फिल्म जीरो की समीक्षा

जीरो’ में नहीं है हीरो वाला दम

राजीव रंजन

कलाकार: शाहरुख खानअनुष्का शर्माकैटरीना कैफमोहम्मद जीशान अय्यूबतिग्मांशु धूलियाशीबा चड्ढाबृजेंद्र कालाअभय देओलआर. माधवन

निर्देशक: आनंद एल. राय

निर्माता: गौरी खान

बैनर: रेड चिली एंटरटेनमेंट और कलर यलो प्रोडक्शंस

संगीत: अजय-अतुल और तनिष्क बागची

गीत: इरशाद कामिल और कुमार

2 स्टार (दो स्टार)

एक और एक ग्यारह’ यानी एक समर्थ व्यक्ति की ताकत दूसरे समर्थ व्यक्ति से जुड़ती हैतो वह दो नहीं ग्यारह के बराबर होती है। लेकिन यह मुहावरा फिल्म जीरो’ के संदर्भ में गणित भर बन कर रह गया है। वह भी जोड़ नहींबल्कि गुणा वाला। एक गुणा एक = एक। जीरो’ से उम्मीदें बहुत थीं। शाहरुख खान पहली बार अपनी सुपरस्टार वाली शख्सीयत से एक अलग किरदार में थे। इस किरदार के रचनाकार आनंद एल. राय जैसे सुलझे और संजीदा निर्देशक हैंजिनके बारे में माना जाता है कि उन्हें कहानी सुनाने का सलीका आता है। इस फिल्म के लेखक हिमांशु शर्मा जैसे काबिल शख्स हैंजिन्होंने तनु वेड्स मनु’ और रांझणा’ जैसी अच्छी फिल्में लिखी हैंजो छोटे शहरों की धड़कनों को पहचानते हैं। लेकिन... यह टीम उस टीम की तरह साबित हुईजो कागज पर तो बहुत मजबूत दिखती हैलेकिन मैदान में अपनी क्षमता के अनुसार प्रदर्शन नहीं कर सकी।
यह कहानी है मेरठ के बउवा सिंह (शाहरुख खान) कीजिसका कद महज साढ़े 4 फीट है। उसका कद भले असामान्य हैलेकिन वह जिंदगी सामान्य लोगों जैसी जीना चाहता है। वह फिल्म स्टार बबीता (कैटरीना कैफ) का बहुत बड़ा प्रशंसक है और उसके सपने देखता है। विडंबना यह है कि लोग उसके साथ सामान्य व्यक्तियों की तरह व्यवहार नहीं करते। उसका दोस्त गुड्डू (जीशान अय्यूब) ही हैजो उसे थोड़ा-बहुत समझता है।बउवा एक दिन मैरिज ब्यूरो चलाने वाले पांडेय (बृजेंद्र काला) के जरिये एनएसएआर में काम करने वाली अंतरिक्ष वैज्ञानिक आफिया यूसुफजई भिंडर (अनुष्का शर्मा) से मिलता हैजो सेरेब्रल पाल्सी’ से पीड़ित है और मंगल ग्रह पर रॉकेट भेजने के अभियान की लीडर है। आफिया शुरू में तो बउवा को भाव नहीं देतीलेकिन बाद में उससे प्यार करने लगती है। बात शादी तक पहुंच जाती है। फिर कहानी में ट्विस्ट आता है और बउवा शादी वाले दिन ही सब छोड़ कर भाग जाता है बबीता से मिलने के लिए। आदित्य कपूर (अभय देओल) से प्यार में धोखा खा चुकी बबीता को वह अपनी अजीबोगरीब हरकतों से प्रभावित कर लेता है और उसके असिस्टेंट के रूप में काम करने लगता है। लेकिन एक दिन बबीता उसे जलील करके बाहर निकाल देती है। उसके बाद वह अपने दोस्त गुड्डू के साथ अमेरिका पहुंच जाता है आफिया के पास। आफिया मंगल ग्रह पर रॉकेट भेजने की तैयारी में जुटी है और श्रीनि (आर. माधवन) से उसकी शादी भी होने वाली है। बउवा उससे माफी मांगता हैलेकिन वह माफ नहीं करती...
पटकथा में कई कमियां होने के बावजूद इंटरवल तक फिल्म ठीकठाक चलती हैलेकिन इंटरवल के बाद यह पूरी तरह पटरी से उतर जाती है। इसकी गति धीमी हो जाती और यह ज्यादातर दृश्यों में बोझिल लगने लगती है। सब कुछ वैसे ही घटित होता हैजैसे ठेठ मसाला बॉलीवुडिया फिल्मों में घटता है। क्लाइमैक्स में थोड़ी-सी संभावना थीलेकिन हैप्पी एंडिंग’ के चक्कर में आनंद एल. राय वह मौका भी गंवा देते हैं। संवाद कहीं कहीं अच्छे और रोचक हैंखासकर इंटरवल के पहलेलेकिन पटकथा सारा खेल बिगाड़ देती है। पटकथा में शुरू से लेकर आखिर तक इतने झोल हैं कि आनंद एल. राय जैसे समर्थ निर्देशक भी फिल्म को दिशा नहीं दे पाते। इसकी कहानी में नाटकीयता बहुत ज्यादा है और मनोरंजन की खुराक भी पर्याप्त नहीं है। आनंद एल. राय और हिमांशु शर्मा की जोड़ी से ऐसी कहानी और पटकथा की उम्मीद नहीं थी। फिल्म का संगीत ठीक है। जब तक जहां में सुबह शाम है’ गाना बहुत अच्छा लगता है। नुसरत फतेह अली खान की एक कव्वाली मैं रोज रोज तन्हा’ को री-क्रिएट किया गया हैजो कर्णप्रिय है। बाकी गाने कुछ खास असर नहीं छोड़ते। मनु आनंद की सिनमेटोग्राफी अच्छी है। आनंद राय ने अपनी फिल्म में वीएफएक्स का इस्तेमाल पहली किया है और अच्छा किया है। फिल्म की लंबाई ज्यादा हैइसे आराम से 20-25 मिनट कम किया जा सकता था। तब शायद फिल्म कुछ बेहतर होती।
फिल्म में शाहरुख के किरदार की शारीरिक संरचना भले अलग हैलेकिन पूरी फिल्म में वह लगा शाहरुख खान ही है। शाहरुख का अभिनय अपनी चिर-परिचत छाप लिए हुए है। पहले हाफ में उन्होंने अपने किरदार को थोड़ा अलग तरीके से पेश करने की कोशिश की हैलेकिन दूसरे हाफ में वे अपने पुराने अंदाज में आ गए हैं। हो सकता है निर्देशक भी ऐसा ही चाहते होंगेलेकिन इससे किरदार की प्रामाणिकता को धक्का पहुंचा है। अनुष्का का किरदार चुनौतीपूर्ण था और इसके लिए उन्होंने कोशिश भी खूब की है। काफी हद तक सफल भी रही हैं। हालांकि इस किरदार को बहुत अच्छे से गढ़ा नहीं गया है। दुनिया के सबसे बड़े स्पेस सेंटर की एक बड़ी वैज्ञानिक ऐसी हो सकती हैकम से कम मुझे तो नहीं पचता। कैटरीना बस शो-पीस की तरह लगी हैं। उन्हें सीन भी कम मिले हैंलेकिन जितने मिले हैंवे उसका भी सदुपयोग नहीं कर पाईं। जीशान अय्यूब ने हमेशा की तरह प्रभावित किया है। वे जब भी स्क्रीन आते हैंथोड़ा ठीक लगता है। बउवा के साथ गुड्डू की केमिस्ट्री थोड़ी राहत देती है। बउवा के पिता अशोक के रूप में तिग्मांशु धूलिया भी ठीक लगे हैं। उनके अभिनय में स्वाभाविकता दिखती है। छोटी-सी भूमिका में शीबा चड्ढा भी अच्छी लगी हैं। अभय देओल और आर. माधवन अतिथि भूमिका में हैं और अपने किरदारों में जंचे हैं। इनके अलावाश्रीदेवीकाजोलकरिश्मा कपूरदीपिका पादुकोणआलिया भट्टजूही चावला भी फिल्म में झलक दिखला जाती हैं। बउवा यानी जीरो को सपोर्ट करने के लिए सलमान खान भी एक गाने में हैं। उसी गाने में गणेश आचार्य और रेमो डिसूजा ने भी डांस के जलवे बिखेरे हैं। इतने सितारों की मौजूदगी के बावजूद यह फिल्म चमक नहीं बिखेर पाती।
बहरहालयह फिल्म आपको कैसी लगेगीयह इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसे किस तरह देखते हैं। अगर आप शाहरुख खान के प्रशंसक हैंतो यह आपको अच्छी लगेगीक्योंकि उनकी पिछली फिल्म से बेहतर है। अगर आप फिल्मकार आनंद एल. राय की फिल्ममेकिंग के कायल हैंतो यह फिल्म आपको निराश करेगीक्योंकि यह उनकी पिछली फिल्मों के आसपास भी नहीं टिकती। अगर आप इसे बिना किसी पूर्वधारणा के देखेंगेतो यह एक औसत के आसपास की फिल्म है।
(21 दिसंबर, 2018 को livehindustan.com और 22 दिसंबर, 2018 को हिन्दुस्तान में संक्षिप्त अंश प्रकाशित)

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