पत्रकार और फिल्मकार विनोद कापरी से फिल्म "पिहू" पर बातचीत

यह सिर्फ एक कहानी नहींबड़ा सामाजिक मुद्दा भी है: विनोद कापरी
सिर्फ दो साल की एक बच्ची के साथ बनाई गई इकलौते किरदार वाली सोशियो-थ्रिलर’ फिल्म पीहू’ का ट्रेलर लोगों को काफी लुभा रहा है। इसकी प्रशंसा अमिताभ बच्चन और मनोज बाजपेयी जैसे बड़े अभिनेता भी कर चुके हैं। इस फिल्म का निर्देशन पत्रकार विनोद कापरी ने किया है। वह इससे पहले फिल्म मिस टनकपुर हाजिर हो’ का निर्देशन भी कर चुके हैं। पीहू’ को लेकर राजीव रंजन की विनोद कापरी से बातचीत:
  • पीहू’ बनाने का विचार मन में कैसे आया?
मेरे घर में एक डॉग है पिछले छह साल से। कई बार हम उसे काफी देर के लिए अकेले छोड़ कर चले जाते थे। तब मुझे ख्याल आता था कि वह बेजुबान जीव घर में अकेले कैसे रहता होगा। इसी तरह कई युवा दंपती हैंजो नौकरी की वजह से अपने छोटे बच्चों को आयानौकरानी के सहारे छोड़ कर चले जाते हैं। कई बार वो आया भी किसी काम के लिए बच्चों को अकेले छोड़ कर चली जाती हैं। मैं खुद कई ऐसे परिवारों को जानता हूंजहां पति-पत्नी दोनों नौकरी करते हैं और अपने छोटे बच्चों को छोड़ कर चले जाते हैं। तब मेरे दिमाग में एक आइडिया आया कि वे छोटे बच्चे अकेले कैसे रहते होंगेक्या करते होंगेतब यह बात सिर्फ विचार के स्तर पर थी। फिर मुझे लगा कि इस पर फिल्म बन सकती है। उसके बाद मैंने रिसर्च शुरू किया। कई कहानियां मिलीं। दिल्ली के एक पांच साल के लड़के की कहानी भी मिली... इस तरह पीहू का जन्म हुआ।

  • एक दो साल की बच्ची के साथ फिल्म शूट करने का अनुभव कैसा रहा? आपने पूरी फिल्म स्क्रिप्ट के अनुसार ही शूट की या फिर मौके के मुताबिक फेरबदल भी किए?
मुझे पता था कि दो साल की बच्ची के साथ फिल्म बनाना बहुत मुश्किल है। इसके लिए भी मैंने काफी रिसर्च किया। बच्ची के साथ तीन-चार महीने बिताए। बच्ची जो स्वाभाविक रूप से करती थीउसी रूप में फिल्म शूूट की। कहानी की आत्मा में छेड़छाड़ किए बगैर स्क्रिप्ट में बदलाव भी किए। मेरी पूरी यूनिट को यह पता था कि बच्ची से रीटेक नहीं करवाए जा सकतेइसलिए उसी हिसाब से शूट की तैयारी की गई। इस काम में बच्ची के माता-पिता ने भी काफी सहयोग किया।
  • सिर्फ एक कलाकार, वह भी दो साल की बच्ची को लेकर फिल्म बनाने में आपको जोखिम महसूस नहीं हुआ?

मेरे कई दोस्तों ने भी ऐसा कहा था कि एक दो साल की बच्ची को लेकर एकमात्र पात्र वाली फिल्म बनाना जोखिम भरा हो सकता हैलेकिन मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। मैंने व्यावसायिक पक्ष के बारे में ज्यादा नहीं सोचा। बसमुझे लगा कि ऐसी कहानियां कही जानी चाहिए। फिल्मों के जरिये ऐसे मुद्दे समाज की दृष्टि में आने चाहिए। और एक अहम बातआज का दर्शक भी सजग हुआ हैपरिपक्व हुआ है। वह अच्छे कंटेंट को प्रोत्साहित करने लगा है। अब अच्छे कंटेंट का बाजार बढ़ रहा है। बड़े निर्माता भी ऐसी फिल्मों को सपोर्ट करने के लिए आगे आ रहे हैं। मेरी फिल्म को ही रोनी स्क्रूवाला और सिद्धार्थ रॉय कपूर जैसे बड़े नामों ने सपोर्ट किया है। शायद यह विश्व की पहली फिल्म हैजिसे सिर्फ दो साल की एक बच्ची के साथ शूट किया गया है।

  • हर फिल्मकार अपनी फिल्म के जरिये कुछ कहना चाहता है, आप इस फिल्म के जरिये दर्शकों से क्या कहना चाहते हैं?
मैं इस फिल्म के जरिये लोगों का ध्यान समाज में मौजूद एक अहम मुद्दे की ओर खींचना चाहता हूं। वह है नौकरीशुदा युवा दंपतियों के उन छोटे बच्चों की यंत्रणाजो घर में अकेले रहने को मजबूर होते हैं। अंग्रेजी में एक कहावत है- एवरी चाइल्ड डिजव्र्स अ पैरेंटबट नॉट एवरी पैरेंट डिजव्र्स अ चाइल्ड’ यानी हर बच्चा माता-पिता का हकदार होता हैलेकिन हर माता-पिता बच्चे पाने के अधिकारी नहीं होते। एक वाक्य में मेरी फिल्म का यही संदेश है।
  • आप एक पत्रकार भी हैं और फिल्मकार भी, क्या आपकी पत्रकारीय दृष्टि आपकी फिल्मों को प्रभावित करती है?
पत्रकार होने की वजह से ही मुझे इस तरह की फिल्में बनाने की शक्ति मिलती हैऊर्जा मिलती हैप्रेरणा मिलती है। पत्रकार को देश-दुनिया की पूरी खबर रहती है। वह खबरों पर लगातार नजर रखता है। उसे समाज की कई कहानियां प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से पता होती हैं। सच बताऊंतो फिल्में बनाने में मुझे पत्रकार होने का बहुत फायदा मिला।

(11 नवंबर को हिन्दुस्तान’ के रविवारीय परिशिष्ट फुरसत’ में प्रकाशित)

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