फिल्म ‘दे दे प्यार दे’ की समीक्षा

हंसी की छौंक के साथ बेमेल उम्र के प्यार की उलझनें

राजीव रंजन

निर्देशक: आकिव अली

कलाकार: अजय देवगनरकुल प्रीत सिंहतब्बूजावेद जाफरीजिमी शेरगिलकुमुद मिश्राआलोक नाथमधुमालती कपूरसन्नी सिंहभाविन भानुशाली,  इनायतराजवीर सिंह

2.5 Star

बड़ी उम्र का आदमी और उसकी बेटी की उम्र की लड़कीदोनों के बीच प्यारफिर उम्र के अंतर की वजह से  पैदा होने वाली जटिलताएं... यह कोई नया विषय नहीं है। आधी सदी से भी ज्यादा समय पहले भगवतीचरण वर्मा ने अपने उपन्यास रेखा’ में एक ऐसे ही रिश्ते की जटिलताओं को पाठकों को सामने पेश किया था। इस विषय पर पिछले दशक में चीनी कम’ जैसी फिल्में भी बनी। दे दे प्यार दे’ भी इसी विषय पर आधारित एक फिल्म हैलेकिन फर्क यह है कि यह बात को थोड़े कॉमिक अंदाज में पेश करती है।
प्यार का पंचनामा’ और सोनू के टीटू की स्वीटी’ जैसी मनोरंजक कॉमेडी फिल्मों के निर्देशक लव रंजन इसके निर्माता हैंतो उनकी इन फिल्मों के एडिटर आकिव अली इसके निर्देशक। लिहाजा उनकी पिछली फिल्मों का फ्लेवर भी इसमें दिखना स्वाभाविक है।

50 साल का आशीष एक अमीर आदमी हैजो लंदन में अकेले रहता है। वह नई कंपनियों में पैसे निवेश कर मुनाफा कमाता है। 26 साल की आयशा (रकुल प्रीत सिंह) खुले व्यवहार वाली लड़की है और बार में काम करती है। दोनों की मुलाकात आशीष के एक दोस्त की बैचलर्स पार्टी के दौरान होती है। धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगते हैं और शादी का फैसला करते हैं। आशीष अपने परिवार वालों से आयशा को मिलाने के लिए कुल्लू लेकर आता है।
आशीष का पूरा परिवार उससे नाराज हैखासकर बेटी इशिका (इनायत) तो उसे देखना भी नहीं चाहती,  क्योंकि वह उसकी मां मंजू (तब्बू) और छोटे भाई ईशान (भाविन भानूशाली) को छोड़ कर चला गया था। कुल्लू आने के बाद आशीषउसका परिवार और आयशा बड़ी अजीब स्थिति में फंस जाते हैं...

बहुत सारे लोग अपने निजी जीवन में भी इस तरह के मसलों से रूबरू होते होंगेहालांकि फिल्म में इसे जिस तरह से डील किया गया हैवैसा यथार्थ में शायद  ही होता होगा। खासकर भारतीय मध्य-वर्ग के लिहाज से देखेंतो वह फिल्म में इन बातों को तो पचा लेगालेकिन व्यवहार में शायद ही स्वीकार कर पाए। मसलन कैसी भी स्थिति होएक पति से राखी नहीं बंधवा सकता या खुद को अपने बच्चों का मामा (मजाक या मजबूरी में ही सही) कहलाना पसंद नहीं करेगा।
बहरहालमूल रूप से यह एक कॉमेडी फिल्म हैलेकिन इसमें कुछ जगहों पर गंभीर बात भी कहने की कोशिश की गई है। इमोशन और प्यार को भी पर्याप्त जगह दी गई है। फिल्म की स्क्रिप्ट अच्छी है और उस पर मेहनत की गई है। संवाद भी अच्छे हैं और फिल्म के मूड और विषय का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि कई संवाद द्विअर्थी भी  हैं। लोकेशन भी अच्छे हैं और सिनेमेटोग्राफी भी। फिल्म की लंबाई भी ज्यादा नहीं हैइसलिए बोर नहीं करती। बतौर निर्देशक आकिव अली का काम ठीक है। वह फिल्म को मनोरंजक अंदाज में पेश करने में सफल रहे हैं। फिल्म का गीत-संगीत भी ठीक है।

कलाकारों का अभिनय फिल्म का एक अच्छा पक्ष है। अजय देवगन ने कम से कम इस बार कॉमेडी में निराश नहीं किया है। भावनात्मक दृश्यों के तो खैर उस्ताद हैं ही। तब्बू हमेशा की तरह इस फिल्म में भी अच्छी लगी हैं। अपने किरदार के हर पहलू को उन्होंने प्रभावशाली तरीके से उभारा है। रकुलप्रीत सिंह ने भी अपने किरदार के साथ न्याय किया है। वह सुंदर भी लगती हैं और ऊर्जावान भी। अजय देवगन के मनोचिकित्सक दोस्त के रूप में जावेद जाफरी गुदगुदाते हैंहालांकि उनकी भूमिका छोटी है। जिमी शेरगिल भी छोटे रोल में हैंलेकिन जिस भी दृश्य में आते हैंउसे मजेदार बना देते हैं। आलोक नाथ और मधुमालती कपूर सोनू के टीटू की स्वीटी’ वाले अंदाज में ही यहां हैं। कुमुद मिश्रा भी छोटे-से रोल में हैंलेकिन असरदार हैं। इनायत ने एक नाराज बेटी के किरदार को पूरे तेवर के साथ निभाया है। वहीं भाविन अपनी मासूमियत से सहज हास्य पैदा करने में सफल रहे हैं।
कुल मिलाकर इस फिल्म के बारे में ये कहा जा सकता है कि इसमें ज्यादा कुछ ढूंढने की कोशिश नहीं करेंगेतो कुछ मिल सकता है। इस पर कुछ समय और पैसे खर्च कर सकते हैं। आपको निराश नहीं करेगी।

(17 मई 2019 को हिंदुस्तान में प्रकाशित)

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