फिल्म द बॉडी की समीक्षा
आत्मा नहीं है इस बॉडी में
राजीव रंजन
निर्देशक: जीतू जोसेफ
कलाकार: ऋषि कपूर, इमरान हाशमी, शोभिता धुलिपाला, वेदिका कुमार, रुखसार रहमान
2 स्टार
जब किसी फिल्म को
‘सस्पेंस थ्रिलर’ कह कर प्रचारित किया जाता है, तो दर्शकों के मन में एक रोमांच का भाव पैदा
होता है। उन्हें लगता है, फिल्म देख कर बदन
में कुछ सिहरन होगी, कभी कोई दृश्य
चौंका देगा और क्लाइमैक्स में कुछ ऐसा होगा कि हैरान रह जाएंगे। पिछले दिनों आई
अमिताभ बच्चन और तापसी पन्नू की ‘बदला’ ऐसी ही फिल्म थी। इस हफ्ते रिलीज हुई ऋषि कपूर
और इमरान हाशमी की ‘द बॉडी’ को जीतू जोसेफ ने सस्पेंस थ्रिलर के रूप में
बनाने की कोशिश की है। लेकिन 100 मिनट की फिल्म
में बस एक ही बात काबिले-तारीफ है, इसकी कम लंबाई।
एक सफल बिजनसवूमन
है माया (शोभिता धुलिपाला), उसे एक प्रोफेसर
अजय पुरी (इमरान हाशमी) से प्यार हो जाता है। दोनों शादी कर लेते हैं। माया अपने
पति अजय को टूट कर प्यार करती है, लेकिन वह माया की
कंपनी का काम संभालने में ज्यादा व्यस्त रहता है। बाद में माया को लगता है कि अजय
ने उससे पैसों के लालच में शादी की है। उधर अजय का अफेयर रितु (वेदिका कुमार) से
चल रहा है। माया दोनों के पीछे जासूस लगा देती है। एक दिन माया की मौत हार्ट अटैक
से हो जाती है। उसका शव, शवगृह से गायब हो
जाता है। अजय परेशान हो जाता है। पुलिस इसका पता लगाने की कोशिश कर रही है कि
किसने ये काम किया है। लेकिन उसे कोई सुराग नहीं मिलता है। एस.पी. जयराज रावल (ऋषि
कपूर) को अजय पर शक है कि उसने पैसों के लिए अपनी पत्नी की हत्या कर उसका शव गायब
कर दिया है। अजय खुद को बेगुनाह बताता है और जयराज उसको कातिल साबित करने पर तुला
है...
यह फिल्म 2012 में आई इसी नाम की स्पेनिश फिल्म का आधिकारिक
हिंदी रीमेक है। लेकिन कहीं से भी मूल फिल्म के आसपास नहीं ठहरती। इसमें सस्पेंस
के नाम पर कुछ अजीबोगरीब दृश्यों के सिवा कुछ नहीं है। कहानी 15 मिनट चलती है कि कोई न कोई गाना शुरू हो जाता
है। यह इतनी प्रत्याशित है कि कोई रोमांच ही नहीं आता। जीतू जोसेफ ने ‘दृश्यम’ जैसी कसी हुई फिल्म निर्देशित की थी, तो एक उम्मीद बंधी थी कि इस बार वह कुछ अच्छी-सी कहानी पेश
करेंगे, लेकिन इस बार उन्होंने
पूरी तरह निराश किया है। मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई की पृष्ठभूमि में बनाई गई इस
फिल्म की स्क्रिप्ट पर ढंग से काम किया गया होता, तो यह एक बेहतर फिल्म साबित हो सकती थी। सिनमेटोग्राफी
अच्छी है और कई दृश्य सुंदर लगते हैं।
ऋषि कपूर का
अभिनय इस फिल्म का मजबूत पक्ष है। वह अपने अभिनय से फिल्म में थोड़ी रुचि बनाए रखते
हैं। इमरान हाशमी अच्छे अभिनेता है और इस तरह की भूमिकाएं पहले भी कर चुके हैं,
इसलिए उनके काम में थोड़ा दोहराव नजर आता है।
हालांकि उनका अभिनय ठीक है। शोभिता धुलिपाला ग्लेमरस लगी हैं, लेकिन उनका अभिनय असरदार नहीं हैं। वेदिका
कुमार भी ठीक लगी हैं, लेकिन प्रभावित
नहीं करतीं। दरअसल स्क्रिप्ट कलाकारों को सपोर्ट करने में सफल नहीं रही है। आरिफ
जकारिया जैसे कलाकार को लेकर उन्हें सिर्फ एक सीन में रखना समझ में नहीं आया। रुखसार रहमान और चंदन रहमान का काम ठीक है, हालांकि उनकी भूमिकाओं में दम नहीं है। यह एक बेहद साधारण
फिल्म है, जो अच्छे कलाकारों के
बावजूद प्रभावित नहीं करती।
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