अली के भाई बिलाल (मनोज पाहवा) का बेटा है। शाहिद एंटी-टेररिस्ट स्क्वैड के अधिकारी दानिश जावेद (रजत कपूर) द्वारा एनकाउंटर में मारा जाता है। इस घटना के बाद मुराद अली के पूरे परिवार पर आफतों का पहाड़ टूट पड़ता है। ज्यादातर लोग उन्हें शक की नजर से देखने लगते हैं। उनके भतीजे के गुनाह का बोझ पूरे परिवार के सिर पर डाल दिया जाता है। सरकारी वकील संतोष आनंद (आशुतोष राणा) उनके परिवार को आतंकवाद का पोषक परिवार सिद्ध करने की कोशिश करता है। इस परिवार के बचाव में आगे आती है आरती (तापसी पन्नू), जो मुराद अली के बेटे आफताब (इंद्रनील सेनगुप्ता) की बीवी है। वह उनका मुकदमा लड़ती है।


यह फिल्म कई तीखे सवाल उठाती है और उनका जवाब ढूंढने की भी कोशिश करती है। फिल्म यह बताने की कोशिश करती है कि मुसलमानों के बारे में पिछले कुछ वर्षों में जो धारणा बनी है, वह तथ्यों पर नहीं, पूर्वग्रहों पर आधारित है। हालांकि कई बार यह भी महसूस होता है कि क्या भारत वाकई मुसलमानों के लिए असुरक्षित हो गया है? अब फिल्म को देखते हुए ऐसा एहसास क्यों पैदा होता है? निर्देशक ऐसा चाहते थे या यह गैर-इरादतन है? बहरहाल कारण जो भी हो, यह फिल्म के उद्देश्य को नुकसान पहुंचाता है, उसके प्रभाव को थोड़ा मंद करता है। खैर, बतौर निर्देशक अनुभव सिन्हा के अब तक के करियर पर नजर डालें, तो इसतरह की फिल्में नहीं बनाते। लेकिन इस बार उन्होंने एक बेहद अलग व संवेदनशील विषय चुना है और उसे प्रभावी ढंग से पेश करने में सफल भी रहे हैं।


फिल्म की पटकथा कसी हुई है और संवाद जानदार हैं। क्लाईमैक्स में कोर्टरूम सीन मन-मस्तिष्क को झकझोरता है, हालांकि उसमें कई जगह भावनाओं का अतिरेक और नाटकीयता भी है। कई चीजें सहज रूप से नहीं घटतीं, कृत्रिम लगती हैं। हालांकि फिल्मों में घटनाएं निर्देशक और लेखक की योजना के अनुसार ही आकार लेती हैं, लेकिन उनमें दर्शकों को आश्वस्त कर पाने का माद्दा होना चाहिए, बनावटीपन की बू नहीं आनी चाहिए। दुर्भाग्य से फिल्म का क्लाईमैक्स इस कसौटी पर पूरी तरह खरा नहीं उतरता। फिल्म के अंत जज साहब (कुमुद मिश्रा) जज के साथ-साथ उपदेशक भी हो जाते हैं। बावजूद कुछ सिनेमाई खामियों के, यह फिल्म मुसलमानों के प्रति बनी पूर्वग्रही धारणाओं पर करारा चोट करती है। फिल्म में बनारस के माहौल को रचने में निर्देशक और आर्ट डायरेक्टर काफी हद तक सफल रहे हैं।


अभिनय इस फिल्म का बेहद सशक्त पहलू है। मुख्य भूमिका में ऋषि कपूर का अभिनय बहुत बढ़िया है, हालांकि उनके लहजे में थोड़ा बनारसीपना होता तो बात और बन जाती। तापसी पन्नू का अभिनय भी बेहतरीन है। वह हर फिल्म में खुद को एक कदम आगे ले जाते हुए दिख रही हैं। मनोज पाहवा दिल जीत लेते हैं। वह एक बेहतरीन अभिनेता हैं, जब भी मौका मिलता है, चौका मार देते हैं। कुमुद मिश्रा को कैसा भी किरदार दीजिए, वह उसमें फिट हो जाते हैं। रजत कपूर एक शानदार अभिनेता हैं और कभी भी निराश नहीं करते। आशुतोष राणा भी अपने किरदार में खूब जमे हैं। मुराद अली की पत्नी तबस्सुम के रूप में नीना गुप्ता और बिलाल की पत्नी छोटी तबस्सुम के रूप में प्राची शाह का काम भी अच्छा है। प्रतीक बब्बर का अभिनय भी ठीक है, हालांकि उनकी भूमिका छोटी है। बाकी कलाकारों ने भी अपने हिस्से का काम ठीक किया है।

मुस्लिम समाज के बारे में पूरी दुनिया और भारत में व्याप्त पूर्व धारणाओं को यह फिल्म कितना बदल पाएगी, यह एक अलग बात है, लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि फिल्म उन धारणाओं को चुनौती देने की कोशिश तो करती ही है।
(3 अगस्त को livehindustan.com में और 4 अगस्त को "हिन्दुस्तान" में सम्पादित अंश प्रकाशित)

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