फिल्म ‘मलाल’ की समीक्षा

मासूमियत भरी ठेठ बॉलीवुडिया प्रेमकथा

राजीव रंजन

निर्देशक: मंगेश हडावले

कलाकार: मीजान जाफरी, शर्मिन सेगल, समीर धर्माधिकारी

ढाई स्टार (2.5 स्टार)

ढेरों बॉलीवुड फिल्मों में आपने ऐसी प्रेम कहानियां देखी होंगी कि लड़का टपोरी हैबदमिजाज है और लड़की बेहद संजीदा हैसंस्कारी है। शुरू में दोनों में तकरार होती है और धीरे-धीरे उनमें प्यार हो जाता है। लड़का अपने प्यार की खातिर सुधर जाता है और फिर इस रिश्ते के बीच में लड़की के परिवार वाले आ जाते हैं। लड़की चाह कर भी परिवार के खिलाफ नहीं जा पाती है और लड़का कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता है। संजय लीला भंसाली और भूषण कुमार द्वारा निर्मित मलाल’ भी ऐसी ही प्रेम कहानी हैजिससे अभिनेता जावेद जाफरी के बेटे मीजान जाफरी और भंसाली की भांजी शर्मिन सेगल ने बॉलीवुड में अपनी पारी शुरू की है। हालांकि मीजान पहले भंसाली की फिल्मों में रणवीर सिंह के बॉडी डबल’ (डुप्लिकेट) के रूप में काम कर चुके हैंलेकिन बतौर अभिनेता उनकी यह पहली फिल्म है। यह फिल्म 2004 में आई तमिल फिल्म ‘7जी रेनबो कॉलोनी’ का रीमेक है।
हिंदी रीमेक में फिल्म की कहानी को कॉलोनी की बजाय मुंबई की एक चॉल में दिखाया गया है। फिल्म में दिखाए गए हम दिल दे चुके सनम’ का पोस्टर यह बताता है कि इसका समय 1990 के दशक के आखिरी वर्षों का हैजब मोबाइल फोन का चलन नहीं था और आशिक सड़क’ फिल्म के गाने सुनना पसंद करते थे।

शिवा (मीजान जाफरी) मुंबई की एक चाल में रहता है। वह टपोरी हैसिगरेट और शराब पीना उसके लिए मामूली बातें हैं। मारपीट भी उसका रोजमर्रा का काम है। उसकी अपने बाप से नहीं बनती। आस्था (शर्मिन सेगल) एक संपन्न परिवार की लड़की है। उसके पिता शेयर मार्केट से जुड़े हैंलेकिन काम में जबर्दस्त घाटा होने की वजह से उन्हें चाल में रहने आना पड़ता हैजहां शिवा भी रहता है। शिवा शुरू में आस्था को बिल्कुल पसंद नहीं करता और उससे भिड़ता रहता है। लेकिन फिर उसे आस्था से प्यार हो जाता है। वह उसके  पीछे पड़ जाता है। आस्था भी धीरे-धीरे उसे चाहने लगती है।
शिवा अपने प्यार की खातिर सारे बुरे काम छोड़ देता है। आस्था के कहने पर स्टॉक मार्केट के  बड़े कारोबारी के यहां ऑफिस बॉय’ की नौकरी भी कर लेता है। लेकिन दिक्कत यह है कि आस्था की शादी उसके पिता ने एक अमीर लड़के से तय कर दी है। जब आस्था के मां-बाप को उसके और शिवा के रिश्ते के बारे में पता चलता हैतो वे चाल छोड़ कर कहीं और चले जाते हैं। शिवा वहां भी पहुंच जाता है। आस्था के पिता शिवा से कहते हैं कि उनकी बेटी उससे प्यार नहीं करती। लेकिन आस्था यह स्वीकार करती है कि वह शिवा से प्यार करती हैलेकिन शादी नहीं कर सकतीक्योंकि उसके पिता की जिंदगी और छोटे भाई के भविष्य का सवाल है। आस्था की सगाई हो जाती है और इस दुख में शिवा टूट जाता है। शादी से एक महीने पहले एक दिन आस्था अचानक शिवा से मिलने अपनी एक सहेली के घर जाती है। फिर कुछ ऐसा होता है कि  सब कुछ बदल जाता है...
मलाल’ एक बहुत रुटीन प्रेम कहानी हैलेकिन निर्देशक मंगेश हडावले ने इसे बहुत रोचक तरीके  से पेश किया है। वह इस कहानी में प्यार की गहनता को दिखाने में कामयाब रहे हैं। फिल्म में कुछ भी खास नहीं हैसिवाय क्लाईमैक्स के एक दृश्य को छोड़ करलेकिन फिर भी यह फिल्म उबाऊ नहीं लगती। इसमें संजय लीला भंसाली की फिल्मों जैसी भव्यता नहीं हैलेकिन प्यार की वो सघनता दिखती हैजो राम-लीला’ में थी। और इसका शीर्षक भी शायद उसी फिल्म के गाने ये लाल इश्कये मलाल इश्क’ से लिया गया है। फिल्म के किरदारों को गढ़ने में मेहनत की गई है। फिल्म में कई जगह सहज हास्य गुदगुदाता है। फिल्म का संगीत अच्छा है। दो-तीन गाने मधुर लगते हैं और जुबान पर चढ़ने लायक हैं। बैकग्राउंड म्यूजिक भी अच्छा है। खासकरजब आस्था अपनी सहेली के घर शिवा से मिलने जाती हैउस दृश्य में बैकग्राउंड में बज रही बांसुरी की धुन बहुत कर्णप्रिय है।
मीजान जाफरी और शर्मिन सेगल दोनों अपनी पहली फिल्म में ही प्रभावित करते हैं। मीजान का अभिनय अच्छा है। उनकी आवाज और संवाद अदायगी भी अच्छी है। साथ हीकॉमेडी टाइमिंग भी अच्छी है और जो थोड़े-बहुत डांस स्टेप इस फिल्म में उन्होंने किए हैंउससे लगता है कि  उनमें भी अपने पिता की तरह डांस का हुनर है। शर्मिन सेगल भी संभावनाएं जगाती हैं। उनकी आवाज सारा अली खान से काफी मिलती-जुलती है।
कुल मिलाकररुटीन कहानी होने के बावजूद यह फिल्म निराश नहीं करती। ठेठ बॉलीवुडिया प्रेम कहानियों से कोई दुराव नहीं हैतो इसे देख सकते हैं। देखने का बाद आप अभिभूत भले न होंलेकिन मलाल भी नहीं होगा।
(हिन्दुस्तान में 6 जुलाई 2019 को संपादित अंश प्रकाशित)

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