फिल्म ‘साहो’ की समीक्षा

लाइटकैमराएक्शनऔर... बस प्रभास

राजीव रंजन

लेखक और निर्देशक : सुजीत

कलाकार: प्रभासश्रद्धा कपूरनील नितिन मुकेशजैकी श्रॉफचंकी पांडेअरुण विजयटीनू आनंदमंदिरा बेदीमहेश मांजरेकर

दो स्टार (2 स्टार)

आत्मविश्वास बहुत बड़ी चीज है। और कोई गुण भले ही कम होलेकिन आत्मविश्वास होतो काम चल जाता है। साहो’ देखने के बाद तो इस बात में विश्वास और बढ़ जाता है। 350 करोड़ रुपये के बजट और करीब तीन घंटे वाली फिल्म इस तरह की कहानी (?) के साथ बनाने के लिए वाकई बहुत आत्मविश्वास और हिम्मत चाहिए।
एक शहर है वाजीजो देखने में अबूधाबी जैसा लगता है। यहां एक सिंडीकेट हैजो अवैध कामों में लिप्त है। उसका मुखिया है रॉय (जैकी श्रॉफ)। उससे पहले वाजी में पृथ्वीराज (टीनू आनंद) का सिक्का चलता था। एक दिन वह अपने बेटे देवराज (चंकी पांडे) की जगह रॉय को अपनी कुर्सी दे देता है। रॉय अवैध धंधे छोड़ भारत में एक हाइड्रोइलेक्ट्रिकल परियोजना लगाना चाहता है। वह मुंबई पहुंचता हैलेकिन वहां रोड एक्सीडेंट के बहाने उसकी हत्या कर दी जाती है।
इधर मुंबई में हजारों करोड़ रुपये की चोरियां हो रही हैंलेकिन चोर पकड़ा नहीं जा रहा है। इसके लिए एक काबिल अंडरकवर अफसर अशोक चक्रवर्ती (प्रभास) को लगाया जाता है। उसकी टीम में एक हैकर डेविड (मुरली शर्मा)गोस्वामी और क्राइम ब्रांच की ऑफिसर अमृता नायर (श्रद्धा कपूर) भी हैं। केस की पड़ताल करते-करते अशोक और अमृता को एक-दूसरे से प्यार हो जाता है। खैरअशोक अपनी टीम के साथ चोर (नील नितिन मुकेश) का पता लगा लेता हैं। रॉय की मौत के बाद देवराज उसकी कुर्सी पर बैठना चाहता है। देवराज की महत्वाकांक्षा को पूरा करने में प्रिंस (महेश मांजरेकर) उसकी मदद करता हैलेकिन तभी रॉय का बेटा (अरुण विजय) आ जाता है। इन सबके बीच हजारों करोड़ रुपये की संपत्ति को पाने के लिए चूहे-बिल्ली का खेल शुरू होता है...
साहो’ को लेकर उत्तर-दक्षिण हर क्षेत्र के दर्शकों में भारी उत्सुकता थी। माना जा रहा था कि बाहुबली’ के बाद प्रभास एक बार फिर बड़ा धमाका करेंगे। दर्शकों को कोई अनूठी चीज देखने को मिलेगी... लेकिन फिल्म देखने के बाद कभी लगता है कि यह धूम’ का थोड़ा अपडेटेड संस्करण हैतो कभी लगता है कि यह रेस 3’ का अपग्रेडेड वर्जन है। फिल्म में कहानी के नाम पर इतने उलझाव हैं कि उसे समझ पाने के लिए विशेष प्रतिभा चाहिए। कई चीजें इतनी बेवजह हैं कि उनका नहीं होना फिल्म की सेहत के लिए बेहतर होता। फिल्म की पटकथा लचर है। फिल्म का सबसे कमजोर पक्ष। पटकथा में एकाध छेद होंतो काम चल जाता हैलेकिन इसमें इतने छेद हैं कि दबंग चुलबुल पांडे याद आ जाते हैं- इतने छेद करूंगा कि कन्फ्यूज हो जाओगे...
लेखक व निर्देशक सुजीत ने कहानी के नाम पर ऐसी-ऐसी चीजें परोसी हैं कि उनमें से ज्यादातर पचने वाली नहीं है। संवाद भी ऐसे नहींजिन्हें याद रखा जा सके। एक तो फिल्म ऐसे ही बहुत लंबी हैऊपर से गाने आकर उसे और लंबा कर देते हैंजिसकी कोई जरूरत नहीं थी। कई बार ऐसा लगता है कि फिल्म अब खत्म होगीलेकिन वह फिर आगे खिसक जाती है। आखिरी सीन देख कर ऐसा लगता है कि निर्देशक ओर कुछ कहना चाहते हैं... हो सकता हैउसे बताने के लिए वह भविष्य में तीन घंटे और लें। अगर फिल्म की लंबाई कम होतीतो शायद यह और बेहतर हो सकती थी। हां फिल्म में कई दृश्य बहुत सुंदर हैं। सुजीत न लेखक के रूप में छाप छोड़ पाए हैंन निर्देशक  के रूप में। हांएक्शन निर्देशकों केनी बेट्स और पेंग झांग का काम बहुत शानदार है। सच कहिएतो फिल्म में असली काम एक्शन निर्देशकों का ही है। ग्राफिक्स भी बेहतरीन हैं। बोले तो एक्शन और ग्राफिक्स ही इस फिल्म के तारणहार हैं।
यह फिल्म प्रभास को केंद्र में रख कर बनाई गई है और वे अपनी भूमिका में खरे उतरे हैं। उनका एक्शन शानदार और संवाद अदायगी बाहुबली से अलगथोड़ी ठहरी ठहरी-सी और थोड़ी गीतात्मक। श्रद्धा कपूर आकर्षक लगी हैंलेकिन उनके किरदार को ठीक से गढ़ा नहीं गया है। वो पुलिस ऑफिसर हैं और उन्हें खुद अपनी सुरक्षा के लिए बार-बार साहो पर निर्भर होना पड़ता है। मुख्य खलनायक के रूप में चंकी पांडे का काम अच्छा है। मुरली शर्मा ने काफी अच्छा काम किया है। अरुण विजय भी ठीक हैं। जैकी श्रॉफ की भूमिका छोटी है। इन दिनों वे पिता की छोटी भूमिकाओं में खूब दिख रहे हैंजिनमें करने के लिए कुछ खास नहीं रहता। बाकी कलाकार भी ठीक हैं।
इस फिल्म में अगर कुछ हैतो प्रभासएक्शन और लार्जर दैन लाइफ’ प्रस्तुति। अगर आप आंख मूंद कर एक्शन पसंद करते हैंकारों को हवा में उड़ते देख रोमांचित होते हैं और प्रभास के प्रशंसक हैंतो आपको यह फिल्म अच्छी लगेगी। लेकिन आप एक अच्छी कहानीअच्छा अभिनय देखना चाहते हैंतो यह फिल्म आपके लिए नहीं है। बाहुबली’ वाले प्रभास के प्रशंसकों को इस फिल्म से निराशा होगी। भोजपुरी में एक विवाह गीत है- हथिया हथिया शोर कइले गदहो ना ले अइले रे...’, ‘साहो’ इस गीत का सटीक फिल्मी उदाहरण है।

(हिन्दुस्तान में 31 अगस्त, 2019 को संपादित अंश प्रकाशित)

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