फिल्म ‘गली बॉय’ की समीक्षा

सच्चाई को सपनों से मिलाने की कहानी

राजीव रंजन

निर्देशक: जोया अख्तर

कलाकार: रणवीर सिंह, आलिया भट्ट, कल्कि, सिद्धांत चतुर्वेदी, विजय राज, विजय वर्मा,

शीबा चड्ढा, अमृता सुभाष

तीन स्टार (3 स्टार)

दुनिया में ज्यादातर लोगों को पता नहीं है कि उनमें क्या खास है? और जिन्हें यह पता चल जाता है, फिर वे ज्यादातर लोगों जैसे नहीं रह जाते। ऐसी कहानियां हमने बहुत सुनी हैं कि कैसे कोई अपनी प्रतिभा और जुनून की बदौलत अपना एक अलग मुकाम बना लेता है। जोया अख्तर द्वारा निर्देशित गली बॉयएक ऐसी ही कहानी पर बनी फिल्म है। इस फिल्म की कहानी मुंबई के रैपर डिवाइन और नेजी यानी नावेद शेख की जिंदगी से प्रेरित है।
एशिया की सबसे बड़ी झोपड़पट्टी धारावी में रहने वाले मुराद (रणवीर सिंह) को अपनी जिंदगी व बस्ती अंधे कुएं जैसी लगती है, जहां सिर्फ अंधेरा है। जहां सपने बंद गलियों में घुट कर रह जाते हैं। उसकी जिंदगी में जो थोड़ा-सा उजाला है, वह उसकी प्रेमिका सफीना (आलिया भट्ट) है। मुराद के पिता, मामा, दोस्त सब यही मानते हैं कि सपने औकात के हिसाब से देखने चाहिए। ऐसे में मुराद अपनी बेचैनी को कागज पर उतारता है, रैप के रूप में। एक दिन वह शेर (सिद्धांत चतुर्वेदी) से मिलता है और उसके सपनों में ऊर्जा भर जाती है। एक तंग गली में रहने वाला मुराद रैपर गली बॉयबन जाता है।
जोया अख्तर और रीमा कागती ने नेजी की जिंदगी पर बनी डॉक्यूमेंट्री को विस्तार देकर अच्छी पटकथा लिखी है और जोया ने बतौर निर्देशक उसे पर्दे पर बहुत प्रामाणिकता के साथ पेश किया है। दरअसल यह सिर्फ धारावी के एक निम्नवर्गीय लड़के के रैप क्षेत्र में बुलंदी छूने की कहानी भर नहीं है, बल्कि उसके बहाने उसके घर, आस-पड़ोस, समाज और पूरे परिवेश का भी चित्रांकन है। यह फिल्म वर्ग-भेद, लिंग-भेद जैसी बातों पर भी बड़े सलीके से टिप्पणी करती है। जोया अख्तर नई पीढ़ी के उन कुछ निर्देशकों में से हैं, जिनके कहानी सुनाने का तरीका अलग है। अपनी अब तक कि फिल्मों से वे यह साबित करती हैं कि वह एक संवेदनशील फिल्मकार हैं। इस फिल्म में भी उनका निर्देशन काबिले-तारीफ है। जोया अपने निर्देशन से इस फिल्म को एक अलग तेवर प्रदान करती हैं।
फिल्म की कहानी एकदम सीधी लाइन पर चलती है, उसमें चौंकाने वाले तथ्य नहीं है। सब कुछ कुछ प्रत्याशित है। फिल्म अगले दृश्य में किस दिशा में जाएगी, यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है। लेकिन यह इस फिल्म की एक बड़ी खासियत है कि प्रिडेक्टल होने के बावजूद यह अपने संदेश, अपने प्रस्तुतिकरण से बांधे रखती है। कहीं भी उबाऊ नहीं होती, इसमें दर्शक की दिलचस्पी लगातार बनी रहती है। किसी व्यक्ति के एक बेहद निम्न पृष्ठभूमि से निकल कर आला मुकाम तक पहुंचने के संंघर्ष पर कई फिल्में बनी हैं और यह तथ्य भी गौरतलब है कि इस थीम पर बनी सारी फिल्में जेहन में नहीं टिकतीं, लेकिन जोया और उनकी टीम ने गली बॉयको एक याद रखने लायक फिल्म बनाने में निस्संदेह कामयाबी पाई है। उन्होंने इसका ताना-बाना अच्छे से बुना है। वे धारावी की जिंदगी को अपने वास्तविक रूप में उभारने में सफल रही हैं। उन्हें सिनमेटोग्राफर का भी बढ़िया साथ मिला है। जय ओजा ने धारावी के एम्बियेंस को बहुत अच्छे-से कैमरे में कैद किया है। फिल्म का पहला हाफ कसा हुआ है और फिल्म के टोन को सेट करने में सफल रहा है। उसके मुकाबले दूसरा हाफ थोड़ा ढीला लगता है। एडिटिंग बेहतर हो सकती थी। फिल्म की जो कहानी है, उसे थोड़ा कम समय में भी कहा जा सकता था, बल्कि ज्यादा बेहतर तरीके से कहा जा सकता था।
कल्कि और रणवीर के कुछ दृश्य गैर-जरूरी लगते हैं। इसमें कुछ चुंबन दृश्य हैं, जिनके बिना आराम से काम चल सकता था। हालांकि चुंबन दृश्यों से मुझे कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन इस फिल्म के संदर्भ में वे कहानी से बहुत जुड़े नहीं लगते। अगर वे तथा कुछ अन्य दृश्य नहीं होते, तो फिल्म की लंबाई आराम से कम हो सकती थी और ज्यादा कसी हुई तथा ज्यादा असरदार हो सकती थी। फिल्म में कई स्टीरियो-टाइप चीजें भी हैं। मसलन, मुराद के दोस्त मोईन का अपने आपराधिक कृत्यों को उचित ठहराना।

फिल्म का गीत-संगीत इस फिल्म की जान है। इसमें रैप की एक अलग छटा देखने को मिलती है, उसमें विद्रोह के, सच्चाई के स्वर हैं। उसमें यथार्थ है, सार्थकता है। यह केवल मनोरंजन प्रदान करने वाला रैप नहीं है, बल्कि झकझोरने वाला है। जो रैप को बहुत पसंद नहीं करते, उन्हें भी इस फिल्म का रैप आकर्षित करेगा।

फिल्म के कलाकारों का अभिनय भी इस फिल्म को खास बनाता है। एक तो हर किरदार को अच्छे से गढ़ा गया है और दूसरे इसकी कास्टिंग भी बहुत अच्छी है। मुख्य भूमिका में रणवीर ने कमाल का काम किया है। वह हर फिल्म के साथ निखर रहे हैं। उन्होंने सिम्बाके बाद एक बिल्कुल तरीके का किरदार निभाया है और बहुत प्रभावी तरीके से निभाया है। उनका अभिनय बिल्कुल अपने किरदार की जरूरत के अनुसार है। उन्होंने अपने किरदार के सारे पहलुओं को बहुत अच्छे से पेश किया है और पूरी फिल्म में मुराद लगे हैं। आलिया का अभिनय भी शानदार है। वह एक पजेसिव प्रेमिका, एक विद्रोही लड़की, करियर को पूरी प्राथमिकता देने वाली लड़की की भूमिका में बिल्कुल फिट बैठती हैं। उनमें गजब का आत्मविश्वास दिखता है। यह सिद्धांत चतुर्वेदी की पहली फिल्म है और अपनी पहली ही फिल्म में वह चौंका देते हैं। रैपर शेरा की भूमिका में वह बहुत सहज और स्वाभाविक लगे हैं। विजय वर्मा भी बढ़िया अभिनेता हैं, उनका अभिनय बेहतरीन है। वह मोइन के किरदार में असर छोड़ते है। उनकी बॉडी लैंग्वेज, एक्सप्रेशन, संवाद अदायगी, सब प्रभावशाली है। विजय राज अच्छे कलाकार हैं, यह बात उन्होंने फिर साबित की है। मुराद की मां रजिया और अपने पति द्वारा उपेक्षित स्त्री के किरदार में अमृता सुभाष ने सधा अभिनय किया है। मुराद के मामा बने विजय मौर्य का अभिनय भी बेहतरीन है। इस फिल्म की पूरी कास्ट बहुत अच्छी है।
हालांकि इस फिल्म में कुछ कमियां भी हैं, लेकिन इसमें खासियतें ज्यादा हैं, जो कमियों को खलने नहीं देतीं। कुल मिलाकर यह एक बेहतरीन फिल्म है। इसका संदेश बहुत सकारात्मक है और यह देखने लायक है।
(16 फरवरी, 2008 को हिन्दुस्तानमें संक्षिप्त अंश प्रकाशित)

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