फिल्म ‘हैप्पी फिर भाग जाएगी’ की समीक्षा

पहले जितना हैप्पी नहीं करती ये ‘हैप्पी’

राजीव रंजन

कलाकार: जिमी शेरगिल, सोनाक्षी सिन्हा, पीयूष मिश्रा, जस्सी गिल, डायना पेंटी, अली फजल, अपारशक्ति खुराना, डेंजिल स्मिथ, जेसन थाम

निर्देशक: मुदस्सर अजीज

निर्माता: आनंद एल. राय और कृषिका लुल्ला

स्टार: ढाई स्टार (2.5 स्टार)

अगस्त 2016 में यानी दो साल पहले हैप्पी (डायना पेंटी) पहली बार भागी थी और पाकिस्तान पहुंच गई थी। फिर वहां अपने प्रेमी गुड्डू (अली फजल) से शादी करके भारत आ गई और ‘लाइफ में सेटल’ हो गई। वैसे तो उसको फिर से भागने की जरूरत नहीं थी, लेकिन फिल्म के निर्माता उसे फिर से भगाना चाहते थे, क्योंकि पिछली बार उसका भागना निर्माताओं के लिए बुरा सौदा नहीं रहा था। लिहाजा दो साल बाद उन्होंने उसे फिर से भगा दिया, लेकिन थोड़ा-सा बदलाव करके और इस बार पाकिस्तान की जगह चीन। हो सकता है, जब अगली बार वह भागे तो एशिया की सरहद पार करके यूरोप या अमेरिका पहुंच जाए। बहरहाल...


हॉर्टीकल्चर की प्रोफेसर हरप्रीत कौर उर्फ हैप्पी (सोनाक्षी सिन्हा) अपने भगोड़े मंगेतर अमन वाधवा (अपारशक्ति खुराना) को ढूंढ़ने के लिए अमृतसर से चीन पहुंच जाती है। इधर पहली वाली हरप्रीत यानी हैप्पी भी अपने पति गुड्डू के साथ चीन पहुंचती है, जहां गुड्डू का म्यूजिक शो होना है। जैसे ही प्रोफेसर हैप्पी चीन पहुंचती है, चांग (जेसन थाम) और उसके साथी गुंडे उसे पहली वाली हैप्पी समझ कर उसका अपहरण कर लेते हैं। दरअसल उनका एक काम पाकिस्तान में अटका हुआ है, जिसे पहली वाली हैप्पी ही करा सकती है। खैर, प्रोफेसर हैप्पी किसी तरह उनके चंगुल से भाग निकलती है। इसी क्रम में उसकी मुलाकात भारतीय दूतावास में काम करने वाले खुशवंत गिल उर्फ खुशी (जस्सी गिल) से होती है। हैप्पी उससे मदद मांगती है। जस्सी उसे लेकर अदनान चाऊ (डेंजिल स्मिथ) के पास जाता है, जो मदद करने का वादा करता है। इधर पहली वाली हैप्पी का पता लगाने के लिए चांग अमृतसर से दमन सिंह बग्गा (जिमी शेरगिल) और लाहौर से ए.एस.पी. उस्मान अफ्रीदी (पीयूष मिश्रा) को उठवा लेता है। जुल्म ये हुआ कि अपना भाई यानी बग्गा शादी के लिए घोड़ी पर सवार हो चुका था और अफ्रीदी साहब के रिटायरमेंट का फंक्शन चल रहा था। ऐसा लगता है, आनंद एल.राय अपनी फिल्मों में जिमी शेरगिल की शादी नहीं होने देंगे। विश्वास नहीं है तो ‘तनु वेड्स मनु’ की दोनों किस्तें देख लीजिए या ‘हैप्पी...’ की। खैर, प्रियदर्शन (‘हेराफेरी’ वाले) की कॉमेडी फिल्मों की तरह इस फिल्म के भी सारे पात्र किसी न किसी वजह से एक ही जगह चीन पहुंच जाते हैं। वहां भागने-पकड़ने का सिलसिला शुरू होता है और फिर पिछली बार की ही तरह ‘हैप्पी एंडिंग’ होती है। साथ ही, इस बात का संकेत भी मिलता है कि सब कुछ ठीकठाक रहा तो हैप्पी फिर भाग सकती है।


‘हैप्पी फिर भाग जाएगी’ सीक्वल है, तो जाहिर है कि इसकी तुलना अपने पहले भाग ‘हैप्पी भाग जाएगी’ से होगी। दोनों फिल्मों में जो सबसे बड़ा फर्क है, वह है कहानी का। पहले भाग में कहानी सीधी-साधी और समझ में आने वाली थी, उसमें बहुत उलझाव नहीं था। इस बार, एक तो कहानी थोड़ी उलझी हुई है और पात्रों की संख्या भी बढ़ गई है। इस वजह से फिल्म की अवधि भी मिनट बढ़ गई है, जो अखरती है। यही वजह है कि इस बार ‘हैप्पी’ वैसा प्रभाव नहीं छोड़ पाती। एक और बात, जिन्होंने पहला भाग नहीं देखा है, उन्हें कई बातें समझ में नहीं भी आ सकती हैं, क्योंकि दोनों फिल्मों के तार एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। सही मायने में ‘हैप्पी फिर भाग जाएगी’ एक सीक्वल है, फ्रेंचाइजी नहीं।

अगर एक स्वतंत्र फिल्म के रूप में इस पर नजर डालें तो यह फिल्म निराश तो नहीं करती, लेकिन ‘हैप्पी’ भी नहीं करती। कहानी के बारे में तो हम बात कर ही चुके हैं, पटकथा भी कसी हुई नहीं है। लेखक व निर्देशक मुदस्सर अजीज कई बार सीक्वल को सही पटरी पर रखने के बोझ तले दबे नजर आते हैं और इस कोशिश में पटरी से उतर जाते हैं। इस फिल्म में वह सहजता को बरकरार नहीं रख पाए हैं। दरअसल जब किसी भी चीज को दुबारा सिर्फ इसलिए पेश करने की कोशिश की जाती है, क्योंकि पहली बार उसको अच्छी प्रतिक्रिया मिली थी, तो चीजें स्वाभाविक नहीं रह पातीं। ये दिक्कत इस फिल्म के साथ भी नजर आती है। हां, इस फिल्म के संवाद जरूर मजेदार हैं और रह-रह कर मनोरंजन की खुराक देते हैं। ‘वनलाइनर्स’ गुदगुदाने वाले हैं। खासकर बग्गा और अफ्रीदी के दृश्य मजेदार हैं। पाकिस्तान पर भी हल्के-फुल्के अंदाज में जो कटाक्ष किए गए हैं, मजेदार हैं।


जिमी शेरगिल शानदार अभिनेता हैं और उनकी कॉमेडी टाइमिंग अच्छी है। अपने किरदार को उन्होंने अपने अभिनय से मजेदार बना दिया है। पीयूष मिश्रा का तो कहना ही क्या! उनकी अपनी एक अलग शैली है और अफ्रीदी के किरदार में वह शैली काफी जंचती है। पहले भाग में डायना पेंटी ने हैप्पी के किरदार में छाप छोड़ी थी। इस किस्त में सोनाक्षी सिन्हा वो काम नहीं कर पातीं। हालांकि उनका अभिनय ठीक है, लेकिन उनमें उस मासूमियत का अभाव है, जो हैप्पी के किरदार की आत्मा है। डायना और अली फजल इस फिल्म में बस कड़ियां जोड़ने के लिए हैं, लेकिन दोनों ठीक लगे हैं। जस्सी गिल भी अपने किरदार में ठीक लगे हैं। अपारशक्ति खुराना की भूमिका छोटी है, लेकिन रोचक है। डेंजिल स्मिथ और जेसन थाम का काम भी ठीक है। डेंजिल स्मिथ की आवाज बहुत अच्छी है। फिल्म का गीत-संगीत औसत दर्जे का है। सिनमेटोग्राफी अच्छी है। चीन के कुछ दृश्य सुंदर हैं। संपादन बेहतर हो सकता था और फिल्म की लंबाई कुछ कम की जा सकती थी, जिससे यह फिल्म थोड़ी बेहतर हो जाती। वैसे यह फिल्म मुकम्मल तौर पर तो बहुत असर नहीं डालती, लेकिन टुकड़ों में मनोरंजन जरूर करती है और एक बार देखी जा सकती है।

(25 अगस्त को हिन्दुस्तान में सम्पादित अंश प्रकाशित)

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