फिल्म ‘अलीटा: बेटल एंजेल’ की समीक्षा

हॉलीवुडिया तकनीक के साथ बॉलीवुडिया कहानी
राजीव रंजन

कलाकार: रोसा सालाजार, क्रिस्टोफ वॉल्ट्ज, जेनिफर कोनली, महेरशला अली, कीन जॉनसन, जैकी अर्ल हेली

निर्देशक: रॉबर्ट रॉड्रिगेज

तीन स्टार (3 स्टार)

कई बार अपने किसी पसंदीदा प्रोजेक्ट को पूरा करने में विभिन्न कारणों से काफी लंबा समय लग जाता है। बॉलीवुड में ‘मुगल-ए-आजम’ और ‘पाकीजा’ आदि फिल्में इसका उदाहरण हैं। विश्व सिनेमा में भी इसके कई उदाहरण हैं। ‘अलीटा बेटल एंजेल’ भी एक ऐसी ही फिल्म है। ‘टाइटेनिक’ और ‘अवतार’ जैसी कालजयी फिल्में बनाने वाले जेम्स केमरॉन को अपने पसंदीदा प्रोजेक्ट ‘अलीटा’ को पर्दे पर लाने में करीब दो दशक लग गए। इस लंबे समय के दौरान एक महत्वपूर्ण बात यह भी हुई कि निर्देशक की कुर्सी उनकी जगह रॉबर्ट रोड्रिगेज ने संभाल ली। हालांकि पटकथा लिखने में खुद केमरॉन भी शामिल हैं। यह फिल्म युकितो किशिरो द्वारा रचे गए मान्गा सीरिज के कॉमिक्स ‘बेटल एंजेल अलीटा’ पर आधारित है।
फिल्म की कहानी शुरू होती है आज से करीब 550 साल बाद के समय से। आयरन सिटी में रहने वाले डॉ. डायसन ईडो (क्रिस्टोफ वॉल्ट्ज) को कबाड़ में एक मशीन मिलती है, जिसे वह अपनी मृत बेटी का शरीर देकर पुनर्जीवित करते हैं और उसे नाम देते हैं अलीटा (रोसा सालाजार), जो उनकी बेटी का ही नाम था। वह एक साइबोर्ग यानी मशीनी मानव है। उसे अपना अतीत याद नहीं है। वह डॉ. ईडो की देखरेख में रहती है। दोनों में पिता-पुत्री जैसा लगाव पैदा हो जाता है। आयरन सिटी में अलीटा को एक लड़का मिलता है ह्यूगो (कीन जॉनसन) और दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगते हैं। ह्यूगो का सपना है जॉलेम जाने का, जो एक स्काई सिटी है। 300 साल पहले हुए एक महायुद्ध में दुनिया की सारी स्काई सिटी खत्म हो गई थीं, एक जॉलेम को छोड़ कर। ह्यूगो वहां जाने के लालच में मोटरबॉल नाम के खतरनाक गेम के मालिक विक्टर (महेरशला अली) के लिए गलत काम करता है। डॉ. ईडो की पत्नी  शिरीन (जेनिफर कोनली)- जो बेटी की मौत के बाद उन्हें छोड़ कर चली गई थी- भी जॉलेम जाना चाहती है और इसके लिए किसी हद तक जाने को तैयार है। वह भी विक्टर के लिए काम करती है। वह ईडो को भी अपने साथ काम करने को कहती है, पर वह नहीं मानते, क्योंकि विक्टर अच्छा आदमी नहीं है। वह जॉलेम के मालिक नोवा का आदमी है।
कई ऐसी घटनाएं होती हैं, जिनसे धीरे-धीरे सुपरवुमन अलीटा को अपना अतीत याद आने लगता है। अलीटा में अ्दभुत शक्तियां हैं और उसका दिल बहुत मजबूत है। नोवा चाहता है कि अलीटा का दिल उसे मिल जाए, जिससे वह और ताकतवर बन जाए। वह विक्टर के जरिये यह काम कराना चाहता है। अलीटा को मारने का काम विक्टर अपने साइबोर्ग ग्रविस्का (जैकी अर्ल हेली) को सौंपता, लेकिन उसे मुंह की खानी पड़ती है...
फिल्म का ताना-बाना वैसा ही है, जैसा हॉलीवुड की सुपरहीरो वाली फिल्मों में होता है। लेकिन एक बड़ा फर्क है कि इसमें भावनाओं को बहुत ज्यादा महत्व दिया गया है, इसलिए फिल्म पूरी तरह यांत्रिक नहीं लगती। अगर कहानी की बात करें, तो ऐसी कहानियां बॉलीवुड की ढेरों फिल्मों में मिल जाएंगी, जिसमें हीरो-हीरोइन एक-दूसरे के लिए सब कुछ छोड़ने को तैयार रहते हैं। फर्क बस इतना है कि हिन्दी फिल्मों की तरह इस फिल्म में हीरो-हीरोइन रोमांटिक गाने नहीं गाते। अपनी कहानी के चलते ये फिल्म भारतीयों को अपने दिल के करीब लगेगी।
फिल्म के ग्राफिक्स और 3-डी इफेक्ट्स कमाल के हैं और एक्शन लाजवाब। सही में देखा जाए, तो एक बेहद साधारण कहानी को तकनीक और एक्शन ने देखने लायक बना दिया है। रॉबर्ट रोड्रिगेज के निर्देशन ने कहानी और पटकथा की कमियों को छिपा दिया है। उन्होंने हर किरदार को ठीक से गढ़ा है और फिल्म की जरूरत के हिसाब उन्हें वैसा स्पेस भी दिया है। सिनमेटोग्राफी व बैकग्राउंड संगीत भी अच्छा है।
रोसा सालाजार का अभिनय शानदार है। वह रोमांटिक व इमोशनल दृश्यों में जितनी अच्छी लगती हैं, उतना ही एक्शन सीन में भी। कमाल के एक्शन सीन किए हैं रोसा ने। आप मुरीद हो जाएंगे। क्रिस्टोफ वॉल्ट्ज का अभिनय सधा हुआ है। अपने किरदार के मानवीय पक्ष को उन्होंने बेहतरीन तरीके से पेश किया है। महेरशला अली, जेनिफर कोनली के सीन ज्यादा नहीं हैं, पर दोनों का काम अच्छा है। कीन जॉनसन का अभिनय भी अच्छा है और दूसरे कलाकार भी अपनी भूमिकाओं में ठीक हैं।
इस फिल्म को देखने का असली मजा 3-डी में ही है। वैसे 2-डी में भी यह निराश नहीं करेगी। अगर आपको सुपरहीरो वाली फिल्में पसंद हैं, तो अलीटा अच्छी लगेगी।

(‘हिन्दुस्तान’ में 9 फरवरी 2019 को प्रकाशित)



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वीणा-वादिनी वर दे

सेठ गोविंद दास: हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने के बड़े पैरोकार

राही मासूम रजा की कविता 'वसीयत'