फिल्म ‘मिलन टॉकीज’ की समीक्षा

पूरा फिल्मी है ये मिलन

राजीव रंजन

निर्देशक: तिग्मांशु धूलिया

कलाकार: अली फजलश्रद्धा श्रीनाथसंजय मिश्राआशुतोष राणासिकंदर खेर

दो स्टार (2 स्टार)

तिग्मांशु धूलिया जिस तरह की फिल्में बनाने के लिए जाने जाते हैं, ‘मिलन टॉकीज’ वैसी फिल्म नहीं है और वह जिस तरह से फिल्में बनाने के लिए जाने जाते हैंयह वैसी भी नहीं है। उन्होंने इस बार एक रोमांटिक फिल्म में हाथ आजमाया हैजिसमें थोड़ी-सी कॉमेडी भी है और थोड़ा-सा एक्शन भी। लेकिन यह खिचड़ी न तो स्वादिष्ट  है और न ही सेहतमंद। अगर इस फिल्म में तिग्मांशु की पुरानी फिल्मों जैसा कुछ हैतो वह है हिन्दी हार्टलैंड की धड़कनमगर वह भी थोड़ी-सी ही। यानी इस फिल्म बहुत कुछ हैमगर सब थोड़ा-थोड़ा।
इलाहाबाद (अब प्रयागराज) का अनिरुद्ध  उर्फ अन्नु (अली फैजल) फिल्म निर्देशक बनना चाहता है और गुजारे के लिए छात्रों को पास कराने का ठेका भी लेता है। इसी क्रम में उसे मैथिली (श्रद्धा श्रीनाथ) को पास कराने का ठेका मिलता है। उसे मैथिली से प्यार हो जाता हैलेकिन मैथिली के पिता जनार्दन (आशुतोष राणा) बहुत रुढ़िवादी हैं। वह प्यार को बदचलनी मानते हैं। उन्हें मैथिली के चेहरे की चमक देख कर लगता है कि उसका कहीं चक्कर चल रहा है और वह उसका घर से बाहर निकलना बंद कर देते हैं। अन्नु और मैथिली एक दिन घर से भाग जाते हैंलेकिन पकड़ लिए जाते हैं। मैथिली की शादी किसी और से हो जाती है। अन्नु मुंबई पहुंच जाता है और निर्देशक बन जाता है। कुछ साल बाद वह लौट कर इलाहाबाद आता है...

इस फिल्म में फिल्मीपना जम कर है। लेकिन समस्या यह नहीं हैसमस्या ये है कि इसमें मजा नहीं आता। फिल्म की स्क्रिप्ट ढीली है और प्रस्तुतीकरण भी। बस कुछ ही सीन हैंजो अच्छे लगते हैं। फिल्म कुछ देर तो थोड़ी ठीक चलती हैफिर पटरी से उतर जाती है। ऐसा बार-बार होता है। क्लाईमैक्स में भी दम नहीं है। तिग्मांशु पिछली कुछ सालों से अपनी साख के अनुरूप फिल्में बनाने में सफल नहीं रहे हैं। मिलन टॉकीज’ इस बात को और पुष्ट करती है।
अली फैजल अच्छे अभिनेता हैं और इस फिल्म में भी उनका अभिनय ठीक है। पर कई दृश्यों में ऐसा लगता है कि वह मिर्जापुर’ के खुमार से अभी तक बाहर नहीं निकल पाए हैं। श्रद्धा श्रीनाथ अच्छी लगती हैं। उनमें संभावनाएं नजर आती हैं। आशुतोष राणा अपने चिर-परिचित अंदाज में हैं। सिकंदर खेर भी विलेन के रूप में ठीक लगे हैं। संजय मिश्रा का किरदार छोटा है। अगर उसे थोड़ा और ठीक से गढ़ा गया होता और थोड़ा ज्यादा स्क्रीन स्पेस दिया जातातो फिल्म की सेहत के लिए शायद ठीक होता। इस फिल्म में तिग्मांशु खुद भी एक किरदार में हैं और यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि उनका अभिनय उनके निर्देशन से तो बेहतर है। फिल्म की बाकी स्टारकास्ट भी ठीक है।
कुछ फिल्में ऐसी होती हैंजो न अच्छी लगती हैंन बुरी। अगर आप उन्हें देखने बैठे हैंतो झेल लेंगे। और अगर नहीं देखातो कोई मलाल भी नहीं होगा। मिलन टॉकीज’ भी ऐसी ही फिल्म है।
(हिन्दुस्तान में 16 मार्च 2019 को सम्पादित अंश प्रकाशित)

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