फिल्म राज़ी की समीक्षा
राजीव रंजन
कलाकार: आलिया भट्ट, विक्की कौशल, जयदीप अहलावत, रजित कपूर, शिशिर शर्मा, आरिफ जकारिया, अश्वत्थ भट्ट, सोनी राजदान, अमृता खानविलकर
निर्देशक: मेघना गुलजार
निर्माता: विनीत जैन, करण जौहर, हीरू जौहर
बैनर: धर्मा प्रोडक्शंस, जंगली पिक्चर्स
लेखक: हरिंदर सिक्का (कहानी), मेघना गुलजार (स्क्रीनप्ले व संवाद), भवानी अय्यर (स्क्रीनप्ले)
संगीत: शंकर-एहसान-लॉय
गीत: गुलजार
साढ़े तीन स्टार (3.5 स्टार)
वतन के लिए सब पर राजी
बॉलीवुड में जासूसी
फिल्मों बहुत
पहले से
बनती आ
रही हैं
और इनमें
से ज्यादातर
फिल्में भारत
और पाकिस्तान
की दुश्मनी
की पृष्ठभूमि
में ही
होती हैं।
मेघना गुलजार
निर्देशित आलिया भट्ट की ‘राजी’
भी एक
ऐसी ही
फिल्म है,
जो हरिंदर
सिक्का की
किताब ‘कालिंग
सेहमत’ पर
आधारित है
और वास्तविक
घटनाओं से
प्रेरित है।
लेकिन यह
फिल्म बाकी
ढेर सारी
ऐसी फिल्मों
से इस
मायने में
अलग है
कि यह
युद्ध के
उन्माद को
नहीं भुनाती,
बल्कि युद्ध
से पैदा
होने वाली
त्रासदियों की ओर बहुत संवेदनशीलता
के साथ
ध्यान दिलाती
है। वह
भी बगैर
किसी भाषणबाजी
और उपदेश
का सहारा
लिए। यह
फिल्म बिना
किसी हडबड़ी
के, ताली
बजवाने वाले
संवादों के
बिना, अनावश्य
ड्रामा पैदा
किए बगैर
अपनी बात
बहुत करीने
से कहती
है, जबकि
ऐसी फिल्मों
में यह
सब करने
का लोभ
संवरण अच्छे-अच्छे फिल्मकार
नहीं कर
पाते।
पूर्वी पाकिस्तान शेख
मुजीबुर्रहमान की अगुवाई में पश्चिमी
पाकिस्तान से अपनी मुक्ति के
लिए संघर्ष
कर रहा
था। भारत
उस संघर्ष
में पूर्वी
पाकिस्तान की मदद कर रहा
था और
इसके परिणामस्वरूप
भारत-पाकिस्तान
के बीच
युद्ध के
हालात बन
रहे थे।
‘राजी’ उसी
दौर (सन्
1971) में भारत के लिए पाकिस्तान
में जासूसी
करने वाली
20 साल की
एक लड़की
सेहमत खान
(आलिया भट्ट)
की कहानी
है। सेहमत
कश्मीर से
है और
दिल्ली में
पढ़ती है।
उसके अब्बू
हिदायत खान
(रजित कपूर)
भारतीय खुफिया
तंत्र के
लिए काम
करते हैं।
वह पाकिस्तान
के ब्रिगेडियर
सईद (शिशिर
शर्मा) को
भारत के
बारे में
कुछ सूचनाएं
देकर उसका
विश्वास जीत
लेते हैं
और फिर
पाक से
अहम सूचनाएं
निकाल कर
भारतीय खुफिया
ब्यूरो को
देते हैं।
लेकिन वह
बहुत बीमार
हैं और
उनके पास
जिंदगी के
बस चार-पांच माह
ही बचे
हैं। देश
के लिए
सब कुछ
कुर्बान करने
को तैयार
हिदायत अब
इस काम
की जिम्मेदारी
अपनी बेटी
सेहमत को
देना चाहते
हैं। सेहमत
अपने अब्बू
और मुल्क
के लिए
यह करने
को तैयार
हो जाती
है। हिदायत
अपनी दोस्ती
का वास्ता
देकर सेहमत
की शादी
ब्रिगेडियर सैयद के छोटे बेटे
इकबाल सईद
(विक्की कौशल)
से तय
कर देते
हैं। शादी
से पहले
सेहमत दिल्ली
आ जाती
है, जहां
भारतीय खुफिया
ब्यूरो के
एक वरिष्ठ
अधिकारी खालिद
मीर (जयदीप
अहलावत) उसे
प्रशिक्षण देते हैं। फिर कुछ
महीने बाद
सेहमत ब्रिगेडियर
सईद की
बहू बन
कर पाकिस्तान
आ जाती
है। उसके
पति इकबाल
और जेठ
महबबू सईद
(अश्वत्थ भट्ट)
भी पाकिस्तानी
सेना में
अधिकारी हैं।
सेहमत जान
पर खेल
कर कई
अहम सूचनाएं
भारतीय खुफिया
ब्यूरो को
भेजती है।
लेकिन एक
दिन गड़बड़
हो जाती
है...
मेघना गुलजार ने
बिना शक
एक शानदार
फिल्म बनाई
है। फिल्म
के लिए
शोध का
काम काफी
मेहनत से
किया गया
लगता है।
पटकथा पर
परिश्रम किया
गया है।
मेघना ने
1971 के समय
को बहुत
अच्छे-से
क्रिएट किया
है। कॉस्ट्यूम
से लेकर
हर-छोटी
बड़ी बात
का ध्यान
रखा है।
इसमें जासूसी
कोर्डवर्ड बहुत रोचक हैं। जासूसी
के तौर-तरीके भी
बहुत प्रामाणिक
लगते हैं।
फिल्म अपनी
गति से
चलती है,
जो निश्चित
रूप से
एक जासूसी
थ्रिलर के
‘बॉलीवुड मानक’
के हिसाब
से धीमी
है। लेकिन
यह धीमापन
कहीं खलता
नहीं है।
फिल्म पूरी
तरह बांधे
रखती है।
इसमें आपको
जरूरी थ्रिल
मिलेगा, लेकिन
अतिनाटकीय रूप में नहीं, बल्कि
सहज-स्वाभाविक
रूप में।
इसमें आपको
संवेदनाएं भी मिलेंगी, थोड़ा-सा
जैज और
थोड़े-से
उस्ताद बड़े
गुलाम अली
खां भी
मिल जाएंगे।
यह फिल्म
देशभक्ति भी
दिखाती है
और एक
जासूस के
अंतद्र्वंद्व को भी। एक गिलहरी
को बचाने
के लिए
खुद को
संकट में
डाल देने
वाली एक
मासूम लड़की
देश के
लिए जासूसी
करने को
तैयार हो
जाती है
और वह
सब कुछ
करती है,
जो एक
जासूस को
करना पड़ता
है, लेकिन
अपने उस
किए को
वह कभी
‘ग्लोरिफाई’ नहीं करती।
फिल्म की एक
बड़ी खासियत
यह है
कि यह
किसी को
खलनायक के
रूप में
पेश नहीं
करती। सारे
किरदार बहुत
सहज लगते
हैं। मेघना
फिल्म के
जरिये बताने
की कोशिश
करती हैं
कि जब
जंग होती
है तो
सिर्फ जंग
ही मायने
रखती है,
बाकी कुछ
नहीं। न
लोग, न
रिश्ते, न
नाते, न
भावनाएं।
फिल्म में अभिनय
पक्ष बहुत
सशक्त है।
हर कलाकार
ने अपना
काम शानदार
तरीके से
किया है।
आलिया अपने
अभिनय के
उत्कर्ष पर
हैं। अपने
किरदार की
हर परत
और उसके
अंतद्र्वंद्वों को उन्होंने बहुत दक्षता
के साथ
जिया है।
उनके अभिनय
की रेंज
गजब की
है। फिल्म
दर फिल्म
वह अभिनय
के मानदंड
स्थापित कर
रही हैं।
नई पीढ़ी
की अभिनेत्रियों
में उनका
कोई मुकाबला
नहीं है।
विक्की कौशल
के पास
अपेक्षाकृत मौके कम थे, लेकिन
जितने भी
दृश्य उन्हें
मिले, उन्होंने
उनमें छाप
छोड़ी है।
भारतीय खुफिया
अधिकारी के
रूप में
जयदीप अहलावत
मुग्ध कर
देते हैं।
उनका अभिनय
बेहद सधा
हुआ और
नियंत्रित है। रजित कपूर और
आरिफ जकारिया
की भूमिकाएं
छोटी हैं,
लेकिन असरदार
हैं। पाकिस्तानी
ब्रिगेडियर सईद की भूमिका में
शिशिर शर्मा
और उनके
बड़े बेटे
महबूब के
रूप अश्वत्थ
भट्ट तथा
बहू मुनीरा
के रूप
में अमृता
का काम
भी अच्छा
है।
फिल्म में ज्यादा
गाने नहीं
हैं, लेकिन
जो भी
हैं, बहुत
अच्छे हैं।
शंकर-एहसान-लॉय ने
कर्णप्रिय धुनें बनाई हैं और
गुलजार के
शब्द उन
धुनों को
एक अलग
गहराई दे
देते हैं।
फिल्म की
सिनमेटोग्राफी भी बहुत अच्छी है
और संपादन
भी सधा
हुआ है।
यह फिल्म बहुत
इत्मीनान के
साथ शुरू
होती है
और उतने
ही इत्मीनान
के साथ
खत्म भी
होती है,
मगर हां,
बैचेन कर
जाती है।
यह फिल्म
हमेशा इस
बात की
याद दिलाती
है कि
‘वतन के
आगे कुछ
नहीं’, लेकिन
बहुत संजीदगी
से यह
भी ताकीद
कर देती
हैं कि
मुल्क लोगों
से ही
बनता है।
निस्संदेह यह एक खूबसूरत फिल्म
है और
बतौर निर्देशक
मेघना गुलजार
तथा बतौर
अभिनेत्री आलिया भट्ट की सबसे
अच्छी फिल्म
भी। यह
जरूर देखी
जाने लायक
फिल्म है।
हिन्दुस्तान में 12 मई
को
प्रकाशित
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