फिल्म ‘उजड़ा चमन’ की समीक्षा

ठीक से सींचा नहीं चमन को
राजीव रंजन

निर्देशक : अभिषेक पाठक

कलाकार: सन्नी सिंह, मानवी गगरू, शारिब हाशमी, सौरभ शुक्ला, ग्रुशा कपूर, अतुल कुमार, गगन अरोड़ा, मनोज बख्शी, करिश्मा शर्मा, 

दो स्टार

इसमें कोई शक नहीं कि हमारे समाज में शारीरिक सुंदरता को लेकर एक अजीब तरह का ऑब्सेशन है। अगर एक आम आदमी का रूप-रंग मद्धम है, तो उसको कमतर समझा जाता है। अपने को स्वीकार्य बनाने के लिए उस शख्स को विशेष प्रयत्न करने पड़ते हैं। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति जब युवावस्था में ही गंजा हो जाता है, तो लोग उसका मजाक उड़ाते हैं। उसके शादी-ब्याह में भी समस्याएं पैदा होने लगती हैं। दुर्भाग्य की बात है कि वह शख्स, जो उपेक्षा का शिकार है, खुद भी समाज के पैमाने से ही दूसरों को देखता है।

अभिषेक पाठक द्वारा निर्देशित ‘उजड़ा चमन’ इसी थीम पर आधारित है। यह एक ऐसे युवक की कहानी है, जो  युवावस्था में गंजा हो जाने की वजह से सामाजिक अस्वीकृति को झेल रहा है। 30 साल का चमन कोहली (सन्नी सिंह) दिल्ली के हंसराज कॉलेज में हिंदी का लेक्चरर है। उसके सारे दोस्तों की शादी हो चुकी है, लेकिन गंजेपन की वजह से उसकी न तो शादी हो पा रही है और न कोई गर्लफ्रेंड मिल पा रही है। वहीं उसका छोटा भाई गोल्डी (गगन अरोड़ा) झट से गर्लफ्रेंड बना लेता है। एक गुरुजी (सौरभ शुक्ला) चमन को बताते हैं कि अगर 31 वर्ष की उम्र तक उसकी शादी नहीं होगी, तो वह जीवन भर कुंआरा ही रह जाएगा। इससे वह और परेशान हो जाता है। उसके पिता (अतुल कुमार) और मां (ग्रुशा कपूर) भी इस बात को लेकर परेशान हैं। चमन अपने कॉलेज की महिला लेक्चरर एकता (ऐश्वर्या सखूजा) से दोस्ती गांठने की कोशिश करता है, पर निराशा हाथ लगती है। एक फस्र्ट ईयर की छात्रा आइना (करिश्मा शर्मा) से भी मेल-जोल बढ़ाता है, पर वहां कहानी कुछ और निकलती है। लड़की को पाने के लिए अंतत: वह सोशल नेटवर्किंग साइट ‘टिंडर’ जॉइन करता है। वहां उसकी चैट अप्सरा (मानवी गगरु) से होती है। दोनों मिलते हैं, लेकिन अप्सरा ओवरवेट है, इसलिए चमन को वह पसंद नहीं। वहीं चमन गंजा है, इसलिए अप्सरा को पसंद नहीं आता। दोनों एक-दूसरे से पीछा छुड़ा कर चल देते हैं। लेकिन हालात कुछ ऐसे बनते हैं कि बात दोनों की शादी तक पहुंच जाती है। सगाई के दिन चमन अपने दिल की बात अप्सरा को बता देता है और अप्सरा शादी से इनकार देती है...
‘दिलों की बात करता है जमाना/ लेकिन मोहब्बत आज भी चेहरे से शुरू होती है।’ चमन के कॉलेज के चपरासी राज (शारिब हाशमी) द्वारा बोला गया फिल्म का यह संवाद ही फिल्म का केंद्रीय विषय है। निश्चित रूप से यह एक अच्छा विषय है। लेकिन अच्छे विषय को एक अच्छी कहानी और अच्छी स्क्रिप्ट की भी जरूरत होती है। साथ ही, उसे ठीक से तानने के लिए एक अच्छे निर्देशक की भी। दुर्भाग्य से ‘उजड़ा चमन’ को इनमें से कुछ भी नहीं मिल पाया है।

पटकथा में कई खामियां हैं। यह ठीक है कि लोग गंजेपन का मजाक उड़ाते हैं, लेकिन ऐसा भी नहीं है क्लास में या कैंटीन में छात्र खुलेआम अपने टीचर के गंजेपन का मजाक उड़ाते हैं। न ही सारा शहर इस ताक में बैठा रहता है कि कब कोई गंजा व्यक्ति दिखे और उन्हें उपहास करने का मौका मिले। न ही कॉलेज का प्रिंसिपल ऐसा होता है कि एक हजार रुपये के लिए किसी टीचर का मजाक उड़वाए। यह एक कॉमेडी फिल्म है, पर संवादों में चुटीलापन नहीं है। कुछ ही दृश्य हैं, जो थोड़ा गुदगुदा पाने में सफल रहे हैं।
दरअसल, कहानी में प्रभाव पैदा करने के लिए लेखक जब बहुत ज्यादा प्रयास करने लगता है, तो उसकी सहजता नष्ट हो जाती है और वह बनावटी लगने लगती है। ‘उजड़ा चमन’ भी इसी त्रासदी का शिकार हो गई है। लेखक और निर्देशक ने इसमें कॉमेडी पैदा करने के लिए ऐसे प्रयास किए हैं, जो कई बार बेतुके लगने लगते हैं। उन दृश्यों में हंसी तो नहीं आती, हां बोझिलता जरूर पैदा हो जाती है। निर्देशन भी बहुत औसत है, इसलिए फिल्म बिखरी बिखरी लगती है। गीत-संगीत भी बहुत अच्छा नहीं है। हां, फोटोग्राफी अच्छी है। वैसे इस फिल्म के कुछ दृश्य असर डालते हैं और कॉमेडी का आनंद देते हैं।

अभी तक अपने करियर में सहायक भूमिकाओं और हीरो के दोस्त की भूमिकाओं में आए सन्नी सिंह के पास इस फिल्म के हीरो चमन के किरदार में खुद को साबित करने का बढ़िया मौका था, लेकिन वह छाप नहीं छोड़ पाते हैं। उनका अभिनय औसत से ऊपर नहीं उठ पाया है। अप्सरा की भूमिका में मानवी गगरू प्रभावित करती हैं। उनका अभिनय सहज लगता है। चमन के छोटे भाई के किरदार में गगन अरोड़ा जंचते हैं। अतिथि भूमिका में सौरभ शुक्ला भी अच्छे हैं। शारिब हाशमी अच्छे अभिनेता हैं और इस फिल्म में भी उनका काम ठीक है। चमन के पिता के रूप में अतुल कुमार और मां के रूप में ग्रुशा कपूर का काम मजेदार है। बाकी सब कलाकार भी ठीक हैं।
अपरिपक्व प्रस्तुतीकरण की वजह से अच्छे विषय के बावजूद यह एक बेहद साधारण फिल्म बन कर रह गई है। अगर ठीक से सींचा गया होता, तो यह चमन सुंदर होता और ज्यादा महक बिखेरता। फिर भी एक बार इसकी सैर तो की ही जा सकती है। यह फिल्म बहुत निराश भी नहीं करती।

हिन्दुस्तान में 2 नवंबर 2019 को संपादित अंश प्रकाशित

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