फिल्म ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर 2’ की समीक्षा
पास होने लायक नहीं हैं ये स्टूडेंट
राजीव रंजन
निर्देशक: पुनीत मल्होत्रा
कलाकार: टाइगर श्रॉफ, अनन्या पांडेय, तारा सुतारिया, आदित्य सील, गुल पनाग, मनोज
पाहवा, समीर सोनी
2 स्टार (दो स्टार)
इन दिनों बॉलीवुड में भी एक परंपरा-सी चल पड़ी है कि अगर कोई फिल्म हिट हो गई, तो उसका सीक्वल बना डालो या उसमें 2, 3 या आगे-पीछे कुछ जोड़ कर दर्शकों के सामने परोस दो। इससे एक फायदा होता है कि फिल्म को लेकर दर्शकों में एक उत्सुकता पैदा हो जाती है और बिना किसी विशेष प्रयास के वह चर्चा में भी आ जाती है। लेकिन इसके साथ एक खतरा भी जुड़ जाता है कि उसकी तुलना पिछली फिल्म से अवश्यंभावी हो जाती है। अगर फिल्म थोड़ी भी ठीक हुई, तो काम बन जाता है और नहीं हुई, तो उसके पिटने का खतरा भी बढ़ जाता है। करण जौहर के धर्मा प्रोडक्शन की ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर 2’ इस सिलसिले में ताजातरीन नाम है।
रोहन (टाइगर श्रॉफ) मसूरी के एक साधारण ज्योतिषी का बेटा है। वह वहीं के पिशोरीमल कॉलेज में पढ़ता है। उसकी बचपन की गर्लफ्रेंड मृदुला उर्फ मिया (तारा सुतारिया) का दाखिला देहरादून के प्रतिष्ठित कॉलेज सेंट टेरेसा में हो जाता है। मृदुला के साथ-साथ रहने के लिए रोहन भी सेंट टेरेसा में जाना चाहता है। संयोग से उसे स्कॉलरशिप मिल जाती है और वह सेंट टेरेसा पहुंच जाता है। वहां उसकी मुलाकात नकचढ़ी श्रेया (अनन्या पांडे) से होती है, जो कॉलेज के एक अमीर ट्रस्टी की बेटी है। वह डांस में बहुत रुचि रखती है और लंदन कॉलेज ऑफ डांस में दाखिला लेना चाहती है। सेंट टेरेसा कॉलेज में उसका भाई मानव (आदित्य सील) भी पढ़ता है, जो लगातार दो साल से ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ है।
सेंट टेरेसा में आकर मृदुला पूरी तरह बदल जाती है। उसका सपना है बड़ा नाम और दाम कमाना। अपनी इस मंजिल को पाने के लिए वह अमीर मानव के साथ फ्लर्ट करने लगती है। इस बात को लेकर रोहन और मानव में झगड़ा होता है और मानव के अमीर बाप के प्रभाव की वजह से रोहन को कॉलेज से निकाल दिया जाता है। वह अपने पुराने कॉलेज पिशोरीमल में लौट आता है। इसके बाद रोहन और मानव के बीच ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ की जंग शुरू होती है। इधर अपने घरवालों के व्यवहार से दुखी श्रेया और प्यार में चोट खाए रोहन के बीच दोस्ती हो जाती है और धीरे-धीरे प्यार में बदलने लगती है...
यह फिल्म भी पिछली फिल्म की तरह प्रेम त्रिकोण पर आधारित है और पृष्ठभूमि भी वैसी ही है। हां, पिछली फिल्म में लड़की एक थी और लड़के दो, इस बार लड़कियां दो हैं और लड़का एक। लेकिन दोनों फिल्मों में सबसे बड़ा फर्क है प्रस्तुतीकरण का। पिछली फिल्म में मनोरंजन था, हिट संगीत था और कलाकारों का ठीकठाक अभिनय भी था। वह फिल्म भावनाओं को जगाती थी, लेकिन इस फिल्म में ये सारी बातें नदारद हैं।
यह फिल्म देख कर लगता है कि कॉलेज पढ़ाई के लिए नहीं होते, स्पोट्र्स, फैशन और फाइट के लिए होते हैं। और कॉलेज का प्रिंसिपल एक टीचर से ज्यादा आरजे जैसा होता है, जैसे समीर सोनी इस फिल्म में लगते हैं। वहीं ‘स्टूडेंड ऑफ द ईयर’ बनने के लिए पढ़ाई की कोई जरूरत नहीं है, बस खेल में माहिर होना काफी है। वह भी ट्रैक एंड फील्ड के सारे मुकाबलों और कबड्डी में भी। साथ ही डांस में मास्टरी भी अपेक्षित है।
फिल्म का सबसे खराब पक्ष इसकी पटकथा है। उसमें कोई दम नहीं है। लेखक अरशद सैयद कहानी को धार देने में असफल रहे हैं। संवादों में भी कोई पंच नहीं है। करण जौहर की जगह इस बार निर्देशन की कुर्सी संभालने वाले पुनीत मल्होत्रा निराश करते हैं। निर्देशक और लेखक को बस यही लगा कि कुछ डांस, कुछ फाइट, कुछ स्पोट्र्स की छौंक लगा दी जाए, तो दर्शक खुश हो जाएंगे। साथ ही, इसमें थोड़ा-सा ‘जो जीता वही सिकंदर’ टाइप कुछ डाल दिया जाए, तो बात और हाई-फाई हो जाएगी। लेकिन वास्तव में ऐसा होता लगता नहीं। वैसे हो सकता है, कुछ युवाओं को ये पसंद भी आ जाए, लेकिन सही कहा जाए, तो फिल्म में ऐसी कोई बात नहीं है, जिसके बारे में विशेष रूप से कुछ अच्छा कहा जा सके। सिनेमेटोग्राफी को छोड़ कर। गीत-संगीत जुबान पर चढ़ने वाला नहीं है। बस एक ‘ये जवानी है दीवानी’ गाना ही अच्छा लगता है, लेकिन है वह भी पुराने गाने का रीमिक्स ही।
अब बात कलाकारों की। इस फिल्म से अभिनेता चंकी पांडे की बेटी अनन्या पांडे और तारा सुतारिया ने अपनी पारी शुरू की है। अनन्या ठीकठाक हैं, लेकिन उन्हें अपने आप को साबित करने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। तारा सुतारिया भी ज्यादा प्रभावित नहीं करतीं। उनका अभिनय बहुत सपाट लगता है। और टाइगर श्रॉफ ने तो शायद यही सोच रखा है कि बेहतरीन बॉडी, एक्शन और डांस से ही उनका काम चल जाएगा। अभिनय पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है। लेकिन दर्शक भी कब तक एक जैसा यांत्रिक डांस और एक्शन पचा पाएंगे, यह एक बड़ा सवाल है। आदित्य सील ठीकठाक हैं। गुल पनाग छोटे-छोटे कपड़ों में एक स्पोट्र्स कोच कम और हमेशा स्विमिंग के लिए तैयार एक ग्लैमरस लेडी ज्यादा लगती हैं। समीर सोनी भी प्रिंसिपल नहीं, रेडियो जॉकी की तरह पेश आते हैं। पूरी फिल्म में बस मनोज पाहवा (पिशोरीमल कॉलेज के कोच) ही हैं, जो अच्छे लगते हैं। हालांकि उनकी भूमिका बहुत छोटी है।
अगर कहा जाए कि इस बार ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ फेल हो गया, तो गलत नहीं होगा।
(हिन्दुस्तान में 11 मई 2019 को प्रकाशित)
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