फिल्म ‘होटल मुंबई’ की समीक्षा

मुंबई आतंकी हमले का प्रामाणिक चित्रण

राजीव रंजन

निर्देशक : एंथनी मारास

कलाकार: अनुपम खेर, देव पटेल, विपिन शर्मा, नाजनीन बोनियादी, आर्मी हेमर, जेसन इस्साक्स, सुहैल नैयर, अमनदीप सिंह, मनोज मेहरा, दिनेश कुमार, अमृतपाल सिंह, कपिल कुमार नेत्र

तीन स्टार

आज से करीब 11 साल पहले 26 नवंबर, 2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले ने न केवल इस शहर, बल्कि पूरे देश को हिला दिया था। यह भारत पर सबसे बड़ी आतंकी चोट थी, या यूं कहें कि भारत की सुरक्षा को पाकिस्तानी आतंकियों की खुली चुनौती थी। उन्होंने छत्रपति शिवाजी टर्मिनस रेलवे स्टेशन, ताज होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट सहित मुंबई के एक दर्जन स्थानों पर हमले किए, जिनमें 150 से ज्यादा बेकसूर, निहत्थे लोगों की जान गई और 300 से ज्यादा लोग बुरी तरह घायल हुए।
इन हमलों ने भारत की आंतरिक सुरक्षा-व्यवस्था और आतंक से लड़ने की उसकी तैयारियों पर गंभीर सवाल खड़े किए। मुंबई पुलिस इन हमलों से निपटने में सक्षम नहीं थी। न तो वह ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए खासतौर पर प्रशिक्षित थी, न उसके पास वैसे हथियार थे और न ही उपकरण। फिर भी मुंबई पुलिस के जवानों ने जज्बा दिखाया। इस आतंकी हमले पर पूरी तरह काबू तीन दिन बाद पाया जा सका। जब तक दिल्ली से एनएसजी कमांडो और दूसरी सैन्य टीमें पहुंचीं, तब तक काफी नुकसान हो चुका था। इसी आतंकी घटना पर आधारित है ऑस्ट्रेलियाई फिल्मकार एंथनी मारास द्वारा निर्देशित फिल्म ‘होटल मुंबई’। हालांकि इसमें सिर्फ ताज होटल में हुई घटना को आधार बनाया गया है, बाकी स्थानों पर हुए हमलों को बस संदर्भ के रूप में ही दिखाया गया है।
अर्जुन (देव पटेल) ताज होटल में शेफ है और हेमंत ओबेरॉय (अनुपम खेर) हेड शेफ। हेमंत अपने होटल के स्टाफ को कुछ खास मेहमानों- ईरानी मूल की ब्रिटिश नागरिक जारा (नाजनीन बोनियादी), उसका अमेरिकी पति डेविड (आर्मी हेमर) और उनके नवजात बेटा कैमरोन की अगवानी के लिए निर्देश दे रहे हैं। उनके साथ बच्चे की आया शैली (टिडा कोबम हर्वे) भी है। इनके अलावा एक रहस्यमयी रूसी मेहमान वासिली (जेसन इस्साक) भी है। हेमंत अपने स्टाफ को हमेशा ‘गेस्ट इज गॉड’ की भावना का पालन करने को कहते हैं। इन मेहमानों के होटल में पहुंचने के तुरंत बाद होटल पर आतंकी हमला हो जाता है।

होटल का स्टाफ पुलिस सहायता के पहुंचने तक मेहमानों की सुरक्षा के लिए पूरा जी-जान लगा देता है। मुंबई पुलिस के एटीएस प्रमुख घटनास्थल पर पहुंचते हैं, पर आतंकवादियों द्वारा मारे जाते हैं। होटल की सुरक्षा के लिए जो पुलिस दस्ता भेजा गया था, कुछ को छोड़ कर उसके भी सारे जवान मारे जाते हैं। इस अफरातफरी के आलम में जारा, डेविड, उनका बेटा कैमरून और उसकी आया शैली एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं। हेमंत और अर्जुन 50 से ज्यादा मेहमानों को लेकर होटल के विशेष चेंबर में चले जाते हैं, जो होटल का सबसे सुरक्षित स्थान है। आतंकी वहां भी पहुंच जाते हैं...

यह फिल्म निस्संदेह 26/11 की आतंकी घटना को यथार्थवादी तरीके से पेश करती है। इसे देखते हुए उस बर्बर घटना की सिहरन को, खौफ को महसूस  किया जा सकता है। इसका कोई भी दृश्य बनावटी नहीं लगता। ऐसा लगता है कि सब कुछ सहज स्वाभाविक घट रहा है। एंथनी मारास का निर्देशन बहुत बढ़िया है। उन्होंने 26/11 की घटना को किसी खास चश्मे से देखने की बजाय एक निष्पक्ष रिपोर्टर की दृष्टि से देखा है। उन्होंने फिल्म के नैरेटिव को नैरेटिव को गढ़ने के लिए पूरी तरह तथ्यों का सहारा लिया है। प्रस्तुतीकरण में किरदारों की कर्तव्य भावना और मानवीय पहलू को ज्यादा अहमियत दी है।
डेविड के अपने बच्चे को बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालने के दृश्य हों, या जारा के अपने पति को पत्र लिखने वाला दृश्य हो, या होटल के एक मेहमान का डर दूर करने के लिए अर्जुन के अपनी पगड़ी उतारने का दृश्य हो या फिर एक आतंकवादी के अपने मां-बाप से बात करने वाला दृश्य हो, निर्देशक-लेखक के दृष्टिकोण को स्पष्ट कर देते हैं। उन्होंने बहुत सहजता के साथ आतंकवाद के असली चेहरे को पेश किया है। फिल्म की स्क्रिप्ट सधी हुई है। जारा, उसके पति डेविड, शैली और बच्चे की कहानी को केंद्र में रख कर घटनाओं का ताना-बाना बुना गया है। उनके डर, संवेदना को निर्देशक ने बहुत अच्छे से पेश किया है। एक दृश्य में लाइव टीवी रिपोर्टिंग के नुकसानों को भी सटीक तरीके से रेखांकित किया गया है, जब टीवी रिपोर्टिंग की मदद से आतंकवादी होटल में छिपे लोगों तक पहुंच जाते हैं। फिल्म का क्लाइमैक्स बहुत असरदार है। यह भावुक करता है।

फिल्म की सिनेमेटोग्राफी भी शानदार है। इसमें मुंबई भी एक किरदार है और कैमरे ने मुंबई के मिजाज बहुत अच्छे से पकड़ा है, खासकर शुरुआती दृश्य में तो वाकई ऐसा लगता है कि आप मुंबई के किसी इलाके में घूम रहे हों। होटल के अंदर के दृश्यों को भी कैमरे ने पूरी सजीवता के साथ कैद किया है। फिल्म का संपादन भी चुस्त है। हां, फिल्म की गति जरूर थोड़ी धीमी है। कुछेक दृश्यों में यह धीमापान थोड़ा खींचा हुआ लगता है। चूंकि फिल्म केवल ताज वाली घटना पर ही फोकस करती है, लिहाजा मुंबई पुलिस और इस घटना में शहीद हुए पुलिसकर्मियों की कहानी इसमें अनकही रह जाती है।
इस फिल्म की पूरी स्टारकास्ट बहुत अच्छी है। अनुपम खेर बहुत दिनों के बाद एक ऐसे किरदार में आए हैं, जिनमें उनके अभिनय की असली गहराई दिखाई देती है। वह एक ही साथ धीर व शांत प्रबंधक, मेहमानों की सुरक्षा के लिए चिंतित कर्तव्यपारायण व्यक्ति, परिस्थितियों के आगे लाचार इनसान और अपने स्टाफ की परेशानियों को समझने वाले बॉस के रूप में अभिभूत करते हैं। देव पटेल का अभिनय भी बहुत शानदार है। अपने किरदार की हर परत को उन्होंने सूक्ष्मता से पेश किया है। अपने काम, अपनी जिम्मेदारी, अपने धर्म के प्रति एक संवेदनशील व्यक्ति के किरदार को उन्होंने बहुत अच्छे से निभाया है। वह इस फिल्म में बहुत परिपक्व नजर आए हैं। जारा के रूप में नाजनीन बोनियादी मर्म को छूती हैं और उनके पति डेविड के रूप में आर्मी हेमर भी अपने अभिनय से प्रभावित करते हैं। रूसी खुफिया एजेंसी केबीसी के पूर्व अधिकारी वेसिली के रूप में जेस्सन इस्साक्स का अभिनय भी प्रशंसायोग्य है।  आतंकवादी बने कलाकारों- सुहैल नैयर (अब्दुल्ला), अमनदीप सिंह (इमरान), मनोज मेहरा (हुसाम), दिनेश कुमार (राशिद), अमृतपाल सिंह (इस्माइल), कपिल कुमार नेत्र (अजमल) ने भी अपने अपने किरदार को बखूबी पेश किया है। खासकर सुहैल नैयर और अमनदीप सिंह ने अपने किरदारों को बहुत प्रामाणिक तरीके से निभाया है। उनका उर्दू लहजा प्रभावित करता है। वैसे दोनों की भूमिका भी दूसरे आतंकवादी किरदारों के मुकाबले लंबी है। विपिन शर्मा दूसरे कलाकारों ने भी अपना काम बखूबी किया है।

यह सच्ची घटनाओं पर आधारित गंभीर, तथ्यपरक फिल्म है। आप अच्छा सिनेमा पसंद करते हैं, तो इसे जरूर देखें।

(30 नवंबर को ‘हिन्दुस्तान’ में संपादित अंश प्रकाशित)

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