फिल्म ‘पीएम नरेंद्र मोदी’ की समीक्षा

मोदी के कद के आसपास भी नहीं ये फिल्म

राजीव रंजन

निर्देशक: ओमंग कुमार

कलाकार: विवेक ओबेरॉयमनोज जोशीप्रशांत नारायणनबोमन ईरानीजरीना वहाब, अंजन श्रीवास्तव

2 स्टार (दो स्टार)

जब किसी प्रसिद्ध और लोकप्रिय हस्ती के जीवन पर कोई फिल्म बनती हैतो निर्मातानिर्देशक और लेखक की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है। और जब बात नरेंद्र मोदी जैसे बेहद लोकप्रिय राजनेता की होतो जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ जाती है। लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी’ बहुत जल्दबाजी में बनाई गई है और ये जल्दबाजी फिल्म को देखते वक्त स्पष्ट रूप से नजर आती है। ऐसा लगता है कि जिस तरह भारतीय जनता पार्टी के कई सांसद नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़े और जीतेउसी तरह लगता है कि फिल्म के निर्माता और निर्देशक ने भी नरेंद्र मोदी के नाम के आसरे ही फिल्म बना डाली है।
फिल्म की शुरुआत नरेंद्र मोदी के बचपन से होती है और प्रधानमंत्री के रूप उनके शपथ ग्रहण से इसका समापन होता है। फिल्म के ज्यादातर हिस्से में उनके राजनीतिक जीवन का चित्रण ही है कि किस प्रकार वे भाजपा के एक आम कार्यकर्ता से देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचे।

इस फिल्म में उनके राजनीतिक उदय के क्रम में पार्टी की अंदरूनी राजनीति की भी झलक पेश की गई है। साथ हीगुजरात दंगों के दौरान उनकी भूमिका पर उठने वाले सवालों का उत्तर देने की कोशिश की गई है। बीते पांच सालों में उन पर उद्योगपतियों को संरक्षण देने के आरोप विपक्ष द्वारा खूब प्रचारित किए गए। फिल्म इस नैरेटिव को ध्वस्त करने के लिए इस काउंटर नैरेटिव का सहारा लेती है कि जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थेतब किस तरह एक उद्योगपतितत्कालीन केंद्र सरकार और मीडियाकर्मी अपने स्वार्थ के लिए उनकी छवि खराब करने में जुटे थे। एक तरह से देखेंतो फिल्म की केंद्रीय विषय-वस्तु यही है। हालांकि इसमें नाटकीयता बहुत ज्यादा  परोस दी गई हैजो फिल्म के प्रभाव को हल्का करती है।
इसके अलावा फिल्म में किरदारों को ठीक से गढ़ा भी नहीं गया है। ऐसा लगता है कि फिल्म की स्क्रिप्ट बहुत हल्के तरीके से लिखी गई है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी को सहवाग-तेंदुलकर’ तथा जय-वीरू’ की तरह बताया गया हैलेकिन अमित शाह का चरित्र फिल्म में कहीं भी उभर कर नहीं आ पाता। फिल्म की गति ठीक है। फिल्म का दूसरा हाफ पहले हाफ के मुकाबले बेहतर है। ओमंग कुमार का निर्देशन बहुत साधारण है।
विवेक ओबेरॉय अच्छे अभिनेता हैंलेकिन इस किरदार में वह जंचे नहीं हैं। उनकी भाव-भंगिमाएं कहीं भी नरेंद्र मोदी जैसी नहीं लगतीं। तैयारी की कमी नजर आती है। दूसरे हाफ में कुछ झलक मिलती हैलेकिन उसमें भी उनका कममेकअप का योगदान ज्यादा है। अमित शाह के रूप में मनोज जोशी का काम ठीक हैलेकिन कमजोर स्क्रिप्ट की वजह से वह ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ पाते। बोमन ईरानी रतन टाटा के रूप में ठीक लगे हैं। मां के रूप में जरीना बहाव ठीक हैं और प्रशांत नारायणन का अभिनय भी ठीक है। दर्शन कुमार ने मोदी विरोधी पत्रकार की भूमिका में ठीक काम किया है। बाकी कलाकारों काम भी साधारण ही है। इसमें उनकी गलमी कमलेखन और निर्देशन की कमी ज्यादा है। फिल्म नरेंद्र मोदी के अथक परिश्रम के बारे में तो बताती हैलेकिन इसके निर्माण में परिश्रम का अभाव साफ-साफ नजर आता हैवरना यह एक अच्छी फिल्म हो सकती थी। इस फिल्म में नरेंद्र मोदी का संघर्ष उभर कर नहीं आ पाया है। 
(हिन्दुस्तान में 25 मई 2019 को प्रकाशित)

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वीणा-वादिनी वर दे

सेठ गोविंद दास: हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने के बड़े पैरोकार

राही मासूम रजा की कविता 'वसीयत'