फिल्म ‘दे दे प्यार दे’ की समीक्षा
हंसी की छौंक के साथ बेमेल उम्र के प्यार की उलझनें
राजीव रंजन
निर्देशक: आकिव अली
कलाकार: अजय देवगन, रकुल प्रीत सिंह, तब्बू, जावेद जाफरी, जिमी शेरगिल, कुमुद मिश्रा, आलोक नाथ, मधुमालती कपूर, सन्नी सिंह, भाविन भानुशाली, इनायत, राजवीर सिंह
2.5 Star
बड़ी उम्र का आदमी और उसकी बेटी की उम्र की लड़की, दोनों के बीच प्यार, फिर उम्र के अंतर की वजह से पैदा होने वाली जटिलताएं... यह कोई नया विषय नहीं है। आधी सदी से भी ज्यादा समय पहले भगवतीचरण वर्मा ने अपने उपन्यास ‘रेखा’ में एक ऐसे ही रिश्ते की जटिलताओं को पाठकों को सामने पेश किया था। इस विषय पर पिछले दशक में ‘चीनी कम’ जैसी फिल्में भी बनी। ‘दे दे प्यार दे’ भी इसी विषय पर आधारित एक फिल्म है, लेकिन फर्क यह है कि यह बात को थोड़े कॉमिक अंदाज में पेश करती है।
‘प्यार का पंचनामा’ और ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ जैसी मनोरंजक कॉमेडी फिल्मों के निर्देशक लव रंजन इसके निर्माता हैं, तो उनकी इन फिल्मों के एडिटर आकिव अली इसके निर्देशक। लिहाजा उनकी पिछली फिल्मों का फ्लेवर भी इसमें दिखना स्वाभाविक है।
आशीष का पूरा परिवार उससे नाराज है, खासकर बेटी इशिका (इनायत) तो उसे देखना भी नहीं चाहती, क्योंकि वह उसकी मां मंजू (तब्बू) और छोटे भाई ईशान (भाविन भानूशाली) को छोड़ कर चला गया था। कुल्लू आने के बाद आशीष, उसका परिवार और आयशा बड़ी अजीब स्थिति में फंस जाते हैं...
बहुत सारे लोग अपने निजी जीवन में भी इस तरह के मसलों से रूबरू होते होंगे, हालांकि फिल्म में इसे जिस तरह से डील किया गया है, वैसा यथार्थ में शायद ही होता होगा। खासकर भारतीय मध्य-वर्ग के लिहाज से देखें, तो वह फिल्म में इन बातों को तो पचा लेगा, लेकिन व्यवहार में शायद ही स्वीकार कर पाए। मसलन कैसी भी स्थिति हो, एक पति से राखी नहीं बंधवा सकता या खुद को अपने बच्चों का मामा (मजाक या मजबूरी में ही सही) कहलाना पसंद नहीं करेगा।
बहरहाल, मूल रूप से यह एक कॉमेडी फिल्म है, लेकिन इसमें कुछ जगहों पर गंभीर बात भी कहने की कोशिश की गई है। इमोशन और प्यार को भी पर्याप्त जगह दी गई है। फिल्म की स्क्रिप्ट अच्छी है और उस पर मेहनत की गई है। संवाद भी अच्छे हैं और फिल्म के मूड और विषय का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि कई संवाद द्विअर्थी भी हैं। लोकेशन भी अच्छे हैं और सिनेमेटोग्राफी भी। फिल्म की लंबाई भी ज्यादा नहीं है, इसलिए बोर नहीं करती। बतौर निर्देशक आकिव अली का काम ठीक है। वह फिल्म को मनोरंजक अंदाज में पेश करने में सफल रहे हैं। फिल्म का गीत-संगीत भी ठीक है।
कलाकारों का अभिनय फिल्म का एक अच्छा पक्ष है। अजय देवगन ने कम से कम इस बार कॉमेडी में निराश नहीं किया है। भावनात्मक दृश्यों के तो खैर उस्ताद हैं ही। तब्बू हमेशा की तरह इस फिल्म में भी अच्छी लगी हैं। अपने किरदार के हर पहलू को उन्होंने प्रभावशाली तरीके से उभारा है। रकुलप्रीत सिंह ने भी अपने किरदार के साथ न्याय किया है। वह सुंदर भी लगती हैं और ऊर्जावान भी। अजय देवगन के मनोचिकित्सक दोस्त के रूप में जावेद जाफरी गुदगुदाते हैं, हालांकि उनकी भूमिका छोटी है। जिमी शेरगिल भी छोटे रोल में हैं, लेकिन जिस भी दृश्य में आते हैं, उसे मजेदार बना देते हैं। आलोक नाथ और मधुमालती कपूर ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ वाले अंदाज में ही यहां हैं। कुमुद मिश्रा भी छोटे-से रोल में हैं, लेकिन असरदार हैं। इनायत ने एक नाराज बेटी के किरदार को पूरे तेवर के साथ निभाया है। वहीं भाविन अपनी मासूमियत से सहज हास्य पैदा करने में सफल रहे हैं।
कुल मिलाकर इस फिल्म के बारे में ये कहा जा सकता है कि इसमें ज्यादा कुछ ढूंढने की कोशिश नहीं करेंगे, तो कुछ मिल सकता है। इस पर कुछ समय और पैसे खर्च कर सकते हैं। आपको निराश नहीं करेगी।
(17 मई 2019 को हिंदुस्तान में प्रकाशित)
टिप्पणियाँ