गुदड़ी के लाल कादर खान

राजीव रंजन

करीब 300 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय करने और 250 से ज्यादा फिल्मों में संवाद लिखने वाले कादर खान की जिंदगी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। फर्श से अर्श पर पहुंचने की उनकी कहानी में इतने उतार-चढ़ाव है कि उस पर एक प्रेरक और रोचक फिल्म बन जाए। एक समय ऐसा भी था कि उनका रुतबा फिल्म के हीरो से ज्यादा हुआ करता था। निर्माता-निर्देशक उन्हें अपनी फिल्मों में लेने और संवाद लिखवाने के लिए इंतजार करते थे। उन्होंने अपने संवादों से 80 और 90 के दशक में फिल्मों की भाषा ही बदल दी। उनकी भाषा वैसी ही भाषा थीजो आम आदमी बोलता हैसमझता हैलेकिन उसमें कई बार दार्शनिकों वाली गहराई होती थी। हालांकि कई बार द्विअर्थी संवाद लिखने के कारण उनकी आलोचना भी हुई। बतौर अभिनेता आखिरी बार वह फिल्म हो गया दिमाग का दही में नजर आए थे। इसमें उनकी काफी छोटी भूमिका थी और उन्हें देख कर लगता था कि उनकी शारीरिक अवस्था ठीक नहीं है।
कादर खान का जन्म अफगानिस्तान के काबुल में हुआ था। उनके पिता अब्दुल रहमान खान कंधार के थे और मां इकबाल बेगम पिशिन (अंग्रेजी राज में भारत का अंगसे थीं। उनके जन्म के पहले उनके परिवार में उनके तीन बड़े भाई थेजो आठ वर्ष के होते-होते मर गए। इससे घबरा कर कादर खान के जन्म के बाद उनकी मां उन्हें लेकर मुंबई आ गईं। उनका बचपन बेहद गरीबी में गुजरा और कई बार खाने को रोटी भी नसीब नहीं होती थी। पैरों में पहनने के लिए चप्पल तक नहीं हुआ करते थे। उनका बचपन और भी दुखद हो गयाजब उनके माता-पिता का अलगाव हो गया। उनके सौतेले बाप उनकी बेरहमी से पिटाई करते थे।
वे जब आठ-नौ साल के थेघंटों कब्रिस्तान में बैठ कर चिल्लाया करते थे और उनकी यही आदत उनके अभिनय क्षेत्र में आने का सबब बनी। उनकी मां उन्हें नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद भेजती थींलेकिन वो कब्रिस्तान चले जाते थे। एक अभिनेता थे अशरफ खानजो एक नाटक की तैयारी कर रहे थे। उन्हें एक बच्चे की जरूरत थीजो अभिनय कर सके और लंबी स्क्रिप्ट याद कर सके। उन्हें कादर खान के बारे में पता चला और उन्होंने कब्रिस्तान में ही कादर खान से पूछा कि वे एक्टिंग करेंगे। कादर खान ने कहा कि उन्हें एक्टिंग नहीं आती। फिर अशरफ खान ने उन्हें अभिनय सिखाया और नाटक में काम दिया। यहीं से कादर खान की अभिनय यात्रा शुरू हुई। पहले ही नाटक में उनका अभिनय देख कर एक बुजुर्ग ने उन्हें सौ का नोट दिया था। लेकिन गरीबी के कारण वह उस नोट को कुछ समय बाद खर्च करने को मजबूर हो गए। उस नोट को वे ट्रॉफी की तरह मानते थे। दिलीप कुमार ने एक बार कादर खान को कॉलेज में ड्रामा करते देखा और इतने प्रभावित हुए कि अपनी दो फिल्मों सगीना और बैराग के लिए साइन कर लिया।
कादर खान ने 1973 में यश चोपड़ा निर्देशित दाग से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थीजिसके हीरो राजेश खन्ना थे। कादर खान बहमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने फिल्मों में आने से पहले एमएच सैबू सिद्दीकी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में सिविल इंजीनियरिंग भी पढ़ाया। फिल्म रोटी के संवाद लिखने के लिए मनमोहन देसाई ने कादर खान को उस जमाने में एक लाख बीस हजार रुपये की बड़ी रकम दी थी। वे अमिताभ बच्चन के अलावा संभवतएकमात्र कलाकार और संवाद लेखक थेजिन्होंने मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा दोनों विरोधी कैंपों के साथ काम किया। अमिताभ बच्चन की सफलता में कादर खान के लिखे संवादों का भी योगदान है। अमिताभ की मुकद्दर का सिकंदरअमर अकबर एंथोनी कुली हम जैसी फिल्मों के संवाद कादर खान ने ही लिखे थे। इसके अलावा उन्होंने हिम्मतवालाकुली नंवनमैं खिलाडी तू अनाड़ीखून भरी मांगकर्मासरफरोश और धर्मवीर जैसी सुपरहिट फिल्मों के संवाद भी लिखे।

  • कादर खान ने 1982 में मेरी आवाज सुनो और 1993 में अंगार के लिए सर्वश्रेष्ठ संवाद का फिल्मफेयर अवॉर्ड जीता था।
  • कादर खान 1991 में बाप नंबरी बेटा दस नंबरी के लिए सर्वश्रेष्ठ कॉमेडियन का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी जीत चुके हैं।
  • कादर खान 10 बार सर्वश्रेष्ठ कॉमेडियन के लिए फिल्मफेयर में नामांकित किए जा चुके हैं।

कादर खान के कुछ मशहूर संवाद

1. बचपन से सर पर अल्लाह का हाथ और अल्लाहरक्खा है अपने साथबाजू पर 786 का है बिल्ला, 20 नंबर की बीड़ी पीता हूं और नाम है इकबाल।
(कुली, 1983)
2. सुख तो बेवफा है। आता है जाता है। दुख ही अपना साथी हैअपने साथ रहता है। दुख को अपना लेतब तकदीर तेरे कदमों में होगी और तू मुकद्दर का बादशाह होगा।
(मुकद्दर का सिकंदर, 1978)
3. ऐसे तोहफे (बंदूकेंदेने वाला दोस्त नहीं होता है। तेरे बाप ने 40 साल मुंबई पर हुकूमत की हैइन खिलौनों के बल पर नहींअपने दम पर।
(अंगार, 1992)
4. दारू पीता नहीं है अपुनक्योंकि मालूम है दारू पीने से लीवर खराब हो जाता हैलीवर।
(सत्ते पे सत्ता, 1982)
5. विजय दीनानाथ चौहानपूरा नामबाप का नाम दीनानाथ चौहानमां का नाम सुहासिनी चौहानगांव मांडवाउम्र 36 साल 9 महीना 8 दिन और ये सोलहवां घंटा चालू है।
(अग्निपथ, 1990)
6. तुम्हें बख्शीश कहां से दूंमेरी गरीबी का तो ये हाल है कि किसी फकीर की अर्थी को कंधा दूं तो वो उसे अपनी इंसल्ट मान कर अर्थी से कूद जाता है।
(बाप नंबरी बेटा दस नंबरी, 1990)
7. कहते हैं किसी आदमी की सीरत अगर जाननी हो तो उसकी सूरत नहींउसके पैरों की तरफ देखना चाहिए। उसके कपड़ों को नहींउसके जूतों की तरफ देख लेना चाहिए।
(हम, 1991)
8. मोहब्बत को समझना है प्यारेतो खुद मोहब्बत कर। किनारे से अंदाज--तूफां नहीं होता।
(हम, 1991)

कादर खान की कुछ यादगार फिल्में

1. बाप नंबरी बेटा दस नंबरी (1990)
2. मुझसे शादी करोगी (2004)
3. साजन चले ससुराल (1996)
4. दुल्हे राजा (1998)
5. कुली नंबर 1 (1995)
6. आंखें (1993)
7. हिम्मतवाला (1983)
8. मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी (1994)
9. हम (1991)
10. सिक्का (1989)
(हिन्दुस्तान में 2 जनवरी, 2019 को संपादित अंश प्रकाशित)

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