फिल्म 2.0 की समीक्षा

तकनीक के जरिये तकनीक के खतरों की बात

राजीव रंजन

निर्देशक: एस. शंकर

बैनर: लाइका प्रोडक्शंस

कलाकार: रजनीकांत, अक्षय कुमार, एमी जैक्सन, आदिल हुसैन, कैजाद कोतवाल, सुधांशु पांडेय

संगीत: ए.आर. रहमान

ढाई स्टार (2.5 स्टार)

तकनीकी प्रगति ने मनुष्य को बहुत सुविधाएं मुहैया कराई हैं, तो बहुत सारी परेशानियां भी पैदा की हैं। पर इसमें दोष तकनीक का नहीं, बल्कि उसके गलत इस्तेमाल का है। ‘रोबोट’ जैसी तकनीकी दृष्टि से उन्नत फिल्म के निर्देशक शंकर ने यह बात इसी फिल्म के सीक्वल ‘2.0’ के जरिये कहने की कोशिश की है। दरअसल, मनुष्य ने अपनी तात्कालिक जरूरतों की पूर्ति के लिए खुद पर मंडरा रहे दीर्घकालीन खतरों के प्रति आंखें मूंद ली हैं।

आज मोबाइल लोगों के जीवन की सबसे बड़ी जरूरत बन गया है, लेकिन इसका रेडिएशन कितना बड़ा खतरा बन सकता है, हम इस पर थोड़ा भी सोचने को तैयार नहीं। जो एकाध लोग सोच रहे हैं, उनकी सुनने को कोई तैयार नहीं। ‘2.0’ की कहानी इसी विषय के ईर्द-गिर्द बुनी गई है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के अपने नायाब नमूने चिट्टी (रजनीकांत) को विघटित करने के बाद डॉ. वशीकरण (रजनीकांत की दोहरी भूमिका) ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से संपन्न एक महिला रोबोट नीला (एमी जैक्सन) का निर्माण किया है, जो उनके सहायक के रूप में काम करती है। डॉ. वशीकरण का मानना है कि मानव रोबोट मनुष्य के बहुत काम के साबित हो सकते हैं। उधर अचानक एक दिन शहर में लोगों के मोबाइल फोन उड़ कर गायब होने लगते हैं। शहर में अफरातफरी मच जाती है। इसी दौरान एक मोबाइल विक्रेता, मोबाइल कंपनी के मालिक मनोज लुल्ला (कैजाद कोतवाल), टेलीकॉम मिनिस्टर और अन्य कई लोगों की हत्या हो जाती है। सबकी मौत का सिरा मोबाइल से जुड़ा है। डॉ. वशीकरण इस खतरे से निपटने के लिए चिट्टी को फिर से अस्तित्व में लाने का प्रस्ताव देते हैं, लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट (एआईआरडी) के ही एक दूसरे वैज्ञानिक धीनेंद्र बोरा (सुधांशु पांडेय) इसका विरोध करते हैं, क्योंकि पिछली बार चिट्टी ने काफी तबाही मचाई थी। गृहमंत्री विजय कुमार (आदिल हुसैन) डॉ. वशीकरण का यह प्रस्ताव खारिज कर देते हैं। लेकिन हालात इतने बिगड़ जाते हैं कि चिट्टी को फिर से अस्तित्व में लाना ही पड़ता है।

पता चलता है कि मोबाइल के गायब हो जाने और लोगों की हत्याओं के पीछे डॉ. पक्षीराजन (अक्षय कुमार) हैं, जो एक पक्षी वैज्ञानिक थे। मोबाइल टावरों के रेडिएशन के कारण पक्षियों की मौत हो रही है, इससे वह बहुत दुखी हैं। इसे रोकने के लिए वह सभी जिम्मेदार व्यक्तियों से मिलते हैं, लेकिन उनकी बात मानने को कोई तैयार नहीं। हर जगह उन्हें उपेक्षा और तिरस्कार ही मिलता है। रेडिएशन से होने वाली पक्षियों की मौत से दुखी होकर वह आत्महत्या कर लेते हैं। मरने के बाद उनकी आत्मा एक बुरी ताकत बन जाती है और मोबाइल फोन के खिलाफ जंग छेड़ देती है। फिर उनमें और चिट्टी में भिड़ंत होती है...

फिल्म का विषय बढ़िया है, पर पटकथा में दम नहीं है। वैसे तकनीकी रूप से यह एक बेहतरीन फिल्म है। ऐसा लगता है कि निर्देशक ने सिर्फ तकनीक पर ही भरोसा किया और पटकथा पर ध्यान ही नहीं दिया। पटकथा बहुत कैजुअल तरीके से लिखी गई लगती है। हां, फिल्म में वीएफएक्स का काम कमाल का है और फिल्म देखने की सबसे बड़ी वजह यही है। खासकर 3-डी में तो इसे देखना एक रोमांचक अनुभव है। शंकर भारतीय सिनेमा में एक कल्पनाशील निर्देशक के रूप में जाने जाते हैं। इस फिल्म में भी वह चीज दिखती है, लेकिन सिर्फ तकनीक के स्तर पर। तकनीकी लिहाज से कई दृश्य प्रभावित करते हैं। अक्षय कुमार के विशाल पक्षी में बदलने के दृश्य, असंख्य मोबाइलों के एक साथ उड़ने और चिट्टी के एक साथ कई गन चलाने वाले दृश्य अच्छे लगते हैं। सैकड़ों पंछियों के एक साथ उड़ने का दृश्य काफी सुंदर लगता है।

विषयों को देखते हुए फिल्म में संवेदना जगाने वाले दृश्यों का काफी स्कोप था, लेकिन मध्यांतर के ठीक बाद डॉ. पक्षीराजन के पंछियों से लगाव दर्शाने वाले कुछ दृश्यों को छोड़ दें, तो लेखक और निर्देशक दर्शकों की भावना को स्पर्श कर पाने में नाकाम रहे हैं। फिल्म का संदेश अच्छा और समयानुकूल है, लेकिन वह ठीक से संप्रेषित नहीं हो पाया है। ए.आर. रहमान निस्संदेह बड़े संगीतकार हैं, लेकिन इस फिल्म का संगीत औसत भी नहीं कहा जा सकता। सिनमेटोग्राफी जरूर कई जगह अच्छी है।

रजनीकांत जिस बात के लिए जाने जाते हैं, उस पर पूरी तरह खरे उतरे हैं। उनका स्टाइल ही उनकी पहचान है और कुछ दृश्यों में वह दिखी भी है। हालांकि उन पर उम्र का असर दिखता है। कई दृश्यों में उनके रिफ्लेक्सेज धीमे लगते हैं। अक्षय कुमार बहुत समय के बाद एक नकारात्मक किरदार में दिखे हैं। हालांकि फिल्म में उनके किरदार के नकारात्मक और सकारात्मक, दोनों पहलू हैं। उनका अभिनय अच्छा है। वह इस फिल्म में अपने किरदार के दोनों पहलुओं में जमे हैं। आदिल हुसैन अच्छे अभिनेता है, लेकिन उनके लिए इस फिल्म में बहुत ज्यादा मौके थे नहीं। महिला रोबोट के रूप में एमी जैक्सन का अभिनय भी ठीकठाक है। शेष कलाकार भी ठीक ही हैं। वैसे जिस फिल्म में रजनीकांत जैसे मेगास्टार और अक्षय कुमार जैसे बॉलीवुड के सुपरस्टार एक साथ हों, वहां दूसरों के लिए ज्यादा स्कोप होने की संभावना भी कहां बचती है!

कुल मिलाकर यह फिल्म बिना आत्मा के एक सुंदर शरीर जैसी लगती है। अगर इस फिल्म से वीएफएक्स को हटा दें तो यह बेहद साधारण फिल्म है।
(1 दिसंबर 2018 को हिन्दुस्तान में संक्षिप्त अंश प्रकाशित)


http://epaper.livehindustan.com/epaper/Delhi-NCR/Delhi-NCR/2018-12-01/1/Page-15.html

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