रोमांस और कॉमेडी में पगी बरेली की बर्फी

राजीव रंजन

तीन स्टार

पिछले कुछ सालों में बॉलीवुड ने महानगरों के अलावा छोटे शहरों की कहानियों को भी प्रमुखता देनी शुरू कर दी है। दरअसल छोटे शहर की कहानियां और उनके किरदार एकरसता को तोड़ते हैं और दर्शकों को एक नए रस-रंग से रूबरू कराते हैं, अगर उन्हें ठीक तरीके से पेश किया जाता है तो। ‘बरेली की बर्फी’ भी एक ऐसी ही फिल्म है, जो उत्तर प्रदेश के छोटे शहर की पृष्ठभूमि में कही गई है। फिल्म के नाम से जाहिर ही है कि वह शहर बरेली है, जहां सालों पहले गिरे झुमके को दर्शक अब भी नहीं भूल पाए हैं। बॉलीवुड में बरेली ‘झुमके’ के लिए मशहूर है तो उत्तर भारत में यहां के बने बांस के फर्नीचर काफी मशहूर हैं। इसे बांस-बरेली भी कहते हैं। लेकिन बरेली का बर्फी से ऐसा क्या रिश्ता है, जिसके कारण बरेली को बर्फी से जोड़ कर फिल्म बनाई जाए! इसे जानने के लिए आपको थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा।

‘बरेली की बर्फी’ की कहानी बरेली की एक लड़की बिट्टी मिश्रा (कृति सैनन) की कहानी है, जो वर्जनाओं को नहीं मानती। वह सिगरेट पीती है, बिजली विभाग में नौकरी करती है, ब्रेक डांस करती है और जिन्दगी को खुल कर जीना चाहती है। अपनी सीमाओं में वह बिंदास होकर जीती भी है। उसके पिता नरोत्तम मिश्रा (पंकज त्रिपाठी) को कोई आपत्ति नहीं है। वह बिट्टी से बेटे की तरह व्यवहार करते हैं। हालांकि मधुरभाषी मिश्रा जी के मन में कहीं न कहीं यह बात भी रहती है कि उन्हें इसी समाज के साथ जीना है, इसलिए वे खुल कर उसकी अवहेलना नहीं कर सकते। बिट्टी की मां सुशीला (सीमा पाहवा) एक स्कूल में शिक्षक हैं और उन्हें बिट्टी की ये हरकतें बहुत पसंद नहीं आतीं। मां उसकी शादी के लिए परेशान हैं, पर कोई बिट्टी को कोई पसंद नहीं करता। वह दो बार लड़कों द्वारा रिजेक्ट कर दी जाती है। उसकी मां को लगता है कि बिट्टी की आदतों की वजह से लड़के वाले उसे पसंद नहीं करते। इन सब बातों से दुखी होकर एक दिन बिट्टी घर से भाग जाती है।

रेलवे स्टेशन पर टाइम पास करने के लिए वह एक किताब खरीदती है ‘बरेली की बर्फी’। इस किताब को पढ़ने के बाद उसकी सोच बदल जाती है और वह घर लौट जाती है। इस किताब के लेखक हैं प्रीतम विद्रोही (राजकुमार राव), जिससे बिट्टी बहुत प्रभावित हो जाती है और उनसे मिलने को बेकरार हो जाती है। इस काम में बिट्टी की मदद करता है चिराग दुबे (आयुष्मान खुराना)। चिराग भी बरेली का रहने वाला है और प्यार में एक बार उसका दिल टूट चुका है। बिट्टी से मिलने के बाद वह अपने टूटे दिल को जोड़ने की कोशिश में लग जाता है।

फिल्म की शुरुआत बरेली शहर के विहंगम दृश्य (बर्ड आई व्यू) और प्रसिद्ध गीतकार व पटकथा लेखक जावेद अख्तर द्वारा मिश्रा परिवार के परिचय से होती है। फिल्म की कहानी के सूत्रधार वही हैं। पहला दृश्य मजेदार है। फिल्म के प्रस्तुतीकरण और कहानी में देसी छौंक है, जो अच्छी लगती है। संवादों में देसीपना है। इंटरवल तक लेखक नितेश तिवारी और निर्देशक अश्विनी अय्यर तिवारी ने किरदारों और माहौल को गढ़ने पर ध्यान केंद्र्रित किया है। इंटरवल के बाद उन्होंने कहानी की रफ्तार को बढ़ाया है। इंटरवल के बाद राजकुमार राव अपने रोचक अंदाज से काफी मनोरंजन करते हैं। इंटरवल के बाद कहानी में भी कुछ रोचक मोड़ भी आते हैं। फिल्म की सबसे खास बात है कि यह बांधे रखती है। लेखक और निर्देशक ने कहानी की रोचकता को बनाए रखा है, हालांकि फिल्म का क्लाइमेक्स परम्परागत बॉलीवुड फिल्मों की तरह है, जिसके बारे में कोई भी बता सकता है कि अब क्या होने वाला है।

कुछ कमियों के बावजूद पटकथा ठीक है।यह फिल्म मुख्य रूप से एक प्रेम कहानी है, जिसमें कॉमेडी की ठीकठाक खुराक है। साथ ही यह बिट्टी के किरदार के जरिये लड़के और लड़कियों को लेकर समाज के भेदभाव वाले रवैये पर भी निशाना साधती है। आयुष्मान खुराना और कृति सैनन अपने किरदारों के साथ न्याय किया है। राजकुमार राव ने एक बार फिर शानदार अभिनय किया है। पंकज त्रिपाठी की भाव-भंगिमाएं और डायलॉग डिलीवरी दिलचस्प है। बिट्टी की मां सुशीला के रूप में सीमा पाहवा का काम काफी अच्छा है। चिराग के दोस्त मुन्ना के रूप में रोहित चौधरी का काम प्रभावित करता है। ‘निल बटे सन्नाटा’ के बाद अश्विनी अय्यर तिवारी बतौर निर्देशक एक बार फिर छाप छोड़ने में सफल रही हैं। यह फिल्म दर्शकों को बांधे रखती है, हालांकि कहीं-कहीं सुस्त भी पड़ती है। संगीत फिल्म के मिजाज के अनुकूल है। बरेली के एम्बियन्स को कैमरे ने ठीक से कैप्चर किया है। फिल्म एक बार देखने लायक है।

फिल्म: बरेली की बर्फी
निर्देशक: अश्विनी अय्यर तिवारी
कलाकार: आयुष्मान खुराना, कृति सेनन, राजकुमार राव, पंकज त्रिपाठी, सीमा पाहवा
लेखक: नितेश तिवारी, श्रेयस जैन


साभार: हिंदुस्तान

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वीणा-वादिनी वर दे

सेठ गोविंद दास: हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने के बड़े पैरोकार

राही मासूम रजा की कविता 'वसीयत'