फिल्म ‘नोटबुक’ की समीक्षा

कश्मीर की वादियों में एक अलग-सी प्रेम कहानी

राजीव रंजन

निर्देशक: नितिन कक्कड़

कलाकार: जहीर इकबाल, प्रनूतन बहल

2.5 स्टार (ढाई स्टार)


प्यार एक ऐसा एहसास है, जो कभी भी, कहीं भी, कैसे भी हो सकता है। पहली नजर में हो सकता है, बिना देखे भी हो सकता है और डायरी में लिखी बातें पढ़ कर भी हो सकता है। थाईलैंड की फिल्म टीचर्स डायरी पर आधारित सलमान खान प्रोडक्शंस की नोटबुक प्यार की एक ऐसी कहानी है, जहां नायक-नायिका एक नोटबुक के जरिये प्यार की डोर में बंध जाते हैं।
पूर्व फौजी कबीर (जहीर इकबाल) एक विस्थापित कश्मीरी पंडित है, जो जम्मू में रहता है। उसके पिता ने कभी वूलर में एक स्कूल शुरू किया था, जो टीचर के अभाव में बंद होने की कगार पर है। कबीर उस स्कूल में टीचर बन जाता है। पहले तो बच्चे उससे खिंचे खिंचे रहते हैं, पर बाद में उसे स्वीकार कर लेते हैं। उसी स्कूल में पहले फिरदौस (प्रनूतन बहल) पढ़ाती थी। कबीर को उसकी नोटबुक मिलती है और उसमें लिखी बातों को पढ़ कर उसे फिरदौस से प्यार हो जाता है।
यह फिल्म मूल रूप से एक प्रेम कहानी है, लेकिन यह कश्मीरी पंडितों के पलायन, कश्मीर के उथल-पुथल भरे माहौल, स्त्री की आकांक्षाओं, शिक्षा के महत्व के बारे में भी बात करती है। फिल्म की स्क्रिप्ट बहुत अच्छी नहीं है। यह एक प्रेम कहानी है, लेकिन पटकथा उस एहसास को दर्शकों के अंदर नहीं उतार पाती। इस वजह से प्रेम कहानी का स्वाद जबान पर नहीं चढ़ पाता। एक अधूरापन-सा महसूस होता है। पटकथा के मुकाबले संवाद बेहतर हैं।
इस फिल्म की सबसे बड़ी खासियत इसकी सिनमेटोग्राफी है। कश्मीर के प्राकृतिक सौंदर्य को मनोज कुमार खतोई ने बहुत खूबसूरती से पेश किया है। निस्संदेह, यह फिल्म विजुअली बहुत शानदार है। गीत-संगीत ठीक है, लेकिन बुमरो गाने को छोड़ कर बाकी सारे गाने एक ही मूड के हैं, जिससे एकरसता पैदा होती है। नितिन कक्कड़ का निर्देशन ठीक हैं। हालांकि,वह बतौर निर्देशक अपनी पहली फिल्म फिल्मिस्तान के मुकाबले फीके नजर आते हैं। पहली फिल्म के लिहाज से प्रनूतन और जहीर अच्छे लगे हैं। दोनों ने अपने किरदारों को अच्छे से निभाया है। उनमें संभावनाएं नजर आती हैं। फिल्म में जितने भी बाल कलाकार हैं, सब बहुत मासूम और प्यारे लगे हैं। बाकी कलाकार भी ठीक हैं। यह फिल्म एक बार देखने लायक है।

(हिन्दुस्तान में 30 मार्च को सम्पादित अंश प्रकाशित)

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