फिल्म ‘भैयाजी सुपरहिट’ की समीक्षा

काश! नाम से ही सब काम हो जाता!

राजीव रंजन

कलाकार: सनी देओल, प्रीटि जिंटा, अरशद वारसी, श्रेयस तलपड़े, अमीषा पटेल, जयदीप अहलावत, संजय मिश्रा, पंकज त्रिपाठी, बृजेंद्र काला, हेमंत पांडेय

निर्देशक: नीरज पाठक

डेढ़ स्टार (1.5 स्टार)

कुछ फिल्मों को देख कर लगता कि स्टॉक क्लीयरेंस चल रहा है। माल बन गया है तो सेल पर लगा दो। कुछ ग्राहक तो आ ही जाएंगे। अब कुछ नहीं से तो थोड़ा कुछ बेहतर ही है। इस हफ्ते रिलीज हुई सनी देओल की ‘भैयाजी सुपरहिट’ भी स्टॉक क्लीयरेंस टाइप फिल्म है। यह फिल्म काफी हां-ना के बाद कई वर्षों में बन कर तैयार हुई है। एक कहावत है- ‘देर आयद दुरुस्त आयद’, लेकिन इस फिल्म पर यह बिल्कुल लागू नहीं होती।

यह कहानी है बनारस के देवी दयाल दुबे ऊर्फ भैयाजी (सनी देओल) की, जो शहर के डॉन हैं। भैयाजी कुछ दिनों से इमोशनली गड़बड़ा गए हैं, क्योंकि उनकी पत्नी सपना दुबे (प्रीटि जिंटा) उन्हें छोड़ कर चली गई हैं। भैयाजी के चाचा (बृजेंद्र काला) और दूसरे चेले उन्हें लेकर मनोचिकित्सक डॉ. ज्ञानप्रकाश बुद्धिसागर (संजय मिश्रा) के पास जाते हैं। डॉक्टर साहब उन्हें कुछ सलाह देते हैं, लेकिन वो काम नहीं आती। सपना एक दिन भैयाजी को तलाक की नोटिस भेज देती है। भैयाजी और निराश हो जाते हैं। गोल्डी कपूर (अरशद वारसी) एक फिल्म निर्देशक है, जो बहुत बड़ी-बड़ी बातें करके निर्माताओं से खूब पैसे ठगता है, लेकिन फिल्म पूरी नहीं करता। भैयाजी फिरौती के लिए उसे मुंबई से उठवा कर बनारस लाते हैं। गोल्डी एक चाल चलता है। वह भैयाजी को एक ऐसी इमोशनल फिल्म बनाने की सलाह देता है, जिससे प्रभावित होकर उनकी पत्नी सपना दुबे वापस आ जाएं। भैयाजी भी गोल्डी की बातों में आ जाते हैं।


इसके बाद फिल्म में एंट्री होती है हीरोइन मल्लिका (अमीषा पटेल) और लेखक तरुण पोर्नो घोष (श्रेयस तलपड़े) की। भैयाजी की दौलत देख कर सपना के मन में लालच आ जाता है। वह सपना को उनकी जिंदगी से बाहर कर खुद आने की कोशिशों में लग जाती है, लेकिन भैयाजी अपनी पत्नी को बहुत प्यार करते हैं। वह सपना को मना कर घर वापस लाना चाहते हैं। वह जब भी ऐसी कोशिश करते हैं, गोल्डी उन्हें चालाकी से रोक देता है, ताकि उसकी फिल्म खटाई में न पड़े और वह पैसे ऐंठता रहे। भैयाजी का एक दुश्मन डॉन भी है। उसका नाम है हेलिकॉप्टर मिश्रा (जयदीप अहलावत)। वह भैयाजी को अपने रास्ते से हटा कर बनारस का डॉन बनना चाहता है। एक दिन वह भैयाजी पर जानलेवा हमला कराता है और उसी दौरान एक हैरान करने वाली बात होती है। भैयाजी से उनका एक हमशक्ल फनी सिंह टकरा जाता है। गोल्डी उसे फिल्म का हीरो बना देता है। इधर फिल्म शुरू होती है, उधर हेलिकॉप्टर मिश्रा अपनी साजिशों में लगा रहता है और इसी दोनों के बीच भैयाजी की प्रेम कहानी हिचकोले खाती रहती है...


यह कहानी और इसका प्रस्तुतीकरण इतना घिसा-पिटा है कि कभी भी कोई रोमांच या उत्सुकता पैदा नहीं होती। पटकथा एकदम बिखरी हुई है। लगता है, बस औपचारिकता पूरा करने के लिए किसी तरह पटकथा नाम की एक चीज तैयार कर दी गई है। एकाध दृश्यों को छोड़ दें तो संवादों में कोई दम नहीं है। गीत-संगीत भी बस खानापूर्ति के लिए ही है। न तो गीतों के बोल प्रभावित करते हैं और न संगीत प्रभावित करता है। बस एक गाना ‘दौ नैना’ थोड़ा ठीक लगता है। नीरज पाठक का निर्देशक एकदम प्रभावहीन है। उन्होंने फिल्म में एक्शन, कॉमेडी, इमोशन और ग्लैमर सब कुछ डाला है, लेकिन इनमें से कोई भी चीज असर नहीं करती। हां, एकाध दृश्यों में एक्शन थोड़ा-सा ठीक लगता है। सिनमेटोग्राफी ठीक है और बनारस के घाटों के दृश्य ठीक हैं। फिल्म का संपादन भी ढीला है।


सनी देओल इस फिल्म में डबल रोल में हैं। भैयाजी के रूप में तो वे कुछ ठीक हैं, लेकिन फनी सिंह के रूप में एकदम फनी लगते हैं। उन पर कॉमेडी जमती नहीं है, लेकिन एक्शन दृश्यों में वे ठीक लगते हैं। प्रीटि जिंटा का अभिनय ठीक है, लेकिन उनमें कोई ताजगी नजर नहीं आती। अरशद वारसी एक-दो सीन में थोड़ा-सा मनोरंजन करते हैं, लेकिन कमजोर पटकथा की वजह से ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ पाते। यही हाल श्रेयस तलपड़े का भी है। अमीषा पटेल का ग्लैमर प्रभावित नहीं करता। हेलिकॉप्टर मिश्रा के रूप में जयदीप अहलावत का काम ठीक है। पंकज त्रिपाठी और संजय मिश्रा जैसे बढ़िया अभिनेताओं की प्रतिभा का निर्देशक फायदा नहीं उठा पाए। पंकज का रोल तो बहुत ही छोटा है। हेमंत पांडेय ठीक हैं। फिल्म की स्टारकास्ट में कोई कमी नहीं है, लेकिन पटकथा और निर्देशन में दम न हो, तो कोई क्या कर लेगा!


फिल्म में भैयाजी अक्सर लोगों से दो सवाल पूछते हैं। हमारा मन भी निर्माता-निर्देशक से दो सवाल पूछने को करता है। पहला, ये फिल्म क्यों बनाई और दूसरा, इतनी खराब फिल्म कैसे बनाई जाती है? ऐसी फिल्मों को पूरा देख लेना, बहुत धैर्य का काम है। अगर नाम में सुपरहिट लगा देने भर से सब काम हो जाता, तो फिर बात ही क्या थी!



(23 नवंबर को livehindustan.com में 24 नवंबर को हिन्दुस्तान में सम्पादित अंश प्रकाशित)

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